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श्रद्धा का लहराता समन्दर
मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि
आपश्री जी की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। माँ बालीबाई की -
वात्सल्यमयी छाया में व पिता श्री सूरजमल जी के लाड़-प्यार में -अध्यात्मयोगिनी साध्वी उमराव कुँवर जी म. 'अर्चना'
बालक अम्बालाल अभिवृद्धि करने लगा। माँ की ममतामयी छाया
बचपन में ही उठ गई व पिता ही बच्चे को माँ का प्यार दे यत्र-तत्र जपयोगी परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. सा. घूमते रहे। श्रमण संस्कृति के उन्नायक, प्रेरक एवं एक दिव्य श्रमण थे। स्वभाव
अन्ततोगत्वा यह अम्बालाल रूपी कल्पवृक्ष सेठ अम्बालाल जी से सरल, सौम्य, प्रभावशाली, धर्मनिष्ठ एवं कर्त्तव्यनिष्ठ थे।
के आंगन में आरोपित किया गया। इसने वहाँ छाया भी दी, फल अनेकों बार आपके पावन दर्शनों का सौभाग्य मुझे सम्प्राप्त भी दिए। जब उनका घर खुशियों से भर गया तो वही कल्पवृक्ष श्री SD हुआ। जब भी मिलते, बड़ी आत्मीयता से तत्व चर्चा करते थे। ताराचंद्र जी म. के साधु समुदाय में स्थानांतरित हो गया व गुरु की 5 वास्तव में आप एक अप्रमत्त सन्त एवं विवेकशील साधक थे। छाया में वैराग्य की लहरें तरंगित हो उठीं।
आपका जैसा नाम था, वैसे ही आपके जीवन में गुण थे, संवत् १९८१ की ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन संयममूर्ति श्री अथवा गुणों के अनुरूप ही आपका नाम था।
ताराचन्द्र जी म. के चरण-कमलों में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार आज आपका पार्थिव शरीर हमारे मध्य नहीं रहा, लेकिन
की। जन-जन की शुभ-कामनाओं से नभ गूंज उठा। पिता सूरजमल आपका अध्यात्म-चिन्तन तथा आपके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण
का लाड़-प्यार बालक को भुला न सका क्योंकि उनके मानस में कार्य अमर हैं। आपका साधनामय आध्यात्मिक जीवन सबके लिये ।
अंकित थी एक विराट् अस्तित्व की खोज और छवि। बस उसी में प्रेरणादायक रहेगा। इन्हीं अन्तर्मन की भावनाओं के साथ उन
अपने आपको समर्पित कर दिया। इस योग्य शिष्यरत्न को पा गुरु महामना, जपयोगी उपाध्यायश्री के श्री चरणों में मेरी हार्दिक
| ताराचंद्र आह्लादित हो उठे। श्रद्धांजलि।
गुरुदेवश्री की छत्रछाया व उनकी वात्सल्यमयी दृष्टि में रह - बालक अम्बालालजी, अब मुनि पुष्कर था, संयम-यात्रा में उत्तरोत्तर
वृद्धि करने लगे। श्रमण बन जीवन के तीन लक्ष्य बनाए-संयमअद्भुत आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ।
साधना, ज्ञान-साधना व गुरु सेवा। म. श्री जी की साधना व -उपप्रवर्तिनी महासती श्री स्वर्णकान्ता जी म.
व्यक्तित्व दोनों महान् थे।
संयम के सोपान पर चढ़ते-चढ़ते आप इतने विराट् स्थल पर प्रायः लोग सन्तों की समता कल्पवृक्ष से करते हैं, किन्तु मेरी
पहुँच गए कि आपश्री जी के श्री मुख के निकले वचन अमोघ सिद्ध दृष्टि में महान संत कल्पवृक्ष से भी अधिक महान् होते हैं क्योंकि
होने लगे। १२.00 बजे का मंगलपाठ श्रोताओं को भौतिक और कल्पवृक्ष आज नहीं रहे, किन्तु सन्त समाज आज भी विद्यमान है।
आध्यात्मिक सिद्धि से भरने लगा। कल्पवृक्ष केवल भौतिक सम्पदाएँ ही प्रदान कर सकता है, किन्तु सन्त भौतिक सम्पदाओं से उपराम हो आध्यात्मिक सम्पदाओं से
आपकी ज्ञान-साधना का कोई सानी नहीं था। साहित्य के क्षेत्र लोगों को निहाल करते रहते हैं। पापों, परितापों और सन्तापों को । में आपका योगदान स्मरणाय हा सता का जीवन तो स्वय एक नष्ट कर आत्म-शांति प्रदान करते रहते हैं।
पाठशाला होता है, जिसमें निरन्तर ज्ञान सरिता का अवगाहन होता
रहता है। आप स्वभाव से अध्ययनशील थे एवं आप अधिकांश हमारे आराध्य श्री पुष्कर मुनिजी म. इसी परम्परा के एक
समय अध्ययन, मनन, चिन्तन व लेखन में व्यतीत करते थे। पुस्तकें महान संत थे। उन्होंने अपनी झोली तो ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूपी रत्नों
आपकी सबसे बड़ी सहयोगी थीं, जिनसे वे मौन वार्तालाप करते थे। से भरी ही थी, अपने शिष्यों की झोलियाँ भी संयम-ज्ञान व दृढ़ता के असीमित भण्डार से भर दी थीं।
आपकी संयम-साधना व ज्ञानाराधना को इतनी उत्कृष्टता पर DGE
देख आपकी गुरु के प्रति विनीतता का सहज ही अनुमान लगाया D. श्रमणसंघ के देदीप्यमान रत्न उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म.
जा सकता है। आपश्री जी अपने गुरु के प्रति विशेष रूप से 20% का जन्म मेवाड़ में हुआ। मेवाड़ की भूमि को वीर प्रसूता वसुन्धरा के नाम से स्मरण किया जाता है। यहाँ का प्राचीन इतिहास इतना
श्रद्धान्वत थे। गुरु-सेवा में मनसा-वाचा-कर्मणा लीन थे। गौरवशाली है कि इस भूमि के कण-कण में शौर्य, पराक्रम, बलिदान मानवीय चेतना के ऊर्ध्वमुखी सोपानों पर आरोहण करते हुए
और त्याग की अनेकों कहानियाँ छिपी हैं। इनके जन्म से मानो आपश्री जी ने जहाँ समाज को ज्ञान दिया, संयम-साधना दी, वहाँ मेवाड़ की वीरभूमि की माला में एक और मोती बढ़ गया। इसी । एक अमूल्य हीरा भी हमें प्रदान किया, वर्तमान आचार्य सम्राट् श्री मेवाड़ के क्रोड़ में बसे गोगुन्दा के निकट सिमटार नामक गाँव को । देवेन्द्र मुनि जी म. के रूप में जो हैं। जिसे उन्होंने स्वयं तराशा,
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