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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १३६५
अर्थ-भगवान ने दो नय कहे हैं-द्रव्याथिक और पर्यायाथिक । दिव्यध्वनि में उपदेश एकनय के प्राधीन , नहीं होता, किन्तु दोनों नयों के प्राधीन होता है ।
'द्रव्यमर्थः प्रयोजनमस्येत्यसौद्रव्याथिकः । द्रव्यम् सामान्यमुत्सर्गः अनुवृत्तिरित्यर्थः । तद्विषयो द्रव्याथिकाः।'
[स. सि. १/६ व ३३ ] द्रव्य जिसका प्रयोजन है वह द्रव्याथिकनय है। द्रव्य का अर्थ सामान्य, उत्सर्ग और अनुवृत्ति है, इनको विषय कराने वाला द्रव्याथिकनय है।
'पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायाथिकः । पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः । तद्विषयः पर्यायाथिकः [स. सि. १/६ व ३३]
__ पर्याय जिस नय का प्रयोजन है, वह पर्यायाथिकनय है। पर्याय का अर्थ विशेष, अपवाद और व्यावृत्त है । इसको विषय करने वाला पर्यायाथिकनय है।
इन उपर्युक्त प्रार्षप्रमाणों से यह सिद्ध है कि द्रव्यदृष्टि अर्थात् द्रव्याथिकनय का विषय सामान्य है, पर्याय नहीं है, क्योंकि पर्यायें पर्यायाथिकनय का विषय हैं। अतः द्रव्यदृष्टि में न बंध है, न मोक्ष है, न मोक्षमार्ग है, न मनुष्य है, न तिथंच है, न देव है, न नारकी है, न जन्म है, न मरण है, न जीव है, न प्राणी है, क्योंकि ये सब विशेष हैं, पर्याय हैं, व्यावृत्तिरूप हैं ।
जब जीवन, मरण द्रव्यदृष्टि का विषय नहीं है तब द्रव्यदृष्टि में जीरो और जीने दो यह प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है। जैसे रसनाइंद्रिय का विषय खट्टा, मीठा ग्रादि रस की पर्यायें हैं, किन्तु काला, नीला आदि वर्णगुण की पर्याय रसनाइन्द्रिय का विषय नहीं हैं, चक्षुइंद्रिय का विषय हैं। नेत्रइंद्रिय से रहित रसनाइन्द्रिय से यह प्रश्न करना कि अमुक पदार्थ किस वर्ण का है, एक मूर्खता है ।
पर्यायदृष्टिनिरपेक्ष मात्र द्रव्यदृष्टि मिथ्यादृष्टि है। प्रवचनसार में कहा भी है--
'नारकाविपर्यायरूपो न भवाम्यहमिति परसमया मिथ्यादृष्टयो भवन्तीति ।'
'मैं सर्वथा नारकादि पर्याय रूप नहीं हूँ' ऐसा मानने वाले परसमय मिथ्यादृष्टि हैं, क्योंकि पर्याय के बिना द्रव्य का अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता है । श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा भी है
णत्थि विणा परिणाम अत्थो अत्थं विरणेह परिणामो।
दम्वगुणपज्जयस्थो अत्थो अस्थित्तणिव्वत्तो ॥१०॥ [प्रवचनसार] लोक में परिणाम (पर्याय) के बिना पदार्थ नहीं है और पदार्थ के बिना पर्याय नहीं है। द्रव्य, गुण व पर्याय में रहनेवाला पदार्थ उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यस्वरूप अस्तितत्त्व से बना हुअा है।
श्री अमृतचन्द्राचार्य ने भी कहा है-'न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तामालंबते वस्तुनो द्रव्यादिभिः परिणामात् पृथगुपलम्भाभावान्निःपरिणामस्य खरशृङ्गकल्पत्वात् ।' निश्चय से पर्याय के बिना वस्तू अस्तित्व को धारण नहीं करती। पर्याय से भिन्न वस्तु की उपलब्धि नहीं होती, क्योंकि पर्यायरहित वस्तु गधे के सींग के समान है।
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