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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
जैन सिद्धान्त के अनुसार असत्पर्याय का उत्पाद होता है जो पर्यायें प्रसतुरूप हैं उनका नियतक्रम या उनमें क्रमबद्धपना संभव नहीं है । इसीलिये जैन दर्शन में 'नियतिवाद' को एकान्त मिथ्यात्व कहा गया है ।
अधीरता को दूर करने के लिये या कुदेव प्रादि की पूजा के निषेध के लिये कहीं-कहीं पर होनहार को मुख्य करके उसका उपदेश दिया जाता है, किन्तु इतने मात्र से 'नियतिवाद' का एकान्तनियम सिद्ध नहीं हो जाता है ।
- जै. ग. 28-1-71 / VII / रो. ला. जैन
(१) ज्ञेय का स्वरूप
(२) ज्ञेयत्व द्रव्य में ही होता है
(३) द्रव्य की कथंचित् त्रैकालिक पर्यायों से श्रभिन्नता
(४) द्रव्य की प्रतिसमय कथंचित् पूर्णता
(५) कालिक पर्यायों का द्रव्य में व्यक्तितः प्रसद्भाव
शंका- ज्ञेय किसे कहते हैं ?
समाधान — जिसके आश्रय ज्ञेयत्व ( प्रमेयत्व ) गुण रहता है वह ज्ञेय है । जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य किसी भी ज्ञान ( प्रमाण ) का विषय श्रवश्य होता है वह ज्ञेयत्व ( प्रमेयत्व ) गुण है । कहा भी है
"प्रमेयस्य भावः प्रमेयत्वम्, प्रमाणेन स्वपररूप परिच्छेद्य ं प्रमेयम् ।" ( आलापपद्धति )
जो स्व और परस्वरूप प्रमाण ( ज्ञान ) के द्वारा जानने के योग्य हो वह प्रमेय ( ज्ञेय ) है । उस प्रमेय (ज्ञेय ) का भाव प्रमेयत्व (ज्ञेयत्व ) है ।
" प्रमाणगोचराः जीवादिपदार्थाः प्रमेयानि ।" ( प्र०र० मा० पृ० ५ )
यदि ज्ञेयत्व ( प्रमेयत्व ) गुण द्रव्य में न हो तो द्रव्य ज्ञान का विषय नहीं हो सकता ।
शंका - गुण और पर्यायें भी तो ज्ञान के द्वारा जानी जाती हैं, अतः उनमें भी शेयत्व गुण होना चाहिये ? मात्र व्रम्य में ज्ञेयश्व गुण क्यों कहा गया ?
समाधान - दस सामान्य गुणों में पांचवां प्रमेयत्व भी सामान्यगुण है । उन सामान्यगुणों के नाम निम्नप्रकार हैं
'अस्तित्वं, वस्तुत्वं द्रव्यत्वं, प्रमेयत्वं अगुरुलघुत्वं, प्रदेशत्वं, चेतनत्वमचेतनएवं मूर्त्तत्वमभूर्तश्वं द्रव्याणां दश सामान्यगुणाः । ( आलापपद्धति )
गुणद्रव्य के आश्रय रहता है, अन्य गुण व पर्याय के श्राश्रय से नहीं रहता है, क्योंकि गुण का लक्षण इस प्रकार है
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"द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ४१ ॥ " ( त० सूत्र अ० ५ ) जो निरंतर द्रव्य में रहते हैं मौर गुणरहित हैं, वे गुण हैं ।
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