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दो शब्द
प्रस्तुत ग्रन्थ की काया प्राशा से अधिक स्थूल हो जाने के कारण इसे दो जिल्दों में सँवारना पड़ा है। श्रद्धेय पं० रतनचन्दजी जैन मुख्तार का व्यक्तित्व, छाया-छवियाँ और प्रथमानुयोग,
ग से सम्बन्धित शंका-समाधान की विपुल सामग्री पहली जिल्द के ८७२ पृष्ठों में संकलित है, शेष इस दूसरी जिल्द में।
द्रव्यानुयोग के विषयों से सम्बन्धित कुल ४०१ शंका-समाधान इस ग्रंथ के ३८४ पृष्ठों में मद्रित हैं। जैन न्याय से सम्बद्ध अनेकान्त-स्यादवाद, उपादान-निमित्त और कारण-कार्य व्यवस्था की कल ४७चनी हई शंकाएँ यहाँ समाधान सहित संकलित हैं। नयनिक्षेप. अर्थपरिभाषा और विविध शीर्षक के अन्तर्गत कुल १७० शंकाएँ इस ग्रन्थ को विशेष गौरव प्रदान कर रही हैं । पूज्य पण्डितजी का एक बहुचर्चित ट्रॅक्ट 'पुण्य का विवेचन' एतत्संबन्धी स्फुट शंका-समाधान सहित इस ग्रन्थ के ५६ पृष्ठों में (१४५७-१५१२) स्थान पा सका है। पण्डितजी का एक दूसरा ट्रेक्ट 'क्रमबद्धपर्याय और नियतिवाद' पृष्ठ १२०७ से १२५६ तक मुद्रित है।
इस प्रकार पण्डितजी की लेखनी से प्रसृत विशाल सामग्री में से चयन कर कुल ५७१ शंकाएँ और उनके सरल प्रामाणिक समाधान इस जिल्द में प्रस्तुत हैं। ग्राशा है, तत्त्वजिज्ञासू अनेकान्ती स्वाध्यायी इनसे समुचित लाभ प्राप्त कर स्व-पर उपकार में निरत होंगे; ज्ञान का फल भी यही है। परिशिष्ट में संदर्भ ग्रन्थ सूची, शंकाकार सूची और अर्थसहयोगियों की नामावली दी गई है।
समाधानकर्ता (स्व.) पं० रतनचन्दजी मुख्तार की प्रतिभा और क्षमता का सविनय सादर पुण्य स्मरण। शंकाकारों की स्पृहणीय जिज्ञासावृत्ति के फलस्वरूप ही इस ग्रन्थ की परिकल्पना सम्भव हई है, अतः उन सभी का सविनय अभिनन्दन
सभी अर्थ-सहयोगियों का सादर आभार
प्रेरक (स्व.) आचार्यकल्पश्री श्रुतसागरजी महाराज, मुनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज और आयिकाश्री विशुद्धमती माताजी के चरणों में शत-शत नमोस्तु ।
भूलों के लिए क्षमायाचना सहित
पौष वदी एकादशी भगवान पार्श्वनाथ जन्म-तप कल्याणक दिवस ३ जनवरो, १९८९
विनीत : जवाहरलाल जैन सिद्धान्तशास्त्री
चेतनप्रकाश पाटनी
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