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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
में ज्ञानदर्शन का प्रभाव होता है तो हो जाओ सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यावत जीव द्रव्य में रहने वाले और उसके अविनाभावी ज्ञान-दर्शन का प्रभाव मानने पर जीवद्रव्य के विनाश का प्रसंग प्राप्त होता है।
-पबाचार/ज. ला. जैन, भीण्डर लब्ध्यपर्याप्तक के उपयोग रहित अवस्था भी संभव है शंका-क्या यह भी सम्भव है कि किसी लब्ध्यपर्याप्तक को कभी दोनों में से कोई भी उपयोग न हो?
समाधान-यह भी सम्भव है कि लब्ध्यपर्याप्तक के किसी समय ज्ञानोपयोग या दर्शनोपयोग में से कोई भी न हो, मात्र क्षयोपशम ( लब्धिरूप ) हो।
-पन 30-9-80/ ज. ला. जैन, भीण्डर दर्शनोपयोग व सम्यग्दर्शन में भेद शंका-पंचास्तिकाय गाथा ४० में दर्शनोपयोग को जीव से अपृथग्भूत कहा है। जब दर्शनोपयोग जीव से अपृथग्भूत है तो सम्यग्दर्शन भी जीव से अपृथग्भूत होगा। जब दर्शनोपयोग और सम्यग्दर्शन दोनों जीव से अपृथग्भूत हैं तब इन दोनों में एकत्व का प्रसंग क्यों नहीं आवेगा?
समाधान-यद्यपि संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजन आदि की अपेक्षा से दर्शनोपयोग गुण तथा जीवद्रव्य सीमेंट तथापि प्रदेश की अपेक्षा दर्शनोपयोग गुण और जीवद्रव्य गुणी में भेद नहीं है, क्योंकि जो प्रदेश गणी के हैं उन्हीं प्रदेशों में गुण रहता है, गुण के पृथक् प्रदेश नहीं होते हैं । अतः दर्शनोपयोग को जीव से अपृथग्भूत कहा है । कहा भी है
"गुणगुण्यादिसंज्ञादि-भेदाद भेदस्वभावः ॥ ११२ ॥ गुणगुण्याय कस्वभावावभेद-स्वभावः ॥ ११३॥"
सम्यग्दर्शन भी जीव के श्रद्धागुण को पर्याय है अतः सम्यग्दर्शन भी जीवद्रव्य से प्रदेश की अपेक्षा अपृथाभूत है, किन्तु संज्ञा, संख्या, लक्षण, प्रयोजन की अपेक्षा सम्यग्दर्शन व जीवद्रव्य में भेद है।
प्रत्येक गुण का कार्य भिन्न-भिन्न है । दर्शनगुण का कार्य सामान्य अवलोकन है। जैसाकि कहा है"सामान्यग्राहि दर्शनम् ।" किन्तु सम्यग्दर्शन का कार्य तत्त्वार्थश्रद्धान है । जैसा कहा है
"तत्त्वार्यश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।"
"दर्शनोपयोग और सम्यग्दर्शन में लक्षण भेद होने से दोनों एक नहीं हो सकते हैं । किन्तु दोनों जीवप्रदेश के आश्रित होने से दोनों के प्रदेश अपृथग्भूत हैं।"
-जे. ग. 15-6-72/VII/ रो. ला. मित्तल ज्ञान का पर पदार्थों के साथ ज्ञेयज्ञायक तथा निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है
बाह्य पदार्थों में उपयोग के जाने से ज्ञान का नाश नहीं होता
शंका-क्या उपयोग का बाह्य पदार्थों के साथ कोई संबंध नहीं है ? यदि उपयोग बाह्य पदार्थों में जाता है तो क्या उपयोग का मरण हो जाता है ?
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