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व्यक्तित्व श्रीर कृतित्व ]
संस्कृत टीका -'च शब्दाच्चिन्तारति निद्रा विस्मयविषदस्वेदखेदा गृह्यन्ते ।'
श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने 'रोष' कहा है उसके स्थान पर श्री समन्तभद्राचार्य ने 'द्वेष' कहा है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने 'उद्वेग' कहा है, उसके स्थान पर श्री समन्तभद्राचार्य ने 'अरति' कहा है। मात्र नाम भेद हैं, अभिप्राय एक है । रोष का अर्थ क्रोध है । क्रोध द्वेषरूप है । इष्टवियोग में विकलभाव ( घबराहट ) उद्वेग है । निष्ट का संयोग प्रति है । इनमें भी विशेष अन्तर नहीं है ।
'दव्य लेस-काल- भावेसु जेसिमुदएण जीवस्स अरई समुप्पज्जइ तेसिमरदि ति सण्णा ।' ध. पु. ६ पृ. ४७
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जीव के अरुचि उत्पन्न होना प्ररति है ।
(१) सामान्य केवलियों के दो कल्याणक होते हैं
(२) विदेह में ८ प्रायं खण्डों में एक तीर्थंकर नियम से सदा रहते हैं
- जै. ग. 27-7-72/IX / र. ला. बॅन, एम. कॉम.
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शंका - विदेहक्षेत्र में जो बीस भगवान हमेशा उसी नाम के रहते हैं तो एक भगवान के मुक्त होने के बाद उसी नाम के दूसरे भगवान के जन्म में कितना अन्तराल पड़ता है, क्योंकि कम से कम गर्भ के नौ माह का अन्तराल तो अवश्य पड़ना चाहिये ? उनके कितने कल्याणक होते हैं ? सामान्यकेवलियों के कितने कल्याणक होते हैं ?
समाधान - विदेहक्षेत्र में १६० प्रर्यखण्ड हैं और २० शाश्वत तीर्थंकर | अतः श्राठ आर्यखण्डों में एक तीर्थंकर होता है । आठ आर्यखण्डों में से किसी एक श्राखण्ड में केवलज्ञानसहित एक तीर्थंकर विद्यमान हैं तो अन्य शेष सात श्रार्यखण्डों में से किसी एक श्रार्यखण्ड में तीर्थंकर का गर्भ जन्म तथा तपकल्याणक हो जाता है । विद्यमान तीर्थंकर के मोक्ष होने पर तुरन्त दूसरे तीर्थंकर की केवलज्ञानोत्पत्ति हो जाती है। इसप्रकार आठ प्रार्यखण्डों में से किसी एक प्राखण्ड में तीर्थंकर अवश्य विद्यमान रहता है। इनके पाँचों ही कल्याणक होते हैं । सामान्यकेवलियों के केवलज्ञान और निर्वाण ये दो कल्याणक होते हैं । तीर्थंकरकेवली या सामान्यकेवली के अनन्तचतुष्टय में कुछ अन्तर नहीं होता ।
-ज. ग. 6-5-65 / XIV / मगनमाला
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सामान्य केवलियों के दो कल्याणक होते हैं।
शंका- सामान्यकेवलियों के कल्याणक होते हैं या नहीं ?
समाधान -- सामान्यके वलियों के गर्भ व जन्म व तपकल्याणक तो नहीं होते, किन्तु प्रथमानुयोग ग्रन्थों में केवलज्ञान व मोक्ष के समय देवों का जाना बताया है। उनकी गंधकुटी भी होती है । जिससे ज्ञात होता है कि सामान्यके वलियों के केवलज्ञान व मोक्षकल्याणक होते हैं, किन्तु ये कल्याणक तीर्थंकरों के कल्याणक के समान नहीं होते, क्योंकि उनके तीर्थंकरप्रकृति का उदय नहीं होता है ।
-. ao. 30-1-58/VI/ ZIĦTIA ŠZ141
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