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| वागू देवता का दिव्य रूप
३७१ । कण्ठ गद्गद हो जाता है। मंत्र-साधना के दौरान आने वाली समस्त पापों के प्रणाशक हैं। और समस्त मंगलों (कल्याणकारक या विघ्न-बाधाएँ भी दूर हो जाती हैं। यह प्रत्यक्ष अनुभूत सत्य है। जो सुखदायक बातों) में प्रथम (प्रधान) मंगल है। मंत्र देवतात्मक होते हैं, वे वाचक होते हैं, दिव्य आत्माएँ उनका तात्पर्य यह है कि इस नमस्कार-महामंत्र का एकाग्रता, वाच्य होती हैं। यही मंत्र-साधना में सफलता की निशानी है।
श्रद्धाभक्ति, उत्साह और तन्मयतापूर्वक अखण्ड जाप करने से सभी आध्यात्मिक पथ पर आरोहण करने में भी मंत्र सहायक
पापकर्मों का नाश हो जाता है तथा पुण्यकर्म प्रबल होने से दुःख के जब साधक पर विपत्तियाँ, संकट, उपसर्ग और परीषह उमड़
स्थान में सुख, विपत्ति के स्थान पर सम्पत्ति, शूली के स्थान पर घुमड़ कर आते हैं, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर, मान,
सिंहासन, निन्दा के स्थान पर प्रशंसा, प्रसिद्धि, अधर्म और पाप के माया, द्वेष, राग आदि विभावों और परभावों का आक्रमण होता
स्थान पर धर्म और पुण्य की प्रबलता हो जाती है। अशान्ति का है, उस समग्र उसे रत्नत्रयरूप धर्म पर टिकना बहुत कठिन हो
स्थान समता और शान्ति लेती है। पुण्य प्रबल हो जाने से सारे ही जाता है। ऐसे समय में बड़े-बड़े साधकों के पैर लड़खड़ाने लगते हैं।
पासे सीधे पड़ने लगते हैं। जीवन का दृष्टिकोण ही बदल जाता है।
बुद्धि, मति, प्रेक्षा और दृष्टि भी सम्यक् हो जाती है। जीवन जीने ऐसे समय में भक्तिभावपरक प्रार्थनात्मक-आरुग्ग-बोहिलाभं
की सम्यक् कला आ जाती है। जन्म-जन्मान्तर के पाप, ताप, सन्ताप समाहिवरमुनमं दिंतु।' 'सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु' जैसे मंत्र साधक के
और पश्चात्ताप भी मिट जाते हैं। आध्यात्मिक विकास का भी आध्यात्मिक पथ पर आरोहण करने में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं।
आश्वासन मिलने लगता है। जैसे कि कहा हैपापकर्मनाशक और पुण्यकर्मवर्द्धक महामंत्र नवकार
"इक्को वि णमुक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स। इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति के जीवन में अशुभ (पाप) कर्मों
संसार-सायराओ, तारेइ नरं वा नारी वा॥" की प्रबलता होती है, पूर्वकृत पापकर्म के उदय से हर कार्य में विघ्न-बाधाएँ आती रहती हैं, पापकर्म के उदय से बीमारी उसका
वीतराग जिनेन्द्रों में श्रेष्ठ श्री वर्द्धमान महावीर को भावपूर्वक पीछा नहीं छोड़ती। निन्दा, मिथ्यादोषारोपण, आकस्मिक दुर्घटना, किया हुआ एक (मंत्रात्मक) नमस्कार भी नमस्कर्ता नर या नारी परस्पर कलह, मारपीट, आर्त्तध्यान, दारिद्रयपीड़ा, अभावग्रस्तता
। को संसार-सागर से पार करने (तारने) में समर्थ है। आदि होने की नौबत आ जाती है; ऐसे समय में 'णमोक्कार महामंत्र | अतः मंत्र-साधक को मंत्र विद्या से सम्बन्धित बाधक तत्वों से आश्वासन मिलता है-'एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो।' । और रहस्यों को जानना बहुत आवश्यक है। तभी वह मंत्रशक्ति का मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं' [ये पंचविध नमस्कार (मंत्र) सदुपयोग कर सकेगा, उससे आध्यात्मिक विकास भी साध सकेगा।
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* लम्बी यात्रा करने वाले अनेक पड़ावों पर रुक कर मार्ग में अनेक रातें ठहर कर अपने लक्ष्य तक
पहुँच जाते हैं। मोक्ष प्राप्ति मनुष्य का लक्ष्य है-मंजिल है। उसे प्राप्त करने के लिए कभी-कभी कई जन्म धारण करने पड़ते हैं। पूरा जीवन बिताना-मार्ग तय करना है और मृत्यु के बाद सबेरा होता
है तब दूसरे जन्म से यात्रा फिर शुरू हो जाती है। * आपत्ति संसार की सर्वश्रेष्ठ पाठशाला है जहाँ मनुष्य को अनुभव व गुणों की शिक्षा मिलती है। * संसार किसे कहते हैं ? जहाँ कोई किसी का न हो, यहाँ तक कि हम स्वयं भी अपने नहीं हैं, वही
स्थान संसार है। * अंहकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है।
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि
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