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दशलक्षण पर्व भाद्रपद, माघ व चैत्र मास में ही क्यों मनाये जाते हैं ?
शंका- श्री अष्टाह्निकापवं क्रम से चार-चार मास बाद होता है, परन्तु दसलक्षण पर्व भावों मास के बाद माघमास में आता है, जो कि पाँच मास बाद आता है। इसके बाद चैत्रमास में आता है, जो केवल दो मास बाव ही आ जाता है। इसका क्या कारण है ?
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार
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समाधान — अवसर्पिणी के दुःखमा दुःखमा छठाकाल के अन्त विषै ४९ दिन तक पवन अत्यन्तशीत, क्षाररस, विष, कठोर अग्नि, धूलि, ध्रुव की वर्षा होई है— जिससे अवशेष रहे मनुष्यादिक ते भी नष्ट हो हैं । बहुरि विष और अग्नि की वर्षानि करि दगध भई पृथ्वी सो एक योजन मात्र नीची तांई काल के वशते चूर्ण होई है । तत्पश्चात् उत्सर्पिणी का प्रतिदुषमा नामा प्रथमकाल की आदि में ४९ दिन तक क्रमतें जल, दुग्ध, घी, अमृत दि रसन की वर्षा होई है। जिससे पृथ्वी उष्णता को छोड़ शीतल सुगन्ध हो जाय है और विजयार्ध की गुफा से जीव तो निकल पृथ्वी पर आजायें हैं। त्रिलोकसार गाथा ८६६-८७०
जिस दिन ये जीव गुफा से पृथ्वी पर प्राये वह दिन भाद्रपद शुक्ला पंचमी था, क्योंकि युग अथवा उत्स पिणी की आदि श्रावणकृष्णा प्रतिपदा को होती है। श्रावण के तीस दिन और भाद्रपद शुक्ला चौथ तक १९ दिन इसप्रकार भाद्रपद शुक्ला चौथ तक जल, दूध, घी आदि की वर्षा समाप्त हो जाती है । इस उपलक्ष में भाद्रपद शुक्ला पंचमी से दसलक्षण प्रारम्भ होता है । दसों धर्मद्वारा व रत्नत्रय के द्वारा परिणामों में इतनी विशुद्धता श्रा जाती है कि असोजकृष्णा प्रतिपदा को वह जीव अन्य सब जीवों से द्वेषभाव त्यागकर क्षमा धारण करता है । अन्य जीवों से भी और विशेषकर उन जीवों से, जिनसे किसी कारण कुछ मनमुटाव हो गया हो, बैरभाव त्याग अपने प्रति क्षमाभाव धारण करने की प्रार्थना करता है, जिससे कषायभावों के संस्कार भागे न चलने पावें । इसप्रकार इस पर्ण में क्षमावाणी का बहुत महत्व है, जो प्रायः दशलक्षणपर्ण के पश्चात् हर स्थान में मनाई जाती है।
प्रत्येक कथाय चारप्रकार की होती है—१ अनन्तानुबन्धी, २ अप्रत्याख्यान ३ प्रत्याख्यान, ४ संज्वलन | इनमें से घनन्तानुबन्धीकषाय सम्यक्त्व और चारित्र की घातनेवाली है, अप्रत्याख्यानावरणीकषाय देणसंयम को, प्रत्याख्यानादरणीकषाय सकलसंयम को और संज्वलनकषाय यथाख्यातचारित्र का घात करती है। ( षट्खंडागम पुस्तक ६, पृष्ठ ४२ से ४४ तक व जीवकाण्ड गोम्मटसार गाथा २८२ )
यदि किसी भी कषाय के संस्कार ६ मास से अधिक रहते हैं तो वह कषाय सम्यक्त्व का घात करनेवाली अनन्तानुबन्धी कषाय होती है ( गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाया ४६ )
किसी भी कषाय के संस्कार ६ मास से अधिक न होने पायें, किन्तु ६ माह से पूर्व ही वे संस्कार दसलक्षण व क्षमावणी पर्ण द्वारा नष्ट हो जायें। अतः भादमास से ५ माह पूर्व चैत्र मास में और भादोमास से ५ माह पश्चात् माघमास में दसलक्षण व क्षमावाणी पर्व मनाये जाते हैं।
दसलक्षण पर्ण भादों, माघ व चैत्रमाह में चिरकाल से मनाये जा रहे हैं। अतः इसमें 'क्यों' का प्रश्न ही नहीं होता। जिननगरों में माघ व चैत्रमास में दसलक्षण पर्व न मनाया जाता हो वहाँ के भाइयों को माघ व चैत्र में भी दसलक्षणपर्व मनाना चाहिए।
- जै. सं. 19-6-58 / V / हरीचंद जैन, एटा
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