________________
११२
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
++
+
+
+++
शतशः अभिनन्दन
0 विद्याविनोदी श्री शुकन मुनि जी
मेदपाट में जन्म ले, मरुधर बना महान । पाप ताप संताप हर, जाप जपे मन रंग। चमक्यो जाय विदेश में, ले तारक वरदान ।। जा को सीखन चहत चित, जा पुष्कर मुनि संग ।। ले तारक वरदान, भक्तगण हार हियारो। जा पुष्कर मुनि संग, लोह फिर कंचन हो जासी। श्री पुष्कर मुनिराज, देव देवेन्द्र पियारो॥ ये योगी अनमोल, विचक्षण हैं मृदुभाषी ॥ मधुर वाक्य सिद्धी वरी, विषय वासना छेद। शान्त सरल है पुनि सजग, निर्मल गंगा आप । ये अभिनन्दन "शुकन" शुभ, अहो मुनि गुणिमेद ॥ जा के पद पंकज छुअत टर जावत हैं पाप ॥
माला हंदो मोह, लगन ललित लागी रहै। मोहन बंसी टोह, त्यों पुष्कर मुनिराज रै।। जहां-तहाँ जमघट्ट, ठट्ट देख दिलड़ो ठरै। गांवों में गहघट्ट, शंकर विजिया के सरिस ।। विस्तर जो कथनीय, चारों दिशि में चांद ज्यों।
बनो संघ रमणीय, उपाध्याय पुष्कर मुनिन ।। वन्दना
मुनि सतीशचन्द्र 'सत्य' गुरु तारक ने चन्दा बन कर, ज्ञान रश्मि फैलाई जग में। चमक उठा पुखराज तभी से, स्पर्श हुआ तन जब पदयुग में । तेज पुञ्ज के बने सूर्य सम, अज्ञान तिमिर को दूर किया। तीर्थ-धाम यह बना धर्म का,
पुष्कर तब से नाम लिया ।।
कलि के विषम भाल के मल को, धोने मानव जब आते हैं। समता के रस में जब धोते, जीवन अमर बनाते हैं। शत-शत वन्दन ही अभिनन्दन, 'पुष्कर' तुझ पर जग बलि देता। मुनि सतीश श्रद्धा से नत हो, पुष्कर से आशी: भर लेता॥
olo
O----
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org