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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : ___"अन्वयव्यतिरेकसमधिगम्यो हि हेतुफलभावः सर्व एव तावतेरण हेतुता प्रतिज्ञामानत एव कस्यचित्सा वस्तुचितायामनुपयोगिनीति । प्रतिबंधकसद्भावानुमानमागमेऽभिमतं तावदसति न घटते।" मूलाराधना पृ. २३।
जगत् में पदार्थ का सम्पूर्ण कार्यकारणभाव अन्वय-व्यतिरेक से जाना जाता है । अन्वय-व्यतिरेक के बिना कोई पदार्थ किसी का कारण मानना केवल प्रतिज्ञामात्र ही है। ऐसी प्रतिज्ञा वस्तु के विचारसमय में कुछ भी उपयोगी नहीं है।
प्रतिबंधककारण से कार्य की उत्पत्ति नहीं होती है। जैसे सहकारी ( निमित्त ) कारण नहीं होने से कार्य की सिद्धि नहीं होती, वैसे प्रतिबंधक का सद्भाव होने से भी कार्य होता नहीं। सहकारिकारण होते हुए प्रतिबंधककारणों के अभाव में कार्य होता है, अन्यथा नहीं।
श्री अकलंकदेव ने राजवातिक में भी कहा है
"इह लोके कार्यमनेकोपकरणसाध्यं दृष्टम्, यथा मृत्पिण्डो घटकार्यपरिणामप्राप्ति प्रति गृहीताभ्यन्तरसामर्थ्यः बाह्यकुलालदण्डचक्रसूत्रोदककालाकाशाद्यनेकोपकरणापेक्षः घटपर्यायेणाऽऽविर्भवति, नैक एव मृत्पिण्डः कुलालाविबाह्यसाधनसन्निधानेन बिना घटात्मनाविर्भवितु समर्थः । कार्यस्य अनेककारणस्वसिद्धिः।"
यहाँ पर यह बतलाया गया है कि कार्य की सिद्धि अनेक कारणों से होती है। जैसे घटकार्य की प्राप्ति में मृत पिण्ड तो अंतरंगकारण है और बाह्य में कुभकार प्रादि बाह्यसाधनों के बिना मात्र अकेला मृत् पिण्ड घटरूप परिणमन करने में समर्थ नहीं है । कार्य की अनेक कारणों से सिद्धि होती है; मात्र उपादान से कार्य की सिद्धि नहीं होती है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने तथा श्री अमृतचन्द्राचार्य ने भी प्रवचनसारादि ग्रन्थों में इसीप्रकार कहा है।
.. -. ग. 26-4-73/VII/....... घातिया कर्म एवं केवलज्ञान में कौन कारण व कौन कार्य है ? शंका-जैसे प्रकाश होते ही अन्धकार दूर हो जाता है वैसे ही केवलज्ञान उत्पन्न होने से तीन घातियाकर्मों का क्षय हो जाता है, ऐसा क्यों नहीं कहते ?
समाधान–प्रकाश से अन्धकार दूर हो जाता है, उसीप्रकार केवलज्ञानरूप प्रकाश से अज्ञानरूप अन्धकार दूर हो जाता है । जिसप्रकार दीपक प्रकाश का कारण है, उसीप्रकार चार घातियाकर्मों का प्रकाश की उत्पति में कारण है। कहा भी है
"मोहक्षयाज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥ १०॥१॥ तत्क्षयो हेतुः केवलोत्पत्तेरिति हेतुलक्षणो विभक्तिनिर्देशः कृतः।" ( सर्वार्थसिद्धि ॥ १०॥१॥)
अर्थ-मोह का क्षय होने से तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्म का क्षय होने से केवलज्ञान प्रकट होता है। इन घातियाकर्मों का क्षय केवलज्ञानोत्पत्ति का हेतु ( कारण ) है ऐसा जानकर 'हेतुरूप' विभक्ति का निर्देश किया है।
जिसप्रकार प्रकाश दीपक को कारण नहीं है उसीप्रकार केवलज्ञानोत्पत्ति भी घातियाकर्मों के क्षय को कारण नहीं है।
-जं. ग. 30-11-72/VII/ र. ला गैन; मेरठ
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