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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । श्री चन्द्रावती जी म.
लेखिका भी हैं। आपके द्वारा निम्न साहित्य प्रकाशित करवाया गया
है-भक्ति के स्वर, विनय वंदन (प्रार्थना) कमल प्रभात प्रार्थना, आपका जन्म उदयपुर जिले के वल्लभनगर गाँव में संवत्
मंगल के मोती, सत्यं शिवं सुन्दरम् (तप एवं दीक्षा गीत) ६ १९९३ में हुआ। आपके पिताश्री का नाम श्रीमान् पन्नालाल जी
अनानुपूर्वी, मुक्ति साधना और तप और जप। मेहता और माताजी का नाम श्रीमती लहरकुंवरबाई है। जिन्होंने दीक्षा ग्रहण की, दीक्षा नाम महासती श्री चन्द्रकुंवर जी था। आपने
आपने मेवाड़, मारवाड़, गुजरात और महाराष्ट्र में विचरण उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. को गुरु बनाकर बाल ब्रह्मचारिणी
कर धर्म की प्रभावना की है। परम् विदुषी साध्वी रत्नश्री पुष्पवती जी म. के पास संवत् २००४
महासती श्री प्रेमकुंवर जी म. माघ शुक्ला ३ को कपासन में दीक्षा ग्रहण की।
आपका जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले के गढ़सिवाना ग्राम आपने संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी भाषा का अच्छा अभ्यास
में संवत् १९७६ कार्तिक शुक्ला १३ दिनांक १३ नवम्बर १९१९ किया। पाथर्डी धार्मिक परीक्षा बोर्ड को सर्वोच्च परीक्षा “जैन
को हुआ। आपने पिता का नाम श्रीमान् मूलचंद जी गोलेच्छा और सिद्धान्ताचार्य" उत्तीर्ण की। प्रयाग की हिन्दी प्रथमा परीक्षा पास की, .
माताजी का नाम श्रीमती सुवटीबाई है। आपने उपाध्यायश्री पुष्कर प्राकृत भाषा का भी अध्ययन किया।
मुनिजी म. को गुरु बनाया और महासती श्री हर्षकंवर जी म. के आप काव्य और उपन्यास की रचनाकार भी हैं, "मगध का पास संवत् २००६ मार्ग शीर्ष कृ. ६ दिनांक ११ नवम्बर १९४९ राजकुमार मेघ" आपका खण्ड काव्य है और "दिव्य पुरुष" को पादरू (बाड़मेर) में दीक्षा ग्रहण की। ल भगवान् महावीर से संबंधित उपन्यास है। आपके कई लेख भी आपने मूल आगमों की स्वाध्याय, थोकड़े, चौपाई, रास आदि प्रकाशित हुए हैं। आपका प्रवचन तात्त्विक और मधुर होता
का अध्ययन किया। आपकी एक शिष्या है-महासती मदनकुंवर है, आपने मुख्यतया राजस्थान और मालव प्रदेश में विचरण जी म.। किया है।
आपने राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में - महासती श्री कौशल्याकुमारी जी म.
विचरण किया। मेवाड़ प्रदेश के उदयपुर जिले के अन्तर्गत नान्देसमा गाँव में
महासती श्री विमलवती जी म. आपका जन्म विक्रम संवत् १९९६ में हुआ। आपके पिताश्री का
आपका जन्म राजस्थान के बाड़मेर जिले के गाँव कानाना में नाम श्रीमान् लाड़जी पालीवाल और माताजी का नाम श्रीमती
संवत् १९९६ भाद्रपद कृष्णा ८ दिनांक १७अगस्त १९३९ को 3 वर्दीबाई पालीवाल था।
हुआ। आपके पिता जी का नाम श्रीमान् गेबीराम जी श्रीमाल और म आपने परमश्रद्धेय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. को अपना माताजी का नाम श्रीमती बक्सूबाई है। गुरु बनाया और महासती श्री सज्जनकुमारी जी म. के पास संवत्
___आपने उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. को गुरु बनाया और (२००५ वैशाख सुदी ५ को उदयपुर जिले के देवास गाँव में दीक्षा
महासती श्री हर्षकुंवर जी म. के सान्निध्य में राजस्थान के पादरू अंगीकार की। आप उपाध्याय गुरुदेवश्री की सांसारिक भानजी
(जि. बाड़मेर) में संवत् २००६ मार्गशीर्ष कृष्णा ६ दिनांक ११ लगती है।
नवम्बर १९४९ को दीक्षा अंगीकार की। नौ वर्ष की लघुवय में दीक्षित हो जाने पर आपने अध्ययन के
१० वर्ष की बालवय में दीक्षित होकर आपने स्वयं को प्रति स्वयं को समर्पित किया और क्रमशः अभ्यास करते हुए श्री
अध्ययन में समर्पित किया और हिन्दी, संस्कृत तथा सिद्धान्त में तिलोकरल स्थानकवासी जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड पाथर्डी की
निपुणता प्राप्त की। आपने पाथर्डी परीक्षा बोर्ड से जैन परीक्षाएँ दी और “जैन सिद्धान्त आचार्य" की सर्वोच्च उपाधि
सिद्धान्तशास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। परीक्षा उत्तीर्ण की।
आपके द्वारा निम्न साहित्य प्रकाशित किया गया है-श्री आपकी प्रवचन शैली मधुर और प्रभावपूर्ण है। आप मधुर ।
प्रतिक्रमण सूत्र, ज्ञानतत्व बोध, आस्था के मोती, गुरु गुणगान, गायिका है। अध्यात्म के प्रति आपकी गहरी रुचि है। आप संघ में । प्रेमगीत प्रार्थना सरगम आदि। आप अच्छी प्रवचनकी और समन्वय की साधिका हैं। आपका स्वभाव शान्त, मृदु और लेखिका है। मिलनसार होने से आपको अच्छी लोकप्रियता प्राप्त है। शिक्षण के
आपकी एक शिष्या है-महासती ज्ञानप्रभा जी म.| आपने प्रति आपकी बहुत गहरी दिलचस्पी है।
राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में तथा कर्नाटक आदि में आप मधुरवक्त्री और प्रवचनकर्ती होने के साथ ही अच्छी विचरण किया है।
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