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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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दिखाई देती है, उसीप्रकार एकान्त मिथ्यात्व से ग्रसित प्राणी को अनेकान्तात्मक वस्तु भी एकान्त ही दिखाई देती है। ऐसे प्राणी के लिये स्याद्वाद से मुद्रित जिनवाणी परम औषधि है। यदि वह एकान्तवाद से दूषित श्रुतरूपी कूपथ का सेवन करेगा तो संसाररूपी रोग बढ़ता ही जावेगा।
-जै. ग. 13-12-62/X/ डी. एल. शास्त्री मात्र प्रात्मयोग्यता से ही मोक्ष मानना एकान्त मिथ्यात्व है शंका-क्या मात्र आत्मयोग्यता से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है या अनुकूल बाह्य निमित्तों की भी आवश्यकता है ?
समाधान-मात्र आत्मयोग्यता से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसा एकान्तनियम नहीं है। मोक्षप्राप्ति के लिये अनेक कारणों में से एक कारण आत्मयोग्यता भी है। कार्य की सिद्धि अनेक कारणों से हो कारण से कार्य की सिद्धि नहीं होती।' जितने भी भव्यजीव हैं उन सबमें मोक्षप्राप्ति की योग्यता है। कहा भी है-'जो जीव सिद्धत्व अर्थात् सर्वकर्म से रहित मुक्तिरूप अवस्था के पाने के योग्य हैं वे भव्य सिद्ध हैं।" विशेषार्थ में पं० कुलचन्दजी ने १९३९ में लिखा है-'सिद्ध अवस्था की योग्यता रखते हुए भी तदनुकूल सामग्री के नहीं मिलने से सिद्ध पद की प्राप्ति नहीं होती है। यदि मात्र आत्मयोग्यता से ही मोक्षप्राप्ति होती तो सब ही भव्य जीव मोक्ष में होते और संसार में भव्यों का अभाव हो जाने से अभव्यों के प्रभाव का प्रसंग आ जायगा। इसप्रकार संसारी जीवों के अभाव से मुक्त जीवों के प्रभाव का भी प्रसंग आ जायगा क्योंकि समस्त पदार्थ अपने प्रतिपक्षसहित उपलब्ध होते हैं इस नियम के अनुसार प्रतिपक्ष के अभाव में विवक्षित पदार्थ का भी अभाव हो जायगा (ध० पु. १४ पृ० २३४; ज० ध० पु. १ पृ० ५२-५३ )।
मुक्तिप्राप्ति के लिये प्रात्मयोग्यता के साथ-साथ मनुष्यपर्याय, द्रव्य पुरुषवेद, वज्रवृषभनाराचसंहनन, उत्तम कूल आदि द्रव्य, क्षेत्र, काल और सम्यग्दर्शनादि भाव की भी आवश्यकता है । अष्टसहस्री कारिका ८८ में भी कहा है कि देव और पुरुषार्थ दोनों से मोक्ष की सिद्धि होय है। अतः मात्र उपादान की योग्यता से कार्य की सिद्धि मानने वालों के एकान्त मिथ्यात्व का दूषण पाता है। जैनधर्म का मूल सिद्धान्त अनेकान्त है। उसको नहीं छोड़ना चाहिये। मात्र आत्म-योग्यता से मुक्ति मानने पर स्त्री ( महिला ) की मुक्ति का निषेध नहीं हो सकेगा, जिनके पूर्व संस्कार महिला-मुक्ति के हैं वे ही संस्कारवश मात्र आत्मयोग्यता से मुक्ति मानते हैं ।
-पो. ग. 5-12-63/IX/ पन्नालाल म्लेच्छों के मोक्ष का प्रभाव
शंका-म्लेच्छ उसी भव से मोक्ष जा सकता है या नहीं ?
समाधान-कर्मभूमिज म्लेच्छ दो प्रकार के हैं। पांच म्लेच्छ खंडों में उत्पन्न होने वाले म्लेच्छ और प्रार्यखण्ड में उत्पन्न होनेवाले शक, यवन आदि म्लेच्छ । आर्यखण्ड के म्लेच्छ तो मुनिदीक्षा के भी योग्य नहीं हैं, क्योंकि पाखण्ड के चार वर्गों में से उत्तम तीनवर्ण वाले दीक्षा के योग्य हैं [ प्रवचनसार ] म्लेच्छ खण्ड में उत्पन्न होने
१. "सामग्री जनिका, नॅकं कारणं" (रा. वा. अ. ५ सू. १७) 2. "सिद्धत्तणस्स जोग्गा जे जीवा ते हवंति भवसिद्धा। [ध. पु. १ पृ. १५१ तथा गो. जी. ५५० ]
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