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। श्रद्धा का लहराता समन्दर
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श्रद्धार्चना
अंतःकरण में सतत् एक मधुर मुस्कान की संगीत गूंजती रहती है।
ऐसी महान् विभूति हमारे बीच में न रही है किन्तु स्मृतियाँ अमिट हैं। -महासती श्री प्रकाशकुंवर जी म. आज हमारे समाज में ही नहीं, सम्पूर्ण जैनशासन में एक
चारित्र आत्मा की जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति होना असंभव है। श्रमण संघ में बढ़ी है, आपकी कीर्ति,
अतः मेरी ओर से और मेरी सतियों की ओर से उस दिवंगत अहिंसा तप संयम की है प्रचण्ड शक्ति।
आत्मा को चिर शांति मिले। पुनीत पावन बन रही राजस्थान की धरती
इन्हीं भावनाओं के साथ भावभीनी श्रद्धा अर्पित करती हूँ। जन-जन के हृदय में बह रही “पुष्कर मुनि" की भक्ति॥
इस सृष्टि के सौंदर्य चेत्य में अनेक प्रकार के पुष्प खिलकर मुरझा जाते हैं। किन्तु मौलिकता तो उन्हीं पुष्पों की है, जो कि आस्था की अकम्प लौ उपाध्यायश्री जिसमें विशिष्ट गुणों का मूल्यांकन हो। अर्थात् अपनी महकती सौरभ के द्वारा दूर-दूर तक फैलकर मनुष्य के दिल-दिमाग को
-साध्वी श्री चारित्र प्रभा ताजगी से भर देती है। अंतर् हृदय ताजा-तरोजा कर देती है। तथा
(परम विदुषी श्री कुसुमवती जी म. सा. की सुशिष्या) हृदय को प्रफुल्लित एवं पल्लवित बनाती है।
२ अप्रैल, १९९३ की रात्रि को श्राविका ने आकर बतायाइसी प्रकार इस विश्व में अनेक जीवों का जन्म होता है और
उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. सा. का स्वर्गवास हो गया है। यह अंतकाल भी हो जाता है। लेकिन उन दो महान् वीर पुरुषों का
समाचार सुनते ही मस्तिष्क को एक गहरा आघात पहुँचा। समस्त जीवन कीमती है। जिनका सौरभित व्यक्तित्व सदैव प्रत्येक जीव को
साध्वीवृंद स्तब्ध रह गईं। एकदम हृदय से निम्न उद्गार फूट पड़े-- नया मार्गदर्शन कराते हैं। नई राह दिखाने में कुशल सहयोगी बन पाते हैं। हमारे श्रमणसंघ के उपाध्यायप्रवर पूज्य श्री पुष्कर मुनि जी
हाय, क्या अमर संघ आज अनाथ हो गया। म. का जीवन मिश्री जैसा मधुर एवं गुणों के पुरुष की तरह सुगन्ध गुलशन को छोड़कर क्या बागवा चला गया। से महकता था। साथ ही साथ आपश्री के जीवन में कितने महान् हे कृतांत! क्यों तुझे तनिक भी दया न आई। गुणों का समावेश है। अतः उसका वर्णन करने के लिए मेरे पास जो लूट करके प्राण हमारा क्यों हमसे ले गया। कोई शक्ति नहीं है। फिर भी मुख्य गुण अल्प शब्दों में लिखने के
आगम में चार प्रकार के फूल का रूपक देते हुए कहा है कि लिए मेरी लेखनी लिपिबद्ध हो रही है।
जिस फूल में ज्ञान की सुगंध और आचार की सुन्दरता हो, वह अतः आपश्री का सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में सर्वोपरि फूल संसार का श्रेष्ठ फूल है, फूलों में गुलाब का फूल फूलों का स्थान रहा है तथा व्यक्तित्व और साहित्य समाज रूपी सागर की राजा कहलाता है। क्योंकि उसकी भीनी-भीनी मधुर सुगंध और एक बूँद का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। किन्तु उपाध्यायप्रवर के कोमल सुन्दर पखुड़ियों का लावण्य देखने वाले का मन मुग्ध कर व्यक्तित्व के सद्गुणों की सुवास आज भी वर्तमान में और भविष्य देता है। जिस व्यक्ति का जीवन हँसते हुए खिले गुलाब की तरह में भी विकसित होती रहेगी। जिनके आत्म-साधना की तथा साहित्य
ज्ञान की सुगंध से महकता हो और आचार की सुन्दरता श्रेष्ठता से की स्मृति समाज के लिए प्रेरणाप्रद रहेगी। आपश्री के महान्
दर्शनीय हो, वह गुलाब की तरह सब का मन मोह लेता है। गुलाब व्यक्तित्व को समाज कभी भी भूल नहीं पाएगा।
का फूल जहाँ भी खिलता है। वहाँ के वातावरण को सुवासित कर
देता है, जन-जन के मन को तरोताजा बना देता है। सर्वत्र अपनी आपश्री की अद्वितीय साधना हरेक क्षेत्र में चहुँमुखी थी।
मधुर मुस्कान बिखेरना ही उसकी विशेषता है। आपश्री ने अनेक विषयों को सरल, सहज एवं सुगमतापूर्वक समझ सकें ऐसे साहित्य का सृजन किया है। आपके द्वारा लिखित जैन
उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी का जीवन भी एक खिला हुआ कथाएँ भाग १११ तक देखने में आयी हैं। आपकी काव्यकला
गुलाब का फूल था। जिस प्रकार पुष्प में सुगन्ध, चन्द्र में शीतलता, अनूठी थी। साथ ही काव्यकला में अनुपम ओज और तेज था। ।
दुग्ध में धवलता समाई हुई है। उसी प्रकार गुरुदेव का जीवन भी आप आशुकवि थे।
भरपूर गुणों से परिपूर्ण था। पूना संत सम्मेलन में मुझे दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जो
आप बादल नहीं, स्वयं आसमान थे, कि आज भी आपकी अमृतमय वाणी मेरे कर्ण कुहरों पर गुंजन
आप फूल नहीं, स्वयं ही उद्यान थे। करती है। पूर्व की स्मृतियाँ हृदय पटल पर अंकित होती हैं। आपका क्या कहने, आपकी योग साधना के, व्यक्तित्व, भाषा-शैली हृदय के तारों को झंकृत कर देती है। आप पुजारी नहीं, स्वयं भगवान थे।
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