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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १०६३ उपलब्ध होते हैं, वैसे ही तप अभ्युदय ( सांसारिक वैभव ) और कर्मक्षय इन दोनों का कारण है ऐसा मानने में क्या विरोध है अर्थात् कोई विरोध नहीं। इसी बात को इष्टोपवेश ग्रंथ में भी कहा है
यत्र भावः शिवं वत्ते, द्योः कियट्रवतिनी।
यो न्यत्याशु गव्यूति, क्रोशार्धे कि स सीवति ॥४॥ अर्थ-जो भावमोक्ष दे सकता है उसके लिये स्वर्ग देना कितनी दूर है ? वह तो उसके निकट ही समझो। जैसे जो भार को दो कोस तक आसानी और शीघ्रता के साथ ले जा सकता है तो क्या वह अपने भार को आधा कोस ले जाते हुए खिन्न होगा ? नहीं, भार को ले जाते हुए खिन्न न होगा। बड़ी शक्ति के रहते हुए मल्प कार्य का होना सहज अर्थात् सरल ही है। .
इसी की टीका में निम्न श्लोक दिया गया है
"गुरूपदेशमासाद्य, ध्यायमानः समाहितः। अनन्तशक्तिरात्मा सः भुक्ति मुक्ति च यच्छति ॥"
अर्थ-गरु के उपदेश को प्राप्तकर सावधान हए प्राणियों के द्वारा चिन्तवन किया गया यह अनन्त शक्तिवाला आत्मा चितवन करने वाले को भुक्ति और मुक्ति प्रदान करता है । श्री कुन्दकुन्द भगवान भी कहते हैं शुभोपयोग से देवेन्द्र आदि के सुख तथा निर्वाण की प्राप्ति होती है
संपज्जदि णिग्वाणं देवासुरमणुयरायविहवेहिं ।
जीवस्स चरित्तादो दसणणाणप्पहाणादो ॥६॥ प्रवचनसार अर्थ-जीव को दर्शन-ज्ञान प्रधान चारित्र से देवेन्द्र असुरेन्द्र और नरेन्द्र के वैभवों के साथ निर्वाण प्राप्त होता है।
एसा पसत्यभूवा समणाणं वा पुणो घरस्थाणं । चरिया परेत्ति भणिवा ताएव परं लहदि सोक्खं ॥२५४॥ प्रवचनसार
अर्य-यह प्रशस्तचर्या ( शुभोपयोग ) श्रमणों के गौण होती है और गृहस्थों के मुख्य होती है। ऐसा जिन आगम में कहा है। उसी से गृहस्थ परमसौख्य को प्राप्त होते हैं।
इसकी टीका में श्री अमृतचन्द्र सूरि कहते हैं
"गृहिणो तु समस्त विरतेरभावेन शुद्धात्मप्रकाशस्याभावात कषायसदभावात प्रवर्तमानोऽपि स्फटिकसंपर्केगाकंतेजस इबैंधसा रागसंयोगधे शुद्धात्मनोऽनुभवनात्क्रमतः परमसौख्यकारणत्वाच्च मुख्यः।
___ अर्थ-वह शुभोपयोग गृहस्थों के तो, सर्वविरति के अभाव से शुद्धात्म प्रकाशन का अभाव होने से कषाय के सद्भाव के कारण प्रवर्तमान होता हुअा भी, मुख्य है, क्योंकि जैसे इंधन को स्फटिक के सम्पर्क से सूर्य के तेज का अनुभव होता है, और क्रमश: परमनिर्वाणसौख्य का कारण होता है ।
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