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[ पं० रतनचन्द जैन मुस्तार: अर्थ-आदेश प्रर्थात् मार्गणाप्ररूपणा की अपेक्षा गत्यानुवाद से नरकगति, तियंचगति, मनुष्यगति, देवगति और सिद्धगति है।
क्योंकि गतिमार्गणा का एक भेद सिद्धगति भी है अतः सिद्धभगवान में गतिमार्गमा का उल्लेख है।
णाणाणुवादेण अस्थि मविअण्णाणी सुद-अण्णाणी विभंगणाणी, आभियणिबोहियणाणी, सुदणाणी, ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी चेदि ॥ ११५॥
अर्थ-ज्ञानमार्गणा के अनुवाद से मतिअज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, प्राभिनिबोधक ज्ञानी श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी जीव होते हैं।
ज्ञानमार्गणा के आठ भेदों में से केवलज्ञान भी एक भेद है जो क्षायिक ही होता है और सिद्धभगवान में केवलज्ञान होता है, इसलिये सिद्धभगवान में ज्ञानमार्गणा का कथन किया गया है।
वंसणाणवावेण अस्थि चक्खुवंसणी अचवखुबंसणी ओधिवंसणी केवलदसणी चेदि ॥ १३१॥
अर्थ-दर्शनमार्गणा के अनुवाद से चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के धारण करने वाले जीव होते हैं । १३१ ।।
यहां भी केवलदर्शन की अपेक्षा से सिद्धभगवान के दर्शनमार्गणा कही गई है।
सम्मत्ताणुवादेण अत्थी सम्माइट्ठी खइयसम्माइट्ठी वेवगसम्माइट्ठी उवसम-सम्माइट्ठी सासणसम्माइट्ठी सम्मा. मिच्छाइट्ठी मिच्छाइट्ठी चेदि ॥ १४४ ॥
अर्थ-सम्यक्त्वमार्गणा के अनुवाद से सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्याइष्टि और मिथ्याष्टिजीव होते हैं ॥ १४४ ।।
सम्यक्त्वमार्गणा के क्षायिकसम्यक्त्व आदि छह भेदों में से क्षायिकसम्यक्त्व सिद्धभगवान के पाया जाता है इसलिये सम्यक्त्वमार्गणा का अस्तित्व कहा गया है।
आहाराणुवादेण अस्थि आहारा मणाहारा ॥ १७५ ॥ अर्थ-आहारमार्गणा के अनुवाद से आहारक और अनाहारकजीव होते हैं ॥ १७५ ।। सिद्धभगवान अनाहारक हैं, अतः उनमें आहारकमार्गणा का भी कथन संभव है।
उपयुक्त पांच मार्गणाओं में से प्रत्येक का एक भेद सिदभगवान में पाया जाता है अतः उनके अस्तित्व का उल्लेख किया गया है किन्तु शेष ९ मार्गणाओं के अवान्तर भेदों में से कोई भी भेद सिद्धभगवान में नहीं पाया जाता है अतः शेष मार्गणाओं का निषेध किया गया है। जैसे संयममार्गणा के अनुवाद से १-सामायिकशुद्धि संयत, छेदोपस्थापनाशुद्धि संयत, परिहारशुद्धि संयत, सूक्ष्मसांपरायशुद्धि संयत, यथाख्यातविहारशुद्धि संयत, ये पांच प्रकार के संयत तथा संयतासंयत और असंयत जीव होते हैं। संयममार्गणा के उपर्युक्त सात भेदों में से क्षायिकसंयम कोई भेद नहीं है और नवकेवललब्धि में क्षायिकचारित्र है, प्रतः सिद्धभगवान में संयममार्गणा का निषेध किया गया । जिपकार सम्यक्त्वमार्गणा का अवान्तर भेद क्षायिकसम्यक्त्व है उसप्रकार संयममार्गणा के प्रवान्तर भेटों में से
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