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* "नियतिवाद का कालकूट ईश्वरवाद से भी भयंकर है । ईश्वरवाद में इतना अवकाश है कि यदि ईश्वर की भक्ति की जाय तो ईश्वर के विधान में हेरफेर हो जाता है। ईश्वर भी हमारे सत्कर्म और दुष्कर्मों के अनुसार ही फल का विधान करता है पर नियतिवाद अभेय है, आश्चर्य यह है कि इसे अनन्त पुरुषार्थ का नाम दिया जाता है। यह कालकूट कुन्दकुन्द, अध्यात्म, सर्वश, सम्यप्रदर्शन और धर्म की शक्कर में लपेट कर दिया जाता है। ईश्वरवादी साँप के जहर का एक उपाय ( ईश्वर ) तो है पर इस नियतिवाद कालकूट का इस भीषण दृष्टिविष का कोई उपाय नहीं, क्योंकि हर एक द्रव्य की हर समय की पर्याय नियत है।"
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तत्वार्यवृत्ति भूमिका पृ० ४८ से ५०; प्रो. महेन्द्रकुमार जंन न्यायाचार्य
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* "जिस समय जो पर्यायें आने वाली हैं, उनमें फेर-बदल नहीं हो सकता।" इसे मैं उनकी ( कानजी स्वामी की ) भ्रमबुद्धि का परिणाम मानता हूँ ।"
- पर्याय क्रमबद्ध भी होती हैं और अक्रमबद्ध भी पृ० १६ पं० वंशीधर शास्त्री, व्याकरणाचार्य
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
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" क्रमबद्ध पर्याय का प्रचार करना, मिथ्यात्व का प्रचार करना है, इसमें सन्देह नहीं ।"
- क्रमबद्ध पर्याय समीक्षा पृ० १५१ पं० मोतीचन्द कोठारी, व्याकरणाचार्य
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