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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
११०० ] संवर तत्त्व
संवर निर्जरा के हेतु शंका-संवर और निर्जरा करने के लिये क्या-क्या करना होगा ? उसके लिये क्या-क्या आवश्यक है ?
समाधान-संवर और संवरपूर्वक निर्जरा ये दोनों मोक्षमार्ग हैं, क्योंकि बंध के कारणों का अभाव तथा निर्जरा इन दोनों के द्वारा समस्तकर्मों का अत्यन्त क्षय हो जाना ही तो मोक्ष है। कहा भी है
"बंधहेत्वाभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः ॥२॥" ( त० सू० अ० १०)
बंध के हेतु ( कारण ) के अभाव ही का नाम संवर है। जिन-जिन प्रकृतियों के बंध के हेतु का प्रभाव हो जायगा उन-उन प्रकृतियों का संवर हो जायगा, जैसे मिथ्यात्वोदय से सोलह प्रकृतियों का बंध होता है और अनन्तानुबंधी कषायचतुष्क के उदय में २५ प्रकृतियों का बंध होता है। सम्यग्दर्शन हो जाने पर मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधी कषायचतुष्क के उदय का अभाव हो जाने के कारण, उनके हेतु से बंधने वाली ४१ प्रकृतियों का बंध रुक जाता है अर्थात् संवर हो जाता है । इसीप्रकार अन्य कषायोदय तथा योग इनके अभाव में भी संवर हो जाता है।
मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांच बंध के कारण हैं जैसा तत्त्वार्थसूत्र अष्टम अध्याय में कहा है
"मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमावकषाययोगा बंधहेतवः ॥१॥" जब ये पांच बंध के कारण हैं तो उनके प्रतिपक्षी 'सम्यग्दर्शन, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग' मोक्ष के कारण होने चाहिये अर्थात् संवर और निर्जरा के कारण है। श्री विद्यानन्द स्वामी ने श्लो. वा. म.८ सूत्र १ को टीका में कहा है
तद्विपर्ययतो मोक्षहेतवः पंचसूत्रिताः । सामर्थ्यावत्र नातोस्ति विरोधः सर्वथा गिराम् ॥३॥
अर्थ-मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इनसे उलटे सम्यग्दर्शन, विरति, अप्रमाद, अक्षय और प्रयोग ये पांच मोक्ष के कारण कहे गये हैं। यहाँ पर यह अर्थ सामर्थ्य से निकलता है, इसमें कोई विरोध नहीं है। ऐसा दिव्यध्वनि में कहा गया है।
सम्यग्दर्शन हो जाने पर ४१ प्रकृतियों का संवर हो जाता है। देशव्रत हो जाने पर दस प्रकृतियों का, महाव्रत होने पर चार प्रकृतियों का, अप्रमत्त होने पर ६ प्रकृतियों का, अकषाय होने पर ५६ प्रकृतियों का और अयोग होने पर एक प्रकृति का संवर हो जाता है। इसप्रकार सम्यग्दर्शनादि पांच कारणों के द्वारा समस्त १२० बंधयोग्य प्रकृतियों का संवर हो जाता है।
अथवा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों संवर और निर्जरा के कारण हैं। तत्त्वार्थसूत्र प्रथम अध्याय में कहा भी है
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