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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १०१३
समाधान-शब्द को यदि गुण माना जाय तो उसका कभी नाश नहीं होना चाहिये । स्पर्श, रस, गंध, वर्ण के सदृश शब्द भी पुद्गल की प्रत्येक अवस्था में रहना चाहिये, किन्तु ऐसा नहीं है । स्कन्धों के परस्पर टकराने से शब्द उत्पन्न होता है। श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा भी है
सम्वेसि खंधाणं जो अंतो तं वियाण परमारण । सो सस्सदो असद्दो एक्को अविभागी मुत्तिभवो ॥७७।। आदेसमेत्तमुत्तो छादुचदुक्कस्स कारणं जो दु। सो ऐओ परमाणू परिणामगुणो संयमसद्दो ॥७॥ सद्दो खंधप्पभवो परमाणु संगसंघावो ।
पुढे सु तेसु जायदि सद्दो उप्पादिगो णियदो ॥७९॥ पंचास्तिकाय यहां पर गाथा ७७ व ७८ में यह बतलाया गया है कि परमाण स्वयं अशब्द है । गाथा ७६ में बतलाया है कि शब्द स्कन्धजन्य है। स्कन्धों के परस्पर टकराने से शब्द उत्पन्न होता है।
श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है-"शब्दयोग्यवर्गणाभिरन्योन्यमनुप्रविश्य समंततोऽभिव्याप्य पूरितेऽपि सकले लोके यत्र तत्र बहिरंगकारणसामग्रीसमुदेति तत्र तत्र ताः शब्दत्वेन स्वयं विपरिणमंत इति शब्दस्य नियतमुत्पाद्यत्वात स्कंधप्रभवत्वमिति ।" [पं० का० गा० ७९ त० बी० ]
शब्दयोग्य वर्गणाओं से समस्त लोक भरपूर होने पर भी जहाँ-जहाँ बहिरंग कारणसामग्री उदित होती है वहाँ-वहाँ वे भाषा वर्गणाएं शब्दरूप से स्वयं परिणमित होती हैं । इसप्रकार शब्द अवश्य ही उत्पाद्य है इसलिये वह स्कन्ध-जन्य है।
यहाँ पर यह बतलाया गया है कि शब्द के योग्य पुद्गलवर्गणाएँ अर्थात् शब्द का उपादान कारण तो लोक में सर्वत्र है, किन्तु निमित्त-कारण के अभाव में वे उपादान-कारणरूप वर्गणाएं शब्दरूप स्वयं नहीं परिणम सकतीं। जहाँ जहाँ निमित्तकारण मिलता है वहाँ-वहाँ वह उपादानकारणरूप वर्गणा ही शब्दरूप परिणमती हैं, अन्य पुद्गल स्कन्ध शब्दरूप नहीं परिणमता इसलिये स्वयं परिणमती हैं ऐसा कहा गया है। अंतरंग और बहिरंग कारणों से शब्द की उत्पत्ति होती है, इसलिये शब्द गुण नहीं हो सकता वह पर्याय है, क्योंकि गुण को उत्पत्ति या विनाश नहीं होता है।
सद्दो बंधो सुहुमो पूलो संठान भेवतमछाया ।
उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया ॥ १६ ॥ द्रव्यसंग्रह यहाँ पर 'सद्दो' शब्द द्वारा यह बतलाया गया है कि शब्द पुद्गलद्रव्य की पर्याय है इससे शब्द के गुण होने का निषेध हो जाता है।
-गै. ग. 15-6-72/VII/ रो. ला. जैन पुद्गल परमाणु में वैभाविक पर्याय शक्ति नहीं है शंका-परमाण पुद्गलद्रव्य को स्वभावपर्याय है तथा यणक आदि पुद्गल को विभावद्रव्यपर्याय है। यदि पुद्गल में विभावशक्ति न होती तो पुद्गलपरमाण, का बन्ध होकर विभावरूप परिणमन नहीं हो सकता था। अतः पुत्गलद्रव्य में वैभाविकद्रव्यशक्ति है ऐसा क्यों न माना जाय?
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