________________
a
.
२
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
आशीर्वचन
राष्ट्रसंत आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी महाराज
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी श्रमणसंघ के एक सद्गुरुवर्य महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज के साथ
पुष्कर मुनि पर सरुम महाया वरिष्ठ सन्त-रत्न हैं। उनका उर्जस्वल व्यक्तित्व और व्यावर में मिले थे। उसके पश्चात् वे पदराडा, उदयपुर, कृतित्व अद्भुत है, अनूठा है। श्रमण संघ के निर्माण में वे सादड़ी, सोजत, गुलाबपुरा, अजमेर, साण्डेराव, मंचर और नींव की ईंट के रूप में रहे हैं। श्रमण संघ की यशोगाथा घोडनदी आदि में मिले । मिले ही नहीं, अनेक दिनों तक दिदिगन्त में गूंजती रहे उसके लिए वे सतत प्रयत्न करते साथ में रहे और ऐसे रहे जैसे गुरु-शिष्य रहे हों । ज्ञान रहे हैं। श्रमण संघ को वे आचार और विचार दोनों ही होने पर भी उनमें अहंकार और ममकार नहीं है यही दृष्टियों से सदा उन्नत देखना चाहते हैं । श्रमण संघ के संत उनके जीवन की प्रगति का मूलमंत्र रहा है। मैंने उनके व सतीवृन्द ज्ञान की दृष्टि से अत्यधिक प्रगति करें। विश्व जीवन को बहुत ही निकटता से देखा है, उनकी सरलताके भूले-भटके जीवनराहियों के लिए वे पथ-प्रदर्शक बनें सहजता और सदा आल्हादित रहने वाली मुख-मुद्रा ने मुझे और साथ ही आचार की उत्कृष्टता से उनका जीवन जग- प्रभावित किया है। वे सुलेखक हैं, कवि हैं, प्रखर वक्ता हैं मगाता रहे यह उन्हें इष्ट है, अतः समय-समय पर मुझे और साथ ही वे एक सफल जप व ध्यान योगी सन्त हैं। नम्र निवेदन भी करते रहे और श्रमण संघ के हितार्थ किये मैंने देखा है, नियमित समय पर जप-साधना करना उन्हें गये उनके अमूल्य सुझावों पर मैं स्नेह से चिन्तन भी करता प्रिय है। भोजन छोड़ सकते हैं पर भजन नहीं छोड़ सकते रहा हूँ।
-यह उनके जीवन की महान विशेषता है। मुझे सात्विक गौरव है, श्रमण संघ में ऐसे तेजस्वी जैन समाज उनके दीक्षा स्वर्ण-जयन्ती के सुनहरे अवसन्त हैं, जिनके मधुर सहयोग से श्रमण संघ प्रगति के पथ सर पर उन्हें एक विराट् काय अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पित पर हैं। पुष्कर मुनिजी के साहित्य, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान कर रहा है यह अत्यन्त प्रसन्नता की बात है। यह उनका की प्रगति को संलक्ष्य में रखकर ही मैंने उन्हें उपाध्याय व्यक्तिगत गौरव ही नहीं, श्रमण संघ का भी गौरव है। पद से अलंकृत किया। वे पहले साहित्य-शिक्षण मंत्री और मेरा हार्दिक आशीर्वाद है कि उपाध्याय पुष्कर मुनि जी प्रान्त मंत्री भी रह चुके हैं। सदा अनुशासन में रहकर पूर्ण स्वस्थ रहकर देश के विविध अंचलों में परिदूसरों को अनुशासन में रहने का उन्होंने पाठ पढ़ाया है। भ्रमण करते हुए जैन धर्म की प्रबल-प्रभावना करते रहें।
पुष्कर मुनिजी के साथ मेरा चालीस वर्षों से परिचय ज्ञान-दर्शन-चारित्र और अध्यात्म में सदा आगे बढ़ते रहें। रहा है । अजमेर वृहद् साधु सम्मेलन के पूर्व वे मुझे अपने
००
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org