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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
६) अकार्य-कारणत्व धर्म है, गुण नहीं है । द्रव्याथिकनय की अपेक्षा प्रत्येकद्रव्य अकार्य व अकारण है, किन्तु पर्यायाथिकनय की अपेक्षा कार्य-कारण भी है। द्रव्य पूर्वपर्यायसहित कारण है और उत्तरपर्याय कार्य है। स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा भी है
पुथ्वपरिणामजतं कारण, भावेण वट्टले बन्छ । उत्तरपरिणामजुद तं चिय, कज्ज हवे णियमा ॥ २२२॥
(७) नित्यत्व भी धर्म है, गुण नहीं है । द्रव्यदृष्टि से द्रव्य नित्य है, किन्तु पर्यायाथिकनय से द्रव्य अनित्य है। श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने कहा भी है
उप्पत्ती व विणासो दव्वस्स. य पत्थि अस्थि सम्भावो। विगमुष्पावधुवत करेंति, तस्सेव पज्जाया ॥११॥पंचास्तिकाय
टीका-"द्रव्यापिणायामनुत्पादमनुच्छेदं सरस्वभावमेव द्रव्यं, तदेव पर्यायार्थापर्यणायां सोत्पावं सोच्छेवं चावबोद्धव्यम् ।"
___द्रव्य का उत्पाद या विनाश नहीं है सद्भाव ( नित्य ) है । उसी की पर्याय उत्पाद, विनाश और ध्र वता को करती रहती हैं । इसलिये द्रव्याथिकनय से द्रव्य उत्पादरहित, विनाशरहित, सत् ( नित्य ) स्वभाववाला जानना चाहिये । और वही द्रश्य पर्यायाथिक नय से उत्पादवाला तथा विनाशवाला ( अनित्य ) जानना चाहिये ।
(८) गुणस्व कोई गुण नहीं है । आलापपद्धति सूत्र ९ व ११ में सामान्य गुणों व विशेष गुणों का कथन है। उसमें 'गुणत्व' भी कोई गुण है, ऐसा कथन नहीं पाया जाता है। द्रव्य गुणवान है ऐसा कथन तो मार्षग्रन्थों में पाया जाता है, किन्तु गुणत्व भी कोई स्वयं पृथक् गुण है। ऐसा आर्षग्रन्थों में देखने में नहीं आया है।
-जे. ग. 26-2-76/VIII/ 01. ला. गैन, भीण्डर मिथ्यात्वी के समस्त गुण अशुद्ध परिणमन ही करते हैं शंका-सम्पादक सन्मतिसंदेश ने लिखा है कि "समस्त संसारियों के अनन्तभागप्रमाण गुण शुद्ध भी हैं, बाकी सब गुण अशुद्ध हैं।" क्या संसारी मिथ्यादृष्टि जीवों के गुण शुद्ध हो सकते हैं ?
समाधान-संसारी मिथ्यादृष्टि जीव के सभी भाव अशुद्ध होते हैं। श्री अमृतचन्द्राचार्य ने समयसार
याति में कहा भी है-"सर्वएवाज्ञानमया अज्ञानिनो भावाः।" अज्ञानी मिध्यादृष्टि के सर्वभाव ( द्रव्य. गण. पर्याय ) अज्ञानमय अर्थात् अशुद्ध होते हैं । यदि शंकाकार यह लिख देता कि मिथ्यादृष्टि के कौन-कौन गुण शुद्ध होते तो विशेष विचार हो सकता था। सन्मतिसंदेश भी मेरे पास नहीं है। मात्र शंका के आधार पर उत्तर दिया गया है।
-ज'. ग. 22-4-76/VIII/ जे. एल. जैन
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