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इस पार सुखों का सागर है जिसमें भव-पीड़ा की लहरें।
उस पार त्याग का मधुवन है आओ निर्भय होकर विचरें।
दीक्षा के पूर्व भौतिक ऐश्वर्य एवं सुख सुविधाओं में पलते इच्छाओं के राजकुमार श्री धन्नालाल बरडिया (वैराग्य अवस्था में आज के आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि)
संयम के असिधारा पथ पर चलते हुए आत्मिक आनन्द की अनुभूति में मगन दीक्षा के प्रारम्भिक पलों में बाल मुनि देवेन्द्र