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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
श्री वीरसेनाचार्य ने ध. पु. १३ पृ. ३४९ पर भी कहा है
"एवं दुसेजोगादिणा अणुभाता परूवणा कायवा जहा मट्टिआ-पिंड-दंड-चक्क-चीवर-जल-कुभारदीणं घडुप्पायणाणुभागो।"
अर्थात्-जिसप्रकार प्रत्येक द्रव्य की शक्ति का कथन किया गया है, उसीप्रकार द्वि आदि संयोगीद्रव्यों की शक्ति का कथन करना चाहिये । जैसे मृत्तिका पिण्ड, दण्ड, चक्र, चीवर, जल, कुम्हारादि की संयोगीशक्ति से घट की उत्पत्ति होती है।
इन पार्षवाक्यों से सिद्ध है कि जिसप्रकार मृतिकापिण्ड उपादान कारण के बिना घट की उत्पत्ति नहीं हो सकती उसीप्रकार कुम्हारादि निमित्तकारणों के बिना भी घटकी उत्पत्ति नहीं हो सकती है।
मात्र मृतिकापिंड को घट की उत्पत्ति का कारण मानना और कुम्हारादि को किसी भी अपेक्षा कारण न मानना कारण विपर्यास है। क्योंकि जब तक कार्योत्पादक हेतु का परिज्ञान नहीं हो जाता तबतक कार्य का परिज्ञान यथार्थता को प्राप्त नहीं होता, ऐसा आर्ष वाक्य है"ण च कारले अणवगए कज्जावगमो सम्मत्तं पडिवज्जदे।" [ ध. पु. ११ पृ. २०५ ]
-. ग. 8-7-65/IX/......... उपादान कारण कार्य से कथंचित् भिन्न होता है, कथंचित् अनुरूप ( अभिन्न ) यानी
सर्वथा कारण के समान ही काय नहीं होता शंका-जो गुण कारण में होते हैं वे ही कार्य में आते हैं अर्थात् कारण के अनुसार ही कार्य की निष्पत्ति देखी जाती है। जिसप्रकार ज्ञानावरणकर्म के विशेष क्षयोपशम को लब्धि और उससे जायमान परिणामों को उपयोग । यदि लब्धि को कारण और उपयोग को कार्य माना जाय तो दोनों के गुण एक होने से उपयोग को लब्धिरूप ही माना जायगा।
समाधान-कारण के सदृश ही सर्वथा कार्य हो ऐसा एकान्त नियम नहीं है । पूर्वपर्यायसहित द्रव्य उत्तरपर्याय का कारण होता है।
पुश्वपरिणाम-जुत्तं कारण भावेण वट्टदे दव्वं । उत्तरपरिणामजुदं तं च कज्जं हवे णियमा ॥ २२२ ॥ स्वामिकातिकेय
अर्थ-पूर्वपरिणामसहित द्रव्य कारणरूप है और उत्तरपर्यायसहित द्रव्य नियम से कार्य रूप है।
"यथामृद्रव्य मृत्पिण्डः उपादानकारणभूतः घट लक्षणं कार्यं जनयति ।"
जैसे मिट्टी की पूर्वपिण्डपर्याय उपादानकारण होती है और वह उत्तररूप घटपर्याय को उत्पन्न करती है, किन्त मिट्टी पिण्ड और घट सर्वथा समान नहीं है, एकदेश भिन्न है । मिट्टीपिण्ड जलधारण नहीं कर सकता, किन्तु घट जलधारण कर सकता है। कहा भी है
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