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पुस्तक री प्रमुख प्रवचन मिनखपणा री मोल है। इण में मान री व्याख्या करतां प्रवचनकार कहयौ है "मिनख रूप में करोडूं-अरबां जीव धरती माथै फिर रहया है, पण वां में साचा मिनख किताक लाभसी? भारत जिसा मुल्क में नीं धरमा री कमी है नीं संप्रदायां री नीं साधुवा री कमी है, नी गुरुवां री अठै नीं नेतावां री तोटी है अर नीं उपदेसकां रौ। तामपण संप्रदायवाद, पंथवाद, पोथीवाद, जातिवाद, प्रांतवाद अर भाषावाद रा दानव भारत री छाती माथै मूंग दल रहया है। इण भांत आपण विचारां रै ओछापण रै कारण मिनखपणै रा टुकड़ा टुकड़ा होयग्या है। आपण सोचण री तरीकी ई गळत होयग्यी है।"
इंण प्रवचनां में इण भांत हर तरै सूं समझाय नै प्रवचनकार मिनख पण री ओळखाण करावण री कोशिश करी है।
इण कृति रा बाकी रा प्रवचन ई मानवोपयोगी अर आध्यात्मिकता सूं ओत प्रोत है। दाखला सरूप आचार अर विचार प्रवचन में प्रवचनकार कहयौ है
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
आचारः प्रथमो धर्मः आचारः परमंतपः। आचारः परमं ज्ञानमाचारत किं न सिद्धयति ?
आचार इज मोटी धरम है, आचार इज मोटी तप है, आचार इज मोटी ज्ञान है अर ज्ञान रौ स्रोत पण है। आचार सूं किसी काम नीं बण सकै? मिनखाजूण में सगळी सफळतावां आचार सूं मिळ सकै ।
इण भांत इण तीनूं कृतियाँ रा सगळा प्रवचनों में विचारों रा मोती भरया पड़या है। प्रवचनकार उपाध्यायश्री राजस्थानी भाषा रा आछा जाणकार हा । वर्षावास अर दूजा कई अवसरां माये वे ग्रामीण श्रोतावां आगढ़ राजस्थानी भाषा में इज वखाण देवता। आप री वखाण देवण री अर समझावण री शैली घणी प्रभावशाली ही । आपरा इण तीनूं संग्रहीं में जिको प्रवचन राजस्थानी में प्रस्तुत है, वे आपरी वक्तृत्वकला रा अनूठा नमूना है। म्हने आं पोथ्यां री अनुवाद करण रौ मौका मिल्यौ । उपाध्यायश्री री प्रेरणा ई आं पोथ्यां री सफलता रौ राज है।
जे कम्मे सूरा ते धम्मे सूरा
जो कर्म में शूरवीर समर्थ होते हैं, वे धर्म मार्ग में भी पराक्रमशाली और अग्रगामी होते हैं। समर्थ आत्मा हर क्षेत्र में अपनी प्रधानता स्थापित करता है। इसका जीवन्त उदाहरण है स्वयं भगवान महावीर का जीवन । देखिए
१. तीर्थंकर वर्द्धमान आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के पौत्र होकर फिर स्वयं अंतिम तीर्थंकर बने ।
२. भगवान महावीर प्रथम चक्रवर्ती भरत के पुत्र हुए फिर स्वयं प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती (२२ भव) बने
३. वे त्रिपृष्ट नामक अर्धचक्रवर्ती (१८वां भव) वासुदेव बनकर दीर्घकाल तक सांसारिक सुख-वैभव को भोगकर नरक में गये, तो नन्दनमुनि के (२४वां भव) रूप में एक लाख मासखमण तप कर समभावों में रमण करते हुए स्वर्ग के शिखर तक भी पहुँचे।
४. क्रूर सिंह (२०वां भव) के रूप में जन्म लेकर अत्यन्त क्रूरतापूर्ण प्राण वध करते हुए मांस भक्षण कर नरक गमन किया, तो तीर्थंकर के रूप में परम करुणाधर्म का उपदेश देते हुए विश्व की माता स्वरूप अहिंसा का सूक्ष्मतम उपदेश / आचरण किया।
५. उन्होंने अनेक बार (पूर्व भयों में) नरक-निगोद की अत्यन्त पीड़ादायी वेदनाएँ भोगी तो मोक्ष का परम सुख भी प्राप्त किया।
६. भगवान महावीर के जीव ने मिथ्यात्वग्रस्त होकर जीवों को मिथ्या उपदेश देकर नरकगामी बनाया तो क्षायिक सम्यक्त्व का स्पर्शकर रत्नत्रय रूप सद्धर्म का उपदेश देकर अगणित जीवों का उद्धार भी किया।
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-महावीर चरित्र के आधार पर
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