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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।।
जैन धर्म में दान : एक समीक्षात्मक अध्ययन
-महासती रल ज्योति (सुशिष्या साध्वी रत्न पुष्पवती जी म.)
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धनदान एक कल्पवृक्ष है। इसकी सैंकड़ों शाखा-प्रशाखाएँ हैं। सैंकड़ों रूप-स्वरूप हैं। महान् मनीषी उपाध्यायश्री के विविध प्रवचनों के आधार
पर दान के सर्वांग स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला यह सुव्यवस्थित सुसंगठित ग्रंथ मात्र एक प्रवचन पुस्तक नहीं होकर एक प्रकार से शोध ग्रंथ बन गया है। विद्वान् आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी की उत्कृष्ट सम्पादन कला का एक अद्भुत नमूना है।
प्रस्तुत पुस्तक के अन्तरंग स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला यह समीक्षात्मक आलेख पुस्तक का सर्वांग स्वरूप व्यक्त करता है। -संपादक 10. जैन धर्म में दान
अनुग्रह के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना दान है। (पृष्ठ SSS जो दिया जाए वह दान है। क्या दिया जावे? किसे दिया है १७०)।
जावे? कब दिया जावे? कहाँ दिया जावे? कैसे दिया जावे? देने अपने और दूसरे का उपकार करना अनुग्रह है। इस प्रकार का के परिणाम क्या निकलेंगे? आदि अनेक प्रश्न “दान” विषय पर अनुग्रह करने के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना दान समझना चिन्तन करने के साथ ही उपस्थित हो जाते हैं। यदि पाठक इन
चाहिए। (पृष्ठ १७१)। प्रश्नों का समाधान चाहता है। ऐसे ही अन्य अनेक प्रश्नों का समाधान चाहता है। दान के विषय में सर्वांगीण जानकारी प्राप्त
दूसरे पर अनुग्रह करने की बुद्धि से अपनी वस्तु का अर्पण करने की इच्छा रखता है तो उसे राजस्थान केसरी, अध्यात्म योगी
करना दान है। (पृष्ठ १७१)। उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. सा. के प्रवचन संग्रह "जैनधर्म में अपने और दूसरे पर अनुग्रह करने के लिए अपने अन्नपानादि 2800.00 दान : एक समीक्षात्मक अध्ययन" का अध्ययन करना चाहिए। द्रव्य समूह का पात्र में उत्सर्ग करना/देना दान है। (पृष्ठ १७१)। 3D मूलरूप में यह प्रवचन संग्रह जैनधर्म में दान पर दिए गए प्रवचनों
अपनी वस्तु का दूसरे पर अनुग्रह करने की बुद्धि से अर्पण 2000 का संग्रह है किन्तु इसमें अन्य धर्मों में दान विषयक विवरण भी
(त्याग) करना दान है। (पृष्ठ १७१)। -
यथास्थान दिए गए हैं। ऐसा करने से यह पुस्तक जैन धर्म में दान त तक ही सीमित न रहकर कुछ व्यापक हो गई है। इस संग्रह के धर्म वृद्धि करने की दृष्टि से दूसरे और अपने पर अनुग्रह 6 3 प्रवचनों को संपादित करते समय संपादक द्वय श्रमणसंघीय आचार्य करने वाली अपनी वस्तु का त्याग दान है, जिसे गृहस्थ व्रत रूप में
सम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. एवं समर्थ साहित्यकार श्री श्रीचंद अपनाते हैं। (पृष्ठ १७१) जी सुराणा “सरस" ने प्रवचनों को निबन्धों का स्वरूप प्रदान कर
अपने और दूसरे पर अनुग्रह करने के लिए जो दिया जाता है, 3 श्लाघनीय कार्य किया है।
वह दान है। (पृष्ठ १७१) इस प्रवचन संग्रह की विषय वस्तु की चर्चा करने से पूर्व यह
____स्व और पर के उपकार के लिए वितरण करना दान SoSD आवश्यक प्रतीत होता है कि दान की परिभाषा देख ली जावे। दान
है। (पृष्ठ १७१) का असली अर्थ समझ लिया जावे। कारण कि केवल यह कि जो 22 दिया जावे दान है, मान लिया जावे तो वह कदापि उचित नहीं
अपने श्रेय के लिए और दूसरों के सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय की होगा। कारण यह कि हम अपने लौकिक व्यवहार में प्रतिदिन समृद्धि के लिए इस प्रकार स्व पर-अनुग्रह के लिए जो क्रिया होती 50
आदान-प्रदान करते रहते हैं। एक-दूसरे को कुछ न कुछ देते रहते है, वह दान है। (पृष्ठ १७१) हैं। इस प्रकार का जो लेन-देन होता है, उसे दान के अर्थ में नहीं अनग्रहार्थ यानी अपने विशिष्ट गुण संचय रूप उपकार के
लिया जा सकता। तब फिर प्रश्न उपस्थित होता है कि दान का सही 5000200
लिए और दूसरों के सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि वृद्धि रूप उपकार 998 अर्थ क्या है। सामान्य रूप से यह कह सकते हैं कि वस्तु विशेष से
के लिए स्व-धन का, उत्सर्जन करना/देना दान है। (पृष्ठ १७१)
के लिए स्वधन का उत्सर्जन करना देना दान व DODS अपना स्वामित्व समाप्त कर अन्य ऐसे व्यक्ति को सौंप देना, जिसे उसकी आवश्यकता है-दान कह सकते हैं। इसमें त्याग की भावना
पर इन परिभाषाओं के संदर्भ में कुछ प्रश्न उपस्थित होते हैं। होनी चाहिए। वस्तु पर स्वामित्व परिवर्तन त्याग से ही होगा. यह तो
यथा-किसी के दबाव से त्याग करना, भय से, लाभ से, यश २० हमने अपनी बात कही। दान की शास्त्रीय परिभाषाओं के लिए इस ।
कामना से, किसी को नीचा दिखाने की भावना से, अपने आपको प्रवचन संग्रह का अवलोकन आवश्यक है। जो परिभाषाएँ दी गई
श्रेष्ठ सिद्ध करने की कामना से, किसी पर एहसान करने की है, वे इस प्रकार हैं :
भावना से त्याग करना भी क्या दान की श्रेणी में आता है ? वैसे DADS 00000000000
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