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________________ १२८२ ] [पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : येणाऽऽविर्भवति, नैक एव मृत्पिण्डः कुलालादि बाह्यसाधन सन्निधानेन विना घटात्मनाविर्भवितु समर्थः। रा. वा. ॥१७॥३१ इस लोक में कार्य अनेककारणों से सिद्ध होता हुआ देखा जाता है। जैसे मृत पिण्ड में घटरूप परिणमन करने की अंतरंग शक्ति है तथापि घटोत्पत्ति के लिये बाह्य कुलाल, दण्ड, चक्र, चीवर, जल, आकाश, काल आदि अनेक कारणों की अपेक्षा रखता है। कुलालादि बाह्यसाधनों के बिना अकेला मृत पिण्ड घटोत्पत्ति करने में समर्थ नहीं है। इसप्रकार कोई भी परिणमन क्यों न हो, उसको बाह्य निमित्त की अपेक्षा रहती है। ---जं. ग. 14-12-72/VII/ कमलादेवी निमित्त एवं उसके भेद तथा उदाहरण शंका-'इष्टोपदेश' में निमित्त को धर्मास्तिकायवत् कहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि जैसे जीवद्रव्य चले तो धर्मद्रव्य निमित्त है, नहीं चले तो नहीं। तब इसप्रकार की स्थिति अन्य निमितों की है या नहीं ? समाधान-'इष्टोपदेश' में सब निमित्तों को धर्मास्तिकायवत् नहीं कहा है। निमित्त दो प्रकार के हैं(2) रक (२) अप्रेरक ( जैन सिद्धांतदर्पण ) जो अपरकनिमित्त हैं, उनको ही इष्टोपदेश में धर्मास्तिकायवत कहा है, क्योंकि, धर्मास्तिकाय अप्रेरकनिमित्त है ( सर्वार्थसिद्धि अध्याय ५ सूत्र १)।प्रेरकनिमित्त को अप्रेरकनिमित्त धर्मास्तिकायवत कैसे कहा जा सकता है ? धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायादि अप्रेरकनिमित्त हैं । अप्रेरकनिमित्त की सहकारिता बिना भी कार्य नहीं होता। प्रेरकनिमित्त के कुछ उदाहरण इसप्रकार हैं-'भाववचन की सामर्थ्य से युक्त आत्मा के द्वारा प्रेरित होकर पुद्गगल वचनरूप से परिगमन करते हैं ( सर्वार्थसिद्धि अ. ५ सू. १९, राजवातिक अ. ५ सू. १९ )। अचेतन जड़शरीर का विषय चेष्टा है, तिस चेष्टा का प्रेरक कोई निमित्त प्रात्मा है (गोम्मटसार बड़ी टीका पृ. १०६२, १०६४ )। चाक के एक दंड की प्रेरणा से कुम्हार का सारा चक्र घूमने लगता है ( वृहद्रव्यसंग्रह गाथा २२ टीका ) 'पवन ध्वजा को प्रेरक कारण है' ( पंचास्तिकाय गाथा ८८ टीका) 'अयस्कांत पत्थर ( मकनातीस ) लोहे की सूई को प्रेरित करता है' ( समयसार गाथा १६७ तात्पर्य वृत्ति) 'कर्मों के द्वारा प्रेरित होकर' ( समयसार पृ. ३२२ ब. शीतलप्रसादजी कृत अनुवाद)। प्रेरकनिमित्त की स्थिति अप्रेरकनिमित्त समान नहीं है। जिससमय जिसप्रकार के कर्म का उदय होगा उससमय उस उदय के अनुसार जीव के परिणाम अवश्य होंगे। जिससमय मिथ्यात्वप्रकृति का उदय होगा उससमय जीव के मिथ्यात्वभाव अवश्य होंगे, जीव की इच्छा पर निर्भर नहीं है कि वह मिथ्यात्वभाव करे या न करे । कहा भी है' जो जीव को परतंत्र करते हैं अथवा जीव जिनके द्वारा परतंत्र किया जाता है उन्हें कर्म कहते हैं' (आप्तपरीक्षा कारिका ११४-११५ टीका)। धर्मास्तिकाय प्रादि अप्रेरकनिमित्त जीव को परतंत्र नहीं करते । इससे सिद्ध हआ कि द्रव्यकर्मोदय आदि प्रेरकनिमित्त धर्मास्तिकायवत नहीं है। -जं. सं. 18-9-58/V/बंशीधर निमित्त व नैमित्तिक का स्वरूप, दोनों पर्याय हैं शंका निमित्त शब्द का क्या तात्पर्य है ? किसी विवक्षितकार्य में जो द्रव्य कार्यरूप परिणमन करता है, वह द्रव्य नैमित्तिक कहा जाता है या कार्य को ही नैमित्तिक कहा जाता है ? जैसे मिट्टी घटरूप परिणमन करती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012010
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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