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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
शुभयोग, शुभभाव अथवा शुभ परिणाम और सत्कर्म प्रायः एक ही अर्थ रखते हैं। केवल शब्द व्यवहार का अन्तर है।
श्रावक धर्म पर भी आपश्री ने एक विराट् काय चिन्तन प्रधान ग्रन्थ का सृजन किया है उसमें आपश्री ने व्रत के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए लिखा है
"व्रत एक पाल है, एक तट बंध है, आप जिस गांव में रहते हैं वहाँ यदि बिना पाल का तालाब हो तो क्या आप वहाँ रहना पसन्द करेंगे? आप कहेंगे ऐसी जगह वर्षा के दिनों में एक दिन भी रहना खतरे से खाली नहीं है । न मालूम कब तालाब में पानी बढ़ जाय और वह बाहर निकल कर गाँव को डुबो दे, मकानों को ढहा दे। व्रत भी एक पाल है, एक तटबन्ध है जो स्वच्छन्द बहते हुए जीवन-प्रवाह को मर्यादित बना देता है। नियन्त्रित कर देता है।
व्रत जीवन को स्वयं नियन्त्रित करने वाली स्वेच्छा से स्वीकृत मर्यादा है, जिसमें रहकर मानव अपने आपको पशुता, दानवता, उच्छृखलता, पतन आत्म-विश्वास में अवरोध, उत्पन्न करने वाले असंयम आदि को रोकता है।
व्रत एक अटल निश्चय है। मानव जब तक व्रत नहीं लेता तब तक उसका मन डांवाडोल रहता है। उसकी बुद्धि निश्चल और स्थिर नहीं हो पाती। व्रत ग्रहण करने पर मानव का निश्चय अटल हो जाता है।
संस्मरण-साहित्य संस्मरण साहित्य की एक सशक्त विधा है । अन्यान्य विधाओं से वह अधिक रुचिकर और प्रिय होती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में नित्य नयी घटनाएँ धटित होती है। कुछ घटनाएँ चल-चित्र की तरह आती हैं और चली जाती हैं। किन्तु कुछ घटनाओं की छाप अमिट होती है। वे भुलाने पर भी भुलाई नहीं जा सकती है। स्मृत्याकाश में वे समय-समय पर बिजली की तरह कौंधती है । संस्मरण मधुर भी होते हैं, कडुवे भी होते हैं क्योंकि जीवन में मधुरता और कटुता दोनों का योग होता है । कभी ऐसा नहीं होता कि जीवन में मिठास ही हो, कडुवाहट न हो । केवल मिठास से जीवन रूढ़ बन जाता है और केवल कड़वाहट से नीरस । यह सत्य है, कि संस्मरण में प्रायः जीवन के मधुर क्षणों का ही चित्रण होता है । संस्मरण लिखने की अपनी शैली है । वर्णन के अनुसार भाषा में गम्भीरता और सरलता होती है। आपश्री के संस्मरण-लेखन की शैली बड़ी अद्भुत और प्रभावक है । भावों का अङ्कन बहुत ही चित्ताकर्षक हुआ है। आपके संस्मरणों के कुछ उदाहरण यहाँ पर प्रस्तुत किये जा रहे हैं
'गौर वर्ण की देह में देदीप्यमान कनक की-सी आभा, मंझला कद, भव्य-भाल, सुन्दर व स्वस्थ शरीर, आकर्षक व्यक्तित्व, तन से वृद्ध, मन से जवान, सीधा-साधा रहन-सहन, आडम्बर रहित जीवन यह है आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज साहब का बाहरी छविचित्र ।"
एक विचारक की वाणी में "सुख की चांदनी में सभी हंस सकते हैं, पर दुःख की दोपहरी में हँसना सरल नहीं," परन्तु श्रद्धेय आचार्यप्रवर ने सुख की शुभ्र चाँदनी में ही नहीं, किन्तु कष्टों की कठिन दोपहरी में भी हँसना सीखा है। कभी भी, किसी भी अवस्था में आपश्री सदा मुस्कराते ही पायेंगे । मुश्किलें उन्हें हतोत्साहित नहीं करतीं पर प्रोत्साहित ही करती हैं । सदा प्रसन्न रहना ही जिनका सहज गुण है।
आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी महाराज के सम्बन्ध में आपने लिखा है
"आचार्य प्रवर महामहिम आनन्दऋषि जी महाराज श्रमण संघ की एक महान् जगमगाती ज्योति हैं। जिनका जीवन सूर्य के समान तेजस्वी और चांद के समान सौम्य है। उनका जीवन सद्गुणों का समुद्र है। उस समुद्र का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाय, यह गम्भीर चिन्तन के पश्चात् भी समझ में नहीं आ रहा है। उनके विराट व्यक्तित्व रुपी सिन्धु को शब्दों के बिन्दुओं में बाँधना बड़ा ही कठिन है।
अजरामरपुरी अजमेर में बृहद् साधु-सम्मेलन का भव्य आयोजन । जन-जन के मन में अपार उत्साह, बरसाती नदी की तरह उमड़ रहा था। एक से एक बढ़कर प्रतिभासम्पन्न सन्त पधार रहे थे। उस समय सभी सन्तों की व्यवस्था की जिम्मेदारी हम राजस्थानी सन्तों पर थी। जिससे सभी सन्तों के साथ हमारा मधुर सम्बन्ध होना स्वाभाविक था। उस समय आनन्द ऋषि जी महाराज के हृदय की शुद्धता, मन की सरलता और अपने सिद्धान्तों पर पहाड़ की तरह अटल रहते हुए देखकर मेरे मन में उनके प्रति सहज श्रद्धा जागृत हुई।"
मन्त्री श्री हजारीमल जी महाराज के सम्बन्ध में आपने लिखा है"वे उच्चकोटि के सहृदय सन्त थे। उनका जीवन आचार और विचार का पावन संगम था। आज के युग
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