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नहीं, प्रत्यक्ष हानि भी है, जिसकी क्षतिपूर्ति अन्य कोई नहीं कर सकता। अतः मन को सुसंस्कृत बनने का अभ्यास कराना चाहिए। उसे हित अहित में, उचित-अनुचित में विवेक करना सिखाना चाहिए। अब तक जो मन समीपवर्ती लोगों की वृत्ति प्रवृत्ति देखता सुनता रहा, उसी की बन्दर की तरह नकल और तोते की तरह रटना करता रहा। अब उसे सुसंस्कारी और विवेकी तथा यत्नाचारी बनने का अभ्यास कराना है। तभी सच्चे अर्थों में मन पर विजय प्राप्त होगी!
जिस प्रकार गारूडी सांप को तथा मदारी बंदर को और सरकस में विविध पराक्रम दिखाने वाले शेर, हाथी और बनमानुष तक को भली भांति प्रशिक्षित करके ऐसा साथ लेते हैं कि वे दर्शकों का पर्याप्त मनोरंजन भी करते हैं और उन उन व्यक्तियों या कम्पनी को पर्याप्त आय भी होती है, साथ ही सिखाने वाले के कौशल की भी प्रशंसा होती है। इसी प्रकार मन को भी अनगढ़ से सुगढ़, कुसंस्कारी से सुसंस्कारी बनाया जा सकता है।
निरंकुश मन को नियंत्रित करना आवश्यक है।
मन की शक्ति अपार है। वही जीवन-सम्पदा का व्यवस्थापक है। वह आत्मा का मित्र या मंत्री भी है। उसे इतना अधिकार भी प्राप्त है कि वह अपने उपकरणों-साधनों का भला-बुरा मनचाहा उपयोग कर सकता है। इसलिए उस मन का अनगढ़ होना सचमुच दुभाग्यपूर्ण है। आत्मा द्वारा मन पर मन की गतिविधि पर अंकुश या चौकसी न रखने के कारण यह स्वच्छन्द और कुसंस्कारी बन जाता है जिस प्रकार महावत के बिना हाथी निरंकुश होकर चाहे जिस ओर चाहे जब चल सकता है तथा चाहे जिसका अनर्थ कर सकता है, यही निरंकुश मन के विषय में समझना चाहिए। हमारा सत्ताधीश आत्मा है, उसका साथी है- विवेक। दोनों मिल कर मन को सही दिशादर्शन, यथार्थ चिन्तन-मनन करने तथा यथार्थ इच्छा करने की शिक्षा दे सकते हैं, सन्मार्ग पर चलना सिखा सकते हैं। अप्रशिक्षित मन अनाड़ी भर है अवज्ञाकारी नहीं पूर्व अभ्यस्त दुर्गुणों और बुरी आदतों को छोड़ने तथा नये सिरे से सिखाये गये सद्गुणों का अभ्यास करने में पूर्व-अभ्यास या कुसंस्कार वश एक बार आनाकानी करेगा, मचल जाएगा, परन्तु उसे कठोर निर्देश आदेश दिया जाए, जो करणीय है, उसे करने को बाध्य किया जाए तो वह बदलने के लिए सहमत हो सकता है।
मन को सुसंस्कृत एवं सद्गुणरत करने हेतु चतुर्विध संयमाभ्यास कराओ
मन को कुसंस्कारों तथा पूर्व अभ्यस्त दुर्गुणों से विरत करने के लिए चार प्रकार के संयमों का अभ्यास बार-बार कराना चाहिए
१. विचार-संयम, २ समय-संयम ३ अर्थ संयम और ४. इन्द्रिय संयम (१) मन में जो भी विचार उन्हें उनका तत्काल परीक्षण किया जाए कि वे नीति-धर्म से युक्त, स्व पर हितकारक
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
एवं रचनात्मक है या नहीं? बेतुकी कल्पनाएँ या इच्छाएँ उठती हो तो तत्काल उन पर ब्रेक लगा देना चाहिए। गलत विचारों की गाड़ी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ने देनी चाहिए। (२) समय को हीरे मोतियों के समान मान कर उसका एक क्षण भी बर्बाद न होना चाहिए। उठने से लेकर सोने तक की समयचर्या ऐसी बनानी चाहिए, जिससे व्यक्तित्व का स्तर निखरे तथा आध्यात्मिक योग्यता प्रगति एवं विकास में वृद्धि होती हो। (३) अर्थ और पदार्थ का व्यर्थ उपभोग बिल्कुल न हो, उपयोग हो। उनका प्रदर्शन एवं अपव्यय भी न हो । श्रम को भी निरर्थक कार्यों या प्रयासों में लगाना अपनी शक्ति का ह्रास करना है तथा (४) चौथा अभ्यास है इन्द्रियसंयम का जो मनोनिग्रह के लिए नितान्त आवश्यक है। मनोनिग्रह के लिए सम्यग्ज्ञान की लगाम का अवलम्बन लो
इस संबंध में उत्तराध्ययनसूत्र में केशी- गौतम संवाद आता है। केशी श्रमण गणधर गौतम स्वामी से पूछते हैं
मणो साहासिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावइ । जॉस गोयम आरूढ कहते नहीस?
“हे गौतम ! मन भयंकर साहसी है, वह दुष्ट अश्व की तरह दौड़ता है। उस मन पर आरूढ़ (सवार) होकर भी, उसके द्वारा क्यों नहीं हरण किए जाते ?"
इसके उत्तर में गौतम स्वामी ने कहापथावंत निगिण्हामि सुयरस्सि समाहिये। न मे गच्छइ उम्मग्गं मग्गं च पडिवज्जइ ॥
मैं दौड़ते ( भागते हुए मन का निग्रह श्रुत ( शास्त्रज्ञान ) रूपी लगाम लगाकर करता हूँ, जिससे वह उन्मार्ग पर नहीं जाता और सुमार्ग को अपना लेता है।
वास्तव में जब साधक मन पर सम्यक् ज्ञान की लगाम लगा देता है तब तब मनरूपी अश्व की चंचलता से उसे कोई डर नहीं होता, वह इधर-उधर भटका नहीं सकता, न ही वह इधर-उधर मछल कूद मचाता है और एक मात्र शास्त्रपाठ में तन्मय व एकाग्र हो जाता है। यही मनोनिग्रह का सरल मार्ग है। मनोनिग्रह के लिए अवलम्बन ले सकते हैं
एक मनीषी ने मन को वश में करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग यह बताया है कि मन को अन्य सब विषयों से हटाकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त परमात्मा में, भगवान के नाम में जोड़ दो, उसी में तन्मय हो जाओ ।
मनोनिग्रह का सबसे सरल उपाय यह भी है कि मन जो बार-बार विभिन्न विषयों में दौड़ लगाता है, उसे रोककर किसी एक अभीष्ट विषय में लगा दो। उसकी गति को रोको मत उसे निकृष्ट विचारों से हटा कर उत्कृष्ट विचारों में लगा दो ।
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