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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । रोकना है। असम्बद्ध एवं निराधार या अनिष्टकर विकल्प का उससे । मन रूपी अश्व को कैसे साधे? छुड़ाने हैं। उसकी इस कुटेव को छुड़ाने के लिए दूसरी ओर से
बन्धुओ ! खाली मन को रचनात्मक, शुभ या शुद्ध क्रियाकलापों में, कल्पनाओं और विचारों में लगाने का अभ्यास डालना है। उसे शुभ विचार या
आपको भी मनरूपी घोड़ा मिला है? आप कौन-से घुड़सवार के विकल्प करने से रोकना उसकी शक्ति को खत्म करना है। मन की
समान हैं ? इसका उत्तर अपने आप से पूछिए। गति को रोको मत, ज्ञाता द्रष्टा बन कर रहो।
मनरूपी घोड़े को साधने के लिए दो प्रकार से काम लेना होगा।
एक ओर उसकी गति को बिल्कुल नहीं रोकना है दूसरी ओर वह तीसरे घुड़सवार की तरह मन को साधो
जो विभिन्न विषयों की ओर दौड़ता है, उसे प्रेम से रोकिये। अगर एक उदाहरण द्वारा इस तथ्य को समझिए
आप उसकी गति को एकदम रोकना चाहेंगे तो वह कभी नहीं 2 एक राजा के तीन पुत्र तीन घोड़ों पर सवार होकर चले।। रुकेगा। जबर्दस्ती करेंगे तो वह बगावत कर सकता है। प्रत्येक के पास एक-एक घोड़ा था। परन्तु तीनों नौसिखिये थे। घोड़े
मन की दो प्रकार की गति और दो अवस्थाएँ तीनों तेज-तर्रार और फुर्तीले थे। पहला राजकुमार जिस घोड़े पर छ सवार था, वह घोड़ा हवा से बातें करने लगा। राजकुमार ज्यों-ज्यों
मन की दो प्रकार की गति है-एकाग्र और अनेकाग्र। एकाग्रता उसकी लगाम खींचता, त्यों-त्यों वह अधिकाधिक तेज दौड़ता था।
उसकी गतिशून्यता का नाम नहीं है, अपितु उसकी जो गति विभिन्न स राजकुमार ने सोचा-यह घोड़ा पता नहीं कहाँ रुकेगा। आज तो यह
विषयों में हो रही है, उसे अपने एक ही अभीष्ट विषय में कर देना मुझे गिराकर खत्म कर देगा। यह सोचकर उसने तलवार से घोडे
है। इसे ही कहते हैं-मन की चंचलता पर अंकुश लगाना, मन को की टांग काट दी। टांग काटने से घोड़ा जमीन पर बैठ गया।
एक इष्ट विषय में एकाग्र करना। PE राजकुमार को उतर कर पैदल चलना पड़ा।
उसकी दो प्रकार की वैचारिक अवस्था हैं-असम्बद्ध विचार दूसरे राजकुमार ने भी इसी तरह घोड़े की लगाम खींची पर
और संबद्ध विचार। इन दोनों में से मन को किसी समस्या को हल वह भी नहीं रुका। अन्त में उसने एक पेड़ की डाली कस कर
करने के लिए शृंखलाबद्ध तर्क और युक्ति से युक्त व्यवस्थित पकड़ ली, घोड़े से नीचे कूद गया। फलतः उसकी टांग टूट गई,
चिन्तन में जोड़ना संबद्ध विचार है। संबद्ध विचार अतीत से कम घोड़े को आगे जाने दिया। किन्तु ऐसा करने से भी स्वयं को पैदल
किन्तु वर्तमान की समस्या, परिस्थिति या घटना से अधिक जुड़ा चलना पड़ा।
होता है, जबकि असंबद्ध विचार अतीत के साथ ही अधिक जुड़ा
होता है। मन को अतीत की स्मृति होती है, तब वह अपने भीतर तीसरा राजकुमार समझदार था। उसने घोड़े की लगाम ढीली ।
गहरी जमी हुई अतीत की इच्छाओं, संस्कारों, वृत्तियों, आदतों और कर दी, जिससे वह रुक गया, फिर उसने घोड़े को पुचकार कर
टेवों की ओर दौड़ लगाने लगता है। ये सब सतत स्पन्दित होती वह चलाया, परन्तु जब वह विपरीत रास्ते जाने लगता तो उसे चाबुक
रहती हैं अन्तर में। भूतकाल में कब, क्या, कैसे सोचा? किसके बताकर उधर जाने से रोका जाता। इस प्रकार दुलार और फटकार
साथ कैसा व्यवहार किया? कैसा आचरण किया? इनके साथ दोनों ही तरह से घोड़े को चलाकर वह सही सलामत अपने घर
अधिक दौड़ने को प्रवृत्त होता है। पूर्वकृत कर्मो से संबद्ध होने के पहुँच गया। दूसरे दोनों राजकुमार पैदल चलकर बहुत देर से पहुँचे।। कारण अतीत के ये स्पन्दन इतने अज्ञात और सूक्ष्म हैं कि इनका
यह एक रूपक है-तीन घुड़सवारों की तरह तीन प्रकार के मन । सिलसिला एकदम रुकता नहीं। मन की ऐसी विचार शृंखला को हम का रूपी अश्व के वाहक हैं। इनमें दो तो अनाड़ी हैं। पहले राजकुमार असंबद्ध कहते हैं, परन्तु पूर्व कर्मों से संबद्ध होने से ये वास्तव में हम की तरह एक मनरूपी अश्व को मारपीट कर, उसे सता-दबाकर । संबद्ध हैं, किन्तु हमारी स्थूल दृष्टि उन्हें पकड़ नहीं पाती, इसलिए DHA उसकी गति को रोक देता है। वह मन को मारने और उसकी गति । उसे असंबद्ध कह देते हैं। ट रोकने वाला व्यक्ति स्वयं भी दुःखी होता है, मन को भी दुःखी
मन की द्विविध शक्तियों पर "नयन" और "नियमन" Fac करता है। दूसरे नम्बर वाला मनरूपी अश्व का सवार भी मूर्ख है,
द्वारा नियंत्रण 3 वह घोड़े की गति को तो नहीं रोकता, उसे मनमानी दिशा में जाने Paदेता है, किन्तु उससे अभीष्ट कार्य न लेकर स्वयं जीवन के आनन्द
श्रुति में मन की दो प्रकार की शक्तियों का उल्लेख हैसे वंचित हो जाता है। तीसरा मनरूपी अश्व का आरोही मन की १. नयन और २. नियमन। जैसे कि इस मंत्र में कहा गया हैचंचलता को भी नहीं रोकता किन्तु दूसरी ओर से उसे उत्पथगामी
सुषारधिर खानिव यन्मनुष्यान नेमीयते भीर्वाजिन इव। होने से रोकता है, उस पर अंकुश रखता है। स्पष्ट शब्दों में कहें
हातिष्ठं यदाजिरं जविष्ट, तन्मे मनः शिव-संकल्पमस्तु ।। तो उसकी मनमानी भटकने की आदत को छुड़ाकर उसे सुविचार
करने में अभ्यस्त करता है। उसके साथ जोर अजमाई न करके प्रेम इस मंत्र में मन को सारथी की और इन्द्रियों को घोड़ों की 8 से उसे अपने वश में कर लेता है।
उपमा दी गई है। अश्व तथा बाजि शब्द घोड़े के लिए प्रयुक्त ङोता
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