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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । नहीं मिलता। यदि उन्हें एकाग्र किया जा सके तो सामान्य स्तर का खरपतवारों की जड़ें भी बहुत मजबूत होती हैं। इनमें से कुछेक as समझा जाने वाला मन भी प्रखर एवं प्रचण्ड शक्ति का धनी हो । घास तो पशुओं के चारे के लिए उपयोगी होते हैं, बाकी अधिकांश सकता है और आश्चर्यजनक कार्य कर सकता है।
तो कंटीले, विषैले और निकम्मे होते हैं, जो जगह घेरने के अलावा daeed
किसी काम में नहीं होते। एक अभीष्ट विषय में अनेकाग्र मन को एकाग्र करो, क्यों और कैसे?
मनुष्य के अनगढ़ मन-मस्तिष्क में भी प्रायः ऐसा ही होता है। Podio सूर्य की बिखरी हुई किरणें यदि आतिशी शीशे द्वारा एक छोटे
अपने संस्कार, संगति, आदत और अभिरुचि के अनुरूप ही विचार केन्द्र पर एकत्रित की जाती हैं तो दो इंच घेरे की धूप में अग्नि
तरंगें उठती हैं। पुरानी आदतें, स्मृतियां, रुचियां, घटनाएं, p3 प्रगट हो जाती है और वह अवसर पाकर दावानल का रूप धारण
परिस्थितियां चाहे अतीतकाल की एवं युगबाह्य व निरर्थक हो गई BooD कर सकती है। मन की क्षमताओं के विषय में भी यही बात है। मन
हों, अपनी जड़ें हरी रखती हैं। जब भी अनुकूलता होती है, पतझड़ को भी एक केन्द्र बिन्दु पर केन्द्रित किया जाए तो सामान्य मन भी
के अलावा कोंपलों की तरह नये रूप में फूटने लगती हैं। उनका Hd अद्भुत प्रतिभा का परिचय दे सकता है। धूप और गर्मी के प्रभाव
स्वेच्छाचार देखते ही बनता है। मन की एकाग्रता के मार्ग में ये 1 . से समुद्र, तालाबों एवं नदियों का पानी भाप बनकर उड़ता रहता
खरपतवार बाधक बन जाते हैं, अतः उन्हें हटाना या मिटाना है। किन्तु ट्रेन के इंजन में थोड़ा सा एकत्रित पानी है। किन्तु वह
अनिवार्य है। दूसरों की देखादेखी, उनका अनुकरण करने हेतु मन भाप बनकर शक्तिशाली बन जाता है। उसे हवा में उड़ने से बचाकर
ललचाता है। कभी-कभी निराशा, भय, आशंका, विपत्ति, असफलता एक एक टंकी में एकत्रित किया जाता है, फिर उसका शक्ति प्रवाह एक
आदि की कुकल्पनाएँ तथा ईर्ष्या, द्वेष, रोष आदि से प्रेरित कई क छोटे से छेद से होकर पिस्टन तक पहुँचा दिया जाता है। मात्र इतने
उत्तेजनाएँ मन में आती रहती हैं। ऐसी अनगढ़ मनःस्थिति और से रेलगाड़ी का भारी इंजन अपने साथ सैकड़ों टन वजन लेकर
आचरण मनःक्षेत्र के खरपतवार हैं, जिनके न उखाड़ने से तीव्रगति से दौड़ने लगता है। ढेरों बारूद जमीन में फैलाई हुई हो
आत्मवंचना और लोक-भर्त्सना के अतिरिक्त और कुछ पल्ले नहीं 0 और उसमें आग लग जाए तो सिर्फ थोड़ी-सी चमक और आवाज
पड़ता। यदि यह मनःस्थिति लम्बे समय तक बनी रहे तो वह अन्दर के साथ वह जल उठती है। परन्तु जब उसे सैनिक अपनी बन्दूक
से खोखला और बाहर से ढकोसला बनाकर ही दम लेती हैं। परन्तु 88 की छोटी-सी नली के भीतर कड़े खोल वाले कारतूस में बंद कर । जैसे चतुर किसान सोचता है कि यदि खरपतवार को उखाड़ खेत 20 देता है और बन्दूक का घोड़ा दबाता है तो एक तोले से भी कम की जमीन को साफ नहीं किया जाएगा तो बोने उगाने के प्रयत्न में
