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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
को मोक्ष नहीं होता है. क्योंकि उनके उत्तमसंहनन का अभाव है तथा वे वस्त्र का त्याग नहीं कर सकतीं और वस्त्र का ग्रहण भाव प्रसंयम का अविनाभावी है।
अंतिमतिय संहण्णस्सुदओ पुण कम्मभूमिमहिलाणं ।
आदिमतिगसंहडणं गत्यित्ति जिणेहिं णिद्दिटुं ॥ ३२ ॥ गो. फ. अर्थ-कर्मभूमियों की स्त्रियों के अन्त के तीन अर्द्धनाराचादि संहननों का ही उदय होता है । वज्रवृषभनाराचसंहनन आदि प्रथम तीनसंहनन कर्म-भूमिया स्त्रियों के नहीं होते हैं। ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है।
'न तासां भावसंयमोऽस्ति भावासंयमाविनाभावि वस्त्राद्य पादानान्यथानुपपत्ते ।' धवल पु. १ पृ. ३३३ ।
उन द्रव्य स्त्रियों के भाव संयम नहीं है, क्योंकि भावसंयम के मानने पर, उनके भाव असंयम का अविनाभावी वस्त्रादिक का ग्रहण करना नहीं बन सकता है।
-पो. ग. 23-12-71/VII/ जै. म. जैन निरन्तर मोक्ष जाने पर भी जीवराशि का कमो प्रभाव नहीं होगा शंका-विदेहक्षेत्र से सदा आत्मा मुक्ति को जाने का क्रम सतत चालू है । अतः इस तरह मुक्ति जाने का क्रम चाल रहा तो एक दिन जगत् क्या जीव आत्मा से खाली नहीं हो जावेगा?
समाधान-जीवों का प्रमाण अनन्तानन्त है। जिसमें से व्यय होने पर भी जिसका अन्त न हो उसको अनन्तानन्त कहते हैं, अन्यथा एक को भी अनन्त को संज्ञा हो जायेगी । षट्खण्डागम पुस्तक १, पृष्ठ ३९२ पर कहा भी है-'यदि सव्यय और निराय राशि को भी अनन्त न माना जावे तो एक को भी अनन्त के मानने का प्रसंग आ जायेगा। व्यय होते हुए भी अनन्त का क्षय नहीं होता है, यह एकान्त नियम है।' षट्खण्डागम पुस्तक ४, पृष्ठ ३३८ पर कहा है-'व्यय के होते रहने पर भी अनन्तकाल के द्वारा भी जो राशि समाप्त नहीं होती है, उसे महर्षियों ने 'अनन्त' इस नाम से विनिर्दिष्ट किया है।'
-प्. सं. 30-1-58/VI/ म. रा. घोड़के; परली बैजनाथ
संसारी जीवराशि का कमी प्रभाव नहीं होगा शंका-लोक में जीव अनन्तानन्त हैं फिर भी वे अपने प्रमाण में जितने हैं उतने ही हैं। नूतन जीव उत्पन्न नहीं होता है। इनमें से ६०८ जीव ६ माह ८ समय में निरंतर मोक्ष जा रहे हैं जिसके कारण इन जीवों की संख्या में न्यूनता अवश्य पड़ेगी। इस क्रम से अनन्त कल्पकाल व्यतीत होनेपर संसार से जीवों का अभाव होना चाहिये।
समाधान-यद्यपि जीव दुतन उत्पन्न नहीं होते और मोक्ष जाने से संसारी जीवों के प्रमाण में न्यूनता भी आती है, किन्तु जीवों का प्रमाण अनन्तानन्त होने से संसार से जीवों का कभी भी प्रभाव नहीं होगा। आय बिना व्यय होने पर भी जो राशि समाप्त न हो उसको अनन्तानन्त कहते हैं यदि ऐसा न माना जावे तो 'एक' संख्या को भी अनन्तानन्त होने का प्रसंग आ जावेगा । धवल पुस्तक १ पृ. ३९२, पुस्तक ४ पृ० ३३८ ।
-जं. सं. 27-11-58/V/ आ. कु. जैन, बड़गांव ( टीकमगढ़)
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