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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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निर्विकारनिश्चलचित्तवृत्तिरूपचारित्रस्य विनाशकश्चारित्रमोहभिधानः क्षोभ इत्युच्यते ।'
निविकार निश्चल चित्तवृत्तिरूप चारित्र का विनाशक चारित्रमोह के नाम से कहा जानेवाला क्षोभ है। यह क्षोभ चारित्रमोहनीयकर्म से उत्पन्न होता है। चारित्रमोहनीयकर्म के अभाव में निश्चल चित्तवृत्ति के विनाशक क्षोभ का भी प्रभाव हो जायगा। 'दर्शनचारित्रमोहनीयोदयापादितसमस्तमोहक्षोभाभावावस्यन्तनिर्विकारो जीवस्य परिणामः ।'
-प्रवचनसार गाथा ७ टीका दर्शनमोहनीयकर्मोदय से मोह उत्पन्न होता है और चारित्रमोहनीयकर्मोदय से क्षोभ उत्पन्न होता है । दर्शनमोहनीयकर्म और चारित्रमोहनीयकर्मोदय के अभाव में मोह और क्षोभ ( चंचल चित्तवृत्ति ) का अभाव हो जाता है । इनके अभाव में जीव का अत्यन्त निर्विकार ( निश्चल ) परिणाम होता है।
-ण. ग. 2-11-72/VII/रो. ला. जैन अशोकवृक्ष जीव के शोक को दूर करता है शंका-अशोकवृक्ष में दूसरे जीवों के शोक को दूर करने की विशेषता होती है क्या?
समाधान-अशोकवृक्ष में दूसरे जीवों के शोक को दूर करने की शक्ति होती है, इसी कारण उसको अशोकवृक्ष की संज्ञा दी गई है ।
रेजेऽशोकतरुरसौ रुन्धन्मार्ग व्योमचरमहेशानाम् ।
तन्वन्योजनविस्तृताः शाखा धुन्वन शोकमयमदो ध्वानाम् ॥ २३/३९ ॥ (महापुराण) अर्थ-आकाश में चलने वाले देव और विद्याधरों के स्वामियों का मार्ग रोकता हुअा अपनी एक योजन विस्तारवाली शाखाओं को फैलाता हुआ और शोकरूपी अन्धकार को नष्ट करता हुआ वह अशोकवृक्ष बहुत ही अधिक शोभायमान हो रहा था।
सर्वतु कुसुमेनान्यसर्वशोकापहारिताम् ।
अशोकेनाभिपूज्यत्वं सुमनोवृष्टि पूजया ॥५७/१६४॥ (हरिवंशपुराण) अर्थ-सब ऋतुओं के फूलों से युक्त अशोकवृक्ष के द्वारा अन्य समस्त जीवों के शोक दूर करने की सामर्थ्य को, पुष्पवृष्टिरूप पूजा के द्वारा पूज्यता को प्रकट कर रहे थे।
-जें. ग. 23-7-70/VII/ रतनलाल जैन सत्य अर्थ सवथा प्रज्ञात नहीं हो सकता शंका-सत्य अज्ञात है, उस सत्य को उन विचारों से कैसे जाना जा सकता है जो विचार ज्ञात हैं ?
समाधान-कोई भी सत् रूप अर्थ ( विद्यमान अर्थ, सद्भावात्मक अर्थ ) ऐसा नहीं है जो कि किसी न किसी ज्ञान का विषय न हो, क्योंकि अर्थ उसको ही कहते हैं जो जाना जाय । कहा भी है
___'वर्तमानपर्यायाणामेवकिमित्यर्थत्वमिष्यत इति चेत् ? न 'अर्यते परिच्छिद्यते' इति न्यायतस्तवार्थत्वोपलम्भात् ।' जयधवल पु०१ पृ० २२-२३
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