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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
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का महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज
विश्व के मूर्धन्य मनीषियों ने जीवन के सम्बन्ध में गहराई से सम्बन्ध में चिन्तकों ने समय-समय पर विविध प्रकार के विचार चिन्तन किया है। यह सत्य है कि संस्कृति की भिन्नता के कारण व्यक्त किये हैं। चिन्तन की पद्धति पृथक्-पृथक् रही। पाश्चात्य संस्कृति भौतिकता
एक महान् दार्शनिक से किसी जिज्ञासु ने पूछा-जीवन क्या है ? प्रधान होने से उन्होंने भौतिक दृष्टि से जीवन पर विचार किया है,
दार्शनिक ने गम्भीर चिन्तन के पश्चात् कहा-जीवन एक कला है, तो पौर्वात्य संस्कृति ने अध्यात्म-प्रधान होने से आध्यात्मिक दृष्टि से
जो सुसंस्कारों को हटाकर सुसंस्कारों से संस्कृत किया जाता है। जीवन के सम्बन्ध में चिन्तन किया। भारतीय जीवन बाहर से अन्दर
जीवन को संस्कारित बनाने के लिए चरित्र की आवश्यकता है। की ओर प्रवेश करता है तो पाश्चात्य जीवन अन्दर से बाहर की
फ्रेडरिक सैण्डर्स ने सत्य ही कहा हैओर अभिव्यक्ति पाता है। महात्मा ईसा ने बाइबिल में जिस जीवन की परिभाषा पर चिन्तन किया है उस परिभाषा को शेक्सपियर ने
1 "Character is the governing element of life,
and is above genius." अत्यधिक विस्तार दिया है। वेद, उपनिषद्, आगम और त्रिपिटक } साहित्य में जीवन की जो व्याख्या की गयी है वह दार्शनिक युग में चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्त्व है और वह प्रतिभा अत्यधिक विकसित हो गयी। भारतीय संस्कृति में जीवन के तीन । से उच्च है। रूप स्वीकार किये हैं-ज्ञानमय, कर्ममय और भक्तिमय। वैदिक
बर्टल ने भी लिखा हैपरम्परा में जिस त्रिपुटी को ज्ञान, कर्म और भक्ति कहा है उसे ही जैन दर्शन में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र कहा है
"Character is a diamond that scratches every और बौद्ध परम्परा में वही प्रज्ञा, शील और समाधि के नाम से
other stone." विश्रुत है। यह पूर्ण सत्य है कि श्रद्धा, ज्ञान और आचार से जीवन चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर किसी पत्थर को काट में पूर्णता आती है। पाश्चात्य विचारक टेनिसन ने भी लिखा है- सकता है।
"Self-reverence, Sefl-knowledge and Self- चरित्र से ही व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरता है और चरित्र ही control, these three alone lead life to sovereign व्यक्ति को अमर बनाता है। भारत के महान् अध्यात्मवादी दार्शनिकों power."
ने व्यक्ति को क्षर और व्यक्तित्व को अक्षर कहा है। व्यक्ति वह है आत्मश्रद्धा, आत्मज्ञान और आत्मसंयम इन तीन तत्वों से जो आकार लौट जाता है, बनकर बिगड़ जाता है, किन्तु व्यक्तित्व जीवन परम शक्तिशाली बनता है।
वह है जो आकार लौटता नहीं, बनकर बिगड़ता नहीं। व्यक्ति मरता
है किन्तु व्यक्तित्व अमर रहता है। महास्थविर परमश्रद्धेय सद्गुरुवर्य राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने जीवन पर चिन्तन करते हुए लिखा
श्री ताराचन्दजी महाराज व्यक्तिरूप से हम से पृथक हो गये हैं है-जीवन का उद्देश्य आत्मदर्शन है और उसकी सिद्धि का मुख्य एवं एकमात्र उपाय पारमार्थिक भाव से जीव मात्र की सेवा करना
किन्तु व्यक्तित्व रूप से वे आज भी जीवित हैं और भविष्य में भी
। सदा जीवित रहेंगे। है। महादेवी वर्मा ने साहित्यिक दृष्टि से जीवन पर विचार करते हुए लिखा है-जीवन जागरण है, सुषुप्ति नहीं; उत्थान है पतन नहीं; महास्थविर श्री ताराचन्दजी महाराज का जन्म वीरभूमि मेवाड़ पृथ्वी के तमसाच्छन्न अन्धकारमय पथ से गुजरकर दिव्यज्योति से } में हुआ। मेवाड़ बलिदानों की पवित्र भूमि है, सन्त महात्माओं की साक्षात्कार करना है; जहाँ द्वन्द्व और संघर्ष कुछ भी नहीं है। जड़, 1 दिव्यभूमि है, भक्त औ कवियों की ब्रजभूमि है; एक शब्द में कहूँ तो चेतन के बिना विकास-शून्य है और चेतन, जड़ के बिना वह एक अद्भुत खान है जिसने अगणित रत्न पैदा किये। मेवाड़ आकार-शून्य है। इन दोनों की क्रिया-प्रतिक्रिया ही जीवन है। की पहाड़ी और पथरीली धरती में अद्भुत तत्त्व भरे हैं। वहाँ की स्वामी विवेकानन्द ने कहा है-जीवन का रहस्य भोग में नहीं,
जलवायु में विशिष्ट ऊर्जा है। वहाँ के कण-कण में आग्नेय प्रेरणा है
जिससे मानव अतीत काल से ही राष्ट्र व धर्म के लिए बलिदान त्याग में है। भोग मृत्यु है और त्याग जीवन है। सुकरात ने लिखा है-जीवन का उद्देश्य ईश्वर की भाँति होना चाहिए। ईश्वर का
होता रहा है, परोपकार के लिए प्राणोत्सर्ग करता रहा है। अनुसरण करते हुए आत्मा भी एक दिन ईश्वरतुल्य हो जायगी। मैंने अनुभव किया है, यहाँ का मानव चट्टानों की भाँति दृढ़ श्रेष्ठ जीवन में ज्ञान और भावना, बुद्धि और सुख दोनों का निश्चयी है, अपने लक्ष्य और संकल्प के लिए परवाना बनकर सम्मिश्रण होता है। टाल्सटाय ने लिखा-मानव का सच्चा जीवन तब प्राणोत्सर्ग करने के लिए भी तत्पर है। शंका और अविश्वास की प्रारम्भ होता है जब वह अनुभव करता है कि शारीरिक जीवन आँधियाँ उसे भेद नहीं सकतीं। साथ ही वह अन्य के दुःख और अस्थिर है और वह सन्तोष नहीं दे सकता। इस प्रकार जीवन के } पीड़ा को देखकर मोम की तरह पिघल जाता है। किसी की
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