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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड
२. रूक्ष परमाणु का स्निग्ध परमाणु के साथ मेल होने से स्कन्ध का निर्माण होता है, बशर्ते कि उन दोनों परमाणुओं की स्निग्धता-रूक्षता में कम से कम दो अंशों से अधिक अन्तर हो।
३. स्निग्ध और रूक्ष परमाणुओं के मिलन से स्कन्ध निर्माण होता ही है, चाहे फिर वे विषम अंश वाले हों या सम अंश वाले अर्थात् एक परमाणु में स्निग्धता है और दूसरे में रूक्षता, तो ऐसे दो परमाणुओं का संयोग अवश्य होता है। चाहे फिर उन दोनों के समान गुण हों या विषम गुण हों। दो गुण स्निग्धता और दो गुण रूक्षता वाले परमाणुओं का भी स्कन्ध बनता है और एक गुण स्निग्धता तथा दो-तीन या उससे अधिक गुण रूक्षता वाले परमाणुओं का भी स्कन्ध बनता है।
उक्त नियमों में अपवाद केवल इतना ही है कि एक गुण स्निग्धता और एक गुण रूक्षता नहीं होना चाहिए। अर्थात् जघन्य गुण वाले परमाणु का कभी बंध नहीं होता है।
किसी भी स्कन्ध निर्माण की प्रक्रिया में उक्त नियम लागू पड़ते हों, तो वहां उन परमाणुओं के स्कन्ध बनते ही हैं। इस प्रकार दो, तीन, चार यावत असंख्य, अनन्त परमाणुओं का भी एक स्कन्ध बन सकता है । लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है कि परमाणुओं से बने स्कन्ध में विद्यमान रूक्षता और स्निग्धता के अंशों में परिवर्तन न हो तब तक उस स्कन्ध में संयोजित परमाणु उस स्कन्ध से अलग नहीं हो। क्योंकि स्कन्ध से परमाणु के पृथक् होने का यही एकमात्र कारण नहीं है । अन्य दूसरे भी कारण हैं। उनमें से कोई भी कारण उपस्थित हो जाये तो परमाणु उस स्कन्ध से अलग हो सकता है। वे कारण इस प्रकार हैं
१. कोई भी स्कन्ध अधिक से अधिक असंख्य काल तक रह सकता है । अर्थात् उतने काल के पूर्ण होने पर परमाणु स्कन्ध से अलग हो सकता है।
२. अन्य द्रव्य का विघटन होने पर भी स्कन्ध का विघटन होता है। ३. बंध योग्य स्निग्धता और रूक्षता के गुणों में परिवर्तन आने से भी स्कन्ध का विघटन होता है। ४. स्कन्ध में स्वाभाविक रीति से उत्पन्न होने वाली गति से भी स्कन्ध का विघटन होता है।
स्कन्ध निर्माण व विघटन की उक्त प्रक्रिया का संक्षेप में निष्कर्ष यह है कि विघटन होना भी पुद्गल का स्वभाव है । अतः स्कन्धगत परमाणु पृथक् भी होते रहते हैं लेकिन संश्लिष्ट होने के बारे में नियम हैं कि जघन्य गुणांशों वाले परमाणुओं का न तो सदृश और न विसदृश संश्लेष होता है। किन्तु जघन्य-एकाधिक जघन्येतरसमजघन्येतर, जघन्येतर-एकाधिकजघन्येतर गुणांशों वाले परमाणुओं का सदृश बंध तो नहीं होता है, विसदृश बंध हो सकता है। जघन्य-द्वयाधिक, जघन्य-त्र्यादिअधिक, जघन्येतर-द्वयाधिकजघन्येतर, जघन्येतर-त्र्यादिअधिक जघन्येतर परमाणुओं का सदृश व विसदृश बंध होता है। स्कन्ध के सम्बन्ध में विशेष ज्ञातव्य .
- स्कन्ध के लक्षण, निर्माण प्रक्रिया आदि के बारे में ऊपर सामान्य जानकारी दी गई है। उसके अतिरिक्त कुछ विशेष ज्ञातव्य इस प्रकार है कि पुद्गल द्रव्य होते हुए अजीव, रूपी तथा बहुप्रदेशी होने से अस्तिकाय द्रव्य है । स्कन्ध की निष्पत्ति परमाणुओं के परस्पर मिलने से होती है । स्कन्ध सूक्ष्म परिणाम वाले भी होते हैं और बादर परिणाम वाले भी होते हैं। दोनों अनन्त प्रदेशी भी हो सकते हैं । स्कन्ध पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा सप्रदेशी है, अप्रदेशी नहीं है । क्षेत्र की अपेक्षा अप्रदेशी भी होता है और सप्रदेशी भी । अर्थात् एक आकाश प्रदेश में अवगाहन करने वाला भी होता है और अनेक आकाश प्रदेशों में भी रह सकता है । काल की अपेक्षा सप्रदेशी भी होता है और अप्रदेशी भी। अर्थात् एक समय की स्थिति वाला भी होता है और अनेक समय की स्थिति वाला भी। भाव की अपेक्षा भी सप्रदेशी और अप्रदेशी है। यानी एक अंश गुण वाला भी होता है और अनेक अंश गुण वाला भी । समपरमाणु वाले स्कन्ध सार्थ, अमध्य और सप्रदेशी हैं तथा विषम परमाणु वाले स्कन्ध अनर्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं । द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर असंख्यात व कतिपय अनन्त प्रदेशी स्कन्ध इतने सूक्ष्म हैं कि छद्मस्थ तथा अवधिज्ञानी तो नहीं देखते हैं, किन्तु केवलज्ञानी तथा परम अवधिज्ञानी देख सकते हैं । स्कन्धों की गति आकाश प्रदेशों की पंक्ति के अनुरूप होती है। इनमें सादि पारिणामिक भाव है, अनादि पारिणामिक भाव नहीं है तथा संतति प्रवाह की अपेक्षा अनादि अनन्त और स्थिति की अपेक्षा सादि सान्त हैं। परमाणु विषयक वक्तव्य
___सामान्य रूप से पुद्गल और उसके भेद स्कन्ध व परमाणु के बारे में विचार करने के अनन्तर अब परमाणु विषयक विशेष स्पष्टीकरण करते हैं।
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