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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
कारणद्वयं साध्यं न, कार्यमेकेन जायते । द्वन्द्वोत्पाद्यमपत्यं किमेकेनोत्पद्यते ॥ आराधनासार गाथा १३ ।
स्त्री और पुरुष दोनों से उत्पन्न होनेवाली सन्तान केवल स्त्री व केवल पुरुष से उत्पन्न नहीं होती। अन्तरंग और बहिरंग निमित्तों से उत्पन्न होनेवाला कार्य केवल अन्तरंगनिमित्त से या केवल बहिरंगनिमित्त से उत्पन्न नही हो सकता। बहिरंगनिमित्त के अभाव में वृक्ष से टूटा हुअा अाम वृद्धि को प्राप्त नहीं होता।
-ले. ग. 28-12-61
(१) निमित्त के अर्थ, प्रकार एवं परिभाषा (२) प्रेरक निमित्त कार्य का कर्ता होता है । अप्रेरक निमित्त कार्य में सहायक होता है
शंका-अंग्रेजी में निमित्त कारण के लिये क्या NOMINATIVE-CAUSE शब्द का प्रयोग हो सकता है ? उपादानकारण को अन्तरंगहेतु या अंतरंगकारण और निमित्तकारण को बहिरंगहेतु या बहिरंगकारण कहना क्या ठीक है ?
समाधान--प्रत्येक कार्य अर्थात पर्याय की उत्पत्ति मात्र एक कारण से नहीं होती है, किन्तु समस्त अनुकूलसामग्री से और बाधककारणों के अभावसे होती है। कहा भी है---
"सामग्री जनिका कार्यस्य नैकं कारणम् ।" आप्त-परीक्षा
अर्थात-सामग्री कार्य की उत्पादक है, एक कारण नहीं। (एक कारण से कार्य की उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु समस्त कारणों से कार्य की उत्पत्ति होती है )।
"कारणसामग्गीदो उपज्जमाणस्स कज्जस्स वियलकारणादो समुप्पत्तिविरोहा।" ध. पु. ६ पृ. १४१ ।
अर्थात--कार्य कारणसामग्री से उत्पन्न होता है, उसकी विकलकारण से उत्पत्ति का विरोध है।
"कार्यस्य अनेककारणत्वसिद्धिः।" राजवातिक
अर्थात-अनेककारणों से कार्योत्पत्ति होती है, यह बात सिद्ध है।
इन आर्ष ग्रन्थों से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि मात्र उपादानकारण से कार्य की उत्पत्ति नहीं होती। उस, उपादानकारण के साथ अन्यसहकारीकारण भी कार्योत्पत्ति में कारण होते हैं। उन सहकारी कारणों को ही 'निमित्तकारण' यह संज्ञा है।
यह सहकारीकारण ( निमित्तकारण ) उपादान कारण के साथ कार्य को करता है। श्री विद्यानन्द आचार्य ने श्लोकवार्तिक में कहा भी है
"न चैककारणनिष्पाद्य कार्य कस्वरूपे कारणान्तरे प्रवर्तमानं सफलम् । सहकारित्वात्सफलमिति चेत्, कि पुनरिदं सहकारिकारणमनुपकारकमपेक्षणीयम् ? तदुपादानस्योपकारकं तदिति चेन्न, तत्कारणत्वानुषंगात्, साक्षात्कार्ये व्याप्रियमाणमुपादानेन सह तत्कारणशीलं हि सहकारि न पुनः कारणमुपकुर्वाणम् ।"
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