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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
___'स्यात' शब्द के प्रयोग के बिना विवक्षितधर्म को छोड़कर शेष धर्मों के अभाव का प्रसंग आजायगा। उनका प्रभाव मानने पर द्रव्यके लक्षण का अभाव हो जायगा और लक्षण का प्रभाव हो जाने पर द्रव्यके अभाव का प्रसंग पाता है। इसलिये द्रव्य में अनुक्त समस्त धर्मों के घटित करने के लिये 'स्यात्' शब्द का प्रयोग करना चाहिये । ( ज. प. पु. १ पृ. ३०७ )।
___ "स्याद्वाद सब वस्तुओं को साधनेवाला एक निर्बाध अर्हतसर्वज्ञ का शासन है, वह स्याद्वाद सब वस्तुओं को अनेकांतात्मक कहता है, क्योंकि सभी पदार्थों का अनेकधर्मरूप स्वभाव है।" ( समयसार )। इसप्रकार स्याद्वाद अधूरा सत्य नहीं है, किन्तु सर्वांग सत्य है।
-ो. ग. 29-8-68/VI/ रोलनलाल
उपादान निमित्त
निमित्त का लक्षण; निमित्त उपादान की असमर्थता का नाशक होता है शंका-निमित्त का क्या लक्षण है ? समाधान-फलटन से प्रकाशित समयसार पृ. १२ पर निमित्त का लक्षण निम्नप्रकार दिया गया है
"उपादानस्य परिणमनक्रियया सहैव तत्परिणमनानुकूलं परिणमनं यस्य भवति तस्यैव निमित्तत्वं, निमेदति सहकरोतीति निमित्तमिति निमित्तशब्दस्य व्युत्पत्त, भवितृभवनव्यापारानुकूलव्यापारवनिमित्तमित्येवंविधलक्षणत्वानिमित्तस्य, एवंविधस्य निमित्त लक्षणस्यामृचन्द्राचार्यैः स्वोपज्ञटीकायां समर्थितत्वाच्च ।"
उपादान के परिणमन की क्रिया के साथ उपादान के परिणमन के अनुकूल जिसका परिणमन होता है उसी को निमित्तपना प्राप्त है। निमेदति अर्थात् जो उपादान के साथ में साहाय्य करता है वह निमित्त है। इस प्रकार निमित्त शब्द की व्युत्पत्ति है। होने वाले का ( उपादानका ) होनेरूप ( परिणमनरूप ) व्यापार के अनुकूल जिसका व्यापार होता है वह निमित्त है। इसप्रकार के निमित्त का लक्षण श्री अमृतचन्द्राचार्य ने स्वोपज्ञ टीका में कहा है।
"तदसामर्थ्यमखण्डयदकिञ्चितकरं किं सहकारीकारणं स्यात् ।" अष्टसहस्री
जो उपादान की असमर्थता को खण्डित नहीं करता वह सहकारी कारण ( साथमें करनेवाला निमित्तकारण ) कैसा ? अर्थात् सहकारी कारण ( निमित्तकारण ) उपादानकी असमर्थताको खंडित करता है अथवा जो उपादान की असमर्थता को खंडित करे वह सहकारीकारण अर्थात् निमित्तकारण है।
-. ग. 1-4-71/VII/ र. ला. गैन निमित्त बिना उपादान में परिवर्तन सम्भव नहीं शंका-क्या निमित्त के बिना उपादान में परिवर्तन हो सकता है ? .
समाधान-कोई भी परिणमन निमित्त के बिना नहीं हो सकता है। सब ही परिणमनों में कालद्रव्य साधारणनिमित है। अशुद्धपर्यायों में कालद्रव्य के अतिरिक्त अन्य भी निमित्त कारण होते हैं। श्री अमृतचन्द्राचार्य ने तत्त्वार्थसार द्वितीयाधिकार में कहा भी है
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