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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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(१) द्रव्यत्व, सत्ता, जीवत्व ये तीनों शब्द भिन्न-भिन्न हैं अतः संज्ञा की अपेक्षा इन तीनों में भेद है।
(२) 'द्रव्यत्व' का लक्षण इसप्रकार है-'द्रव्यस्य भावो द्रव्यत्वम्, निजनिजप्रदेशसमूहैरखण्डवृत्या स्वभावविभावपर्यायान् द्रवतिद्रोष्यति अदुद्र वदिति द्रव्यम् ।' आलापपद्धति सूत्र ९६
___ अर्थ-जो अपने-अपने प्रदेशसमूह के द्वारा अखण्डपने से अपने स्वभाव-विभावपर्यायों को प्राप्त होता है, होवेगा, हो चुका है, वह द्रव्य है। उसद्रव्य का जो भाव है वह द्रव्यत्व है। यहां पर वस्तु के सामान्यअंश को द्रव्यत्व कहते हैं, क्योंकि वह सामान्य ही विशेषों ( पर्यायों ) को प्राप्त होता है।
'स्वभावलाभावच्युतत्वादस्ति स्वभावः ॥१०६॥' आलापपद्धति
अर्थ-जिसद्रव्य का जो स्वभाव है उस स्वभाव से कभी भी च्युत नहीं होना, वह अस्ति स्वभाव ( सत्तास्वभाव ) है।
'जीवत्वं चैतन्यमित्यर्थः।' स. सि. २१७ । जीवत्व का अर्थ चैतन्य है।
इसप्रकार इन तीनों के लक्षण भिन्न-भिन्न हैं। द्रव्यत्व से प्रयोजन वस्तु के सामान्य अंश से है। सत्ता से प्रयोजन वस्तु के अस्तित्व का है । जीवत्व से प्रयोजन चैतन्यभाव का है। अतः इन तीनों का प्रयोजन भिन्न-भिन्न है । तथापि इन तीनों में प्रदेशभेद नहीं है । कहा भी है
गुणपज्जयदो दव्वं दव्वादो ण गुणपज्जया भिण्णा।
जह्मा तह्मा भणियं दव्वं गुणपज्जयमणणं ॥४२॥ [नयचक्र] अर्थ-गुण व पर्याय से द्रव्य और द्रव्य से गुण व पर्याय भिन्न नहीं है अर्थात् प्रदेशभेद नहीं है। इसलिये गुण व पर्याय से द्रव्य को अनन्य कहा है, अर्थात् गुण और गुणी में अभेदस्वभाव कहा है।
-जं. ग. 11-5-72/VII/........ "प्रसत्ता" वस्तु का धर्म कैसे है ? शंका-पररूप से जो वस्तु की असत्ता मानी गई है वह स्व का धर्म कैसे हो सकता है ? समाधान–प्रत्येक वस्तु अनेकान्तात्मक है। कहा भी है
"स्याद्वादो हि समस्त वस्तुतत्त्वसाधकमेकमस्खलितं शासनमर्हत्सर्वज्ञस्य । स तु सर्वमनेकांतात्मकमित्यनुशास्ति, सर्वस्यापि वस्तुनोऽनेकांतस्वभावत्वात् ।" स. सा. आत्मख्याति स्याद्वादाधिकार
अर्थ-स्याद्वाद समस्त वस्तुओं के स्वरूप को सिद्ध करनेवाला, अर्हत्सर्वज्ञ का एक अस्खलितशासन है। वह स्याद्वाद उपदेश करता है कि सर्व अनेकान्तात्मक है, क्योंकि समस्त वस्तु अनेकान्त स्वभाववाली हैं।
अनेकान्त का लक्षण निम्नप्रकार है---- "एकवस्तुवस्तुत्वनिष्पादक परस्परविरुद्धशक्तिद्वयप्रकाशनमनेकान्तः । अर्थ--एक वस्तु में वस्तुत्व को उपजानेवाली परस्परविरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना अनेकांत है।
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