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व्यक्तित्व और कृतित्व ।
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शंका-१७ जून १९६५ के जनसंदेश पृ० ९८ पर
'कालो सहाव णियई उव्वकय पुरिस कारणे गंता।
मिच्छत्तं ते चेवा समासओ होति सम्मत्त । गाथा उद्धृत की गई है जिससे यह सिद्ध किया गया है कि जो काल, स्वभाव, नियति पूर्वकृत ( अदृष्ट ) और पुरुषार्थ इन पांचों से कार्य को सिद्धि मानता है वह सम्यग्दृष्टि है और जो इन पांचों में से किसी एक से कार्य की सिद्धि मानता है वह मिथ्यादृष्टि है, क्या यह ठीक है ?
समाधान-यह ठीक नहीं है । इस गाथा का अभिप्राय यह है कि जो मकाल से निरपेक्षकाल को, अस्व. भाव से निरपेक्ष स्वभाव को, अनियति से निरपेक्ष नियति को, पुरुषार्थ से निरपेक्ष देवको, देवसे निरपेक्ष पुरुषार्थ से कार्य की सिद्धि ( उत्पत्ति ) मानता है वह एकान्त मिथ्याष्टि है और जो काल-अकाल, स्वभाव-अस्वभाव, नियतिअनियति, दैव-पुरुषार्थको परस्पर सापेक्ष मानता है वह सम्यग्दृष्टि है।
__ शंका-आर्ष ग्रंथों में भविष्य में होनेवाले २४ तीर्थंकरों का, पंचमकाल के अन्त में होनेवाले मुनि-आयिका श्रावक-श्राविका आदि का कथन पाया जाता है। क्या यह कथन असत्य है ? यदि सत्य है तो नियतिवाद सिद्ध हो जाता है। अनियति का कोई स्थान नहीं रहता?
समाधान--जो सर्वथा अनियति मानता है ऐसे एकान्त-अनियतिवादी मिथ्यादृष्टि के लिये तो उपयुक्त आपत्ति प्राती है, किन्तु स्यादादी के लिये कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह तो नियतिवाद और अनियतिवाद दोनों को मानता है । भावी २४ तीर्थंकरों की तथा पंचमकाल के अन्त में होनेवाले मुनि आदि को पर्याय नियत हैं उनका पार्षग्रन्थों में कथन पाया जाता है, किन्तु जो पर्याय नियत है उनका आर्ष ग्रन्थों में कथन होना असंभव है। इस हुडावस पिणी काल के पश्चात् जो हुंडावसर्पिणी आयेगा उसमें प्रथमतीर्थकर किसका जीव होगा यह कथन आर्षग्रन्थों में क्यों नहीं मिलता। इत्यादि ।
जो पर्याय अनियत होती है उन्हीं के साथ 'यदि' प्रादि शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे कोई पूछे कि क्या तुम कल दिल्ली जाओगे ?' यदि दिल्ली जाने की पर्याय नियत है तो यह उत्तर होगा कि 'मैं कल दिल्ली जाऊँगा'। यदि दिल्ली जाने की पर्याय अनियत है तो यह उत्तर होगा कि 'यदि दिल्ली से सूचना न आई तो दिल्ली जाऊंगा।' चार ज्ञान के धारी श्री गौतमगणधर ने समवशरण में राजा श्रेणिक को निम्नप्रकार उत्तर दिया था. जिससे सिद्ध है कि पर्याय अनियत भी होती है।
अतः परं मुहूतं चेदेव मेव स्थिति भजेत् ।
आयुषो नारकस्यापि प्रायोग्योऽयं भविष्यति ।। अर्थ-यदि अब आगे अंतर्मुहूर्त तक उनकी ऐसी ही स्थिति रही तो वे नरकायु का बंध करने योग्य हो जावेंगे।
जो मात्र एकांतनियतिवाद को मानने वाले हैं उनके अभिप्रायानुसार श्री गणधरदेव का उपर्युक्त उतर ठीक नहीं बैठेगा।
कोई पर्याय नियतनय से होती है जैसे अग्नि की उष्णपर्याय और कोई पर्याय-अनियति नय से होती है जैसे जल की उष्णपर्याय, क्योंकि यदि कारण मिलेंगे तो जल उष्ण हो जावेगा अन्यथा नहीं।
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