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'प्रिये! इसमें तुम्हारा दोष ही क्या है? क्या कमल का जन्म पंक से नहीं होता? दासी पुत्री होते हुए भी तुम रति-सी सुन्दरी और दमयन्ती-सी पतिव्रता हो।"
रानी से और कुछ न कह राजा पुनः अन्धे सुलोचन के पास आया और पूछा
"सुलोचन ! परख तो तुम्हारी सही ही है। पर यह तो बताओ कि तुमने कैसे जान लिया कि मेरी रानी दासी की पुत्री है। " सुलोचन ने पूरी बात बताते हुए कहा
“राजन् ! पहली बात तो यह है कि राजकुल की स्त्री स्नान करते समय कभी नहीं बोलेगी। दूसरी बात अगर बोलेगी भी तो शिष्ट भाषा में बोलेगी। आपकी रानी ने एक ही बार में 'बदमाश, लुच्चे, सूरदास के बच्चे और हरामखोर' चार गालियाँ दी गाली देने की तो कोई बात ही नहीं थी। कुलीन स्त्री गाली देना तो जानती ही नहीं। इसी प्रमाण से मैंने कहा था कि आपकी रानी दासी की पुत्री होनी चाहिए।"
राजा सुलोचन से खुश हुआ और उसके लिए भी एक पाव रोज तेल देने का प्रबन्ध कर दिया। सुलोचन अपने भाइयों में जा मिला। पूरी घटना सुनाने के बाद सुलोचन ने सबसे छोटे भाई अन्तारमण से कहा
"भाई अन्तारमण ! राजा ने तुम्हें भी बुलाया है। हम तीनों को तो एक-एक पाव तेल मिलने लगा है। अब शायद तुम्हें भी मिलने लगे।"
अनाथालय के प्रबन्धक ने एक आदमी के साथ अन्धे अन्तारमण को भी राजा के पास भेज दिया। राजा ने अन्तारमण से
कहा
"अन्तारमण ! तुम पुरुष परीक्षक हो। अतः अब हमारी परीक्षा कर डालो।"
अन्तारमण बोला
"प्रजारक्षक! आपकी परीक्षा तो मैंने कर ली।
आश्चर्य से राजा ने पूछा
"आते-आते तुमने मेरी परख भी कर ली ?"
राजा के इस कथन पर अन्तारमण को हँसी आ गई और
बोला
"राजन्! आपकी परख तो मैंने बड़े भैया नयनरंजन द्वारा रन परीक्षण के बाद ही कर ली थी।"
अन्तारमण के इस कथन से राजा को और भी आश्चर्य हुआ और बोला
"तुम तो सबके गुरु निकले। मुझसे बिना मिले मेरी परख भी
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
कर ली? तो अब देर क्यों करते हो? बताओ कि मैं क्या हूँ, कैसा
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अन्तारमण बोला
"आप न्यायपरायण हैं। प्रजावत्सल हैं। एक अच्छे पति भी हैं। और वीर व पराक्रमी भी हैं। इसके अलावा ।"
कहते-कहते अन्तारमण मौन हो गया। राजा ने टोका
"आगे भी बताओ रुक क्यों गये? अब तक जो भी तुमने बताया, वह तो मैं बहुत बार सुन चुका हूँ। इसमें नया क्या है ?" अन्तारमण बोला
"नई बात सबके सामने कैसे बता सकता हूँ?"
"मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ, सबके सामने ही बताओ।" "अगर आपका क्रोध भड़क उठा तो मैं बेमौत मारा जाऊँगा।" "नहीं अन्तारमण ! मैं तुम्हें वचन देता हूं कि बुरी-से-बुरी बात सुनकर भी मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा। तुम तुरंत बताओ।" अन्तारमण ने बताया
"राजन्! आप क्षत्रिय पुत्र नहीं हैं। किसी तेली के पुत्र हैं।"
क्रोध के कारण राजा का चेहरा तमतमा गया। यह आक्षेप सीधा राजमाता पर था। लेकिन बचन बन्धन के कारण राजा कुछ न बोला। बहुत देर तक क्रोध को पचाने की कोशिश करता रहा। बहुत देर बाद राजा बोला
" अन्तारमण ! कैसे मान लूँ तुम्हारी बात ? मेरे पिता क्षत्रियकुल भूषण पद्मबाहु थे राजमाता बागेश्वरी सुनेंगी तो क्या हाल होगा ? लेकिन तुम्हारी बात भी नहीं झुठला सकता, क्योंकि अभी-अभी अपनी रानी का तमाशा देख चुका हूँ।"
अन्तारमण ने बताया
“राजन् ! संशय तो मिटाना ही होगा। राजमाता का चरित्र तो निर्मल है, पर आप तेली की ही सन्तान हैं। "
राजा तुरन्त राजमाता वागेश्वरी के पास गया और बोला“बता माँ ! मैं किसका पुत्र हूँ? मेरे पिता कौन हैं ?” राजमाता ने राजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा
"बेटा! तू क्षत्रिय कुल भूषण राजा पद्मवाहु का वंश भास्कर है, यह मैं सच कहती हूँ।"
राजा बोला
"माँ! दाई से गर्भ नहीं छिपाया जा सकता। दिव्य ज्ञानी अन्धे अन्तारमण की बात कभी झूठी नहीं हो सकती। अगर तू सच नहीं बतायेगी तो मैं जीते जी चिताशयन करूँगा।"
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