वह एकत्रित बारूद की मात्रा गजब ढाती हुई दिखाई देती है। इस सफलता नहीं मिलेगी, बीज भी मारा जाएगा, परिश्रम भी व्यर्थ
प र से बिखरी हुई बारूद की निरर्थकता और उसकी संगृहीत शक्ति जाएगा। मनःक्षेत्र में पहले से जमे हुए खरपतवार के रूप में 20 के एक दिशा-विशेष में प्रयुक्त किए जाने की सार्थकता में कितना अराजकता, अनुशासनहीनता, दुर्वृत्ति-प्रवृत्तियों और दुरभिसंधियों ० अन्तर है? यह सहज ही जाना-देखा जा सकता है। एकाग्रता की को उखाड़ा नहीं जाएगा तो मन की एकाग्रता के बहुमूल्य उपार्जन शक्ति का महत्व इससे जाना जा सकता है।
से लाभान्वित नहीं हुआ जा सकेगा। अतः मनः क्षेत्र में कुविचारों के
खरपतवार उगते ही उन्हें बाहर खदेड़ा जाए। उनकी जगह मनोनिग्रह के लिए एकाग्रता के मार्ग में बाधक खरपतवारों
सुविचारों की श्रृंखला सतत नियोजित की जाए। मन को कुविचारों को उखाड़ना आवश्यक
से होने वाली हानियों का समझाया जाए। उसे तर्क, युक्ति और 5 चंचल मन को किसी एक विषय में एकाग्र करना कहने में
प्रमाण प्रस्तुत करके समझाया, बुझाया और भटकाव से विरत ः सरल है, परन्तु करना बहुत ही कठिन है। एकाग्रता और तन्मयता । किया जाए, इसे ही सच्चे माने में मनोनिग्रह कहते हैं। वश में किया के मार्ग में कई बाधक तत्व हैं, उन्हें जब तक हटाया या मिटाया
हुआ मन मित्र और उच्छृखल मन शत्रु होता है। शत्रुता को मित्रता ही नहीं जाएगा, तब तक वे एकाग्रता में बार-बार बाधा उत्पन्न करते
में बदलने के लिए मन को वशवर्ती बनाकर किसी भी उपयोगी
बदलने रहेंगे। चतुर किसान अपने खेत में बीज बोने से पहले जमीन को
चिन्तन एवं प्रयास में लगाया जा सकता है। विभिन्न प्रकार से जोतकर उसे साफ-सुथरी बनाता है, ताकि उस जमीन में उगी हुई फसल को व्यर्थ के घास-पात (खरपतवार)
एकाग्रता के दो पक्ष, प्रभाव, महत्त्व, विधि और सफलता विनष्ट कर सके। गाफिल और आलसी किसान भूमि समतल और इस प्रकार एकाग्रता के दो पक्ष हैं-१. अभीष्ट विचारों से भिन्न
साफ किए बिना ही बीज बो देता है, तब उस खेत में खरपतवार विचारों को मन-मस्तिष्क से हटाना, और २. इच्छित विचारधारा 200000 अनायास ही उग जाते हैं, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को चूस लेते । को मनःक्षेत्र में अनवरत रूप से प्रवाहित करना। यह ध्यान रखिये
हैं। वे खरपतवारें जितनी जगह में जड़ जमा लेती हैं, उतनी जगह एकाग्रता कोई ईश्वरीय देन नहीं है, और न ही वह वरदान की र में अन्य उपयोगी पौधों को पनपने नहीं देतीं। बिना बोए ही उनकी तरह किसी को प्राप्त होती है। उसे अपने ही शभ परुषार्थ से अच्छी
सत्ता अधिकांश जमीन को घेरे रहती है। इन कुदरती उगी हुई आदत के रूप मे, मनोनिग्रह का मुख्य अंग समझकर चिरकाल तक
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