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वन्दू चरण-कमल गुरुवर के मेरे शरण भये भव-भव के
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निशि दीपो ऽम्बुधौ द्वीपं मरौ शाखी हिमे शिखी । कलौ दुरापः प्राप्तोऽयं त्वद् पादाब्ज रजः कणः ॥
रात्रि के सघन अंधकार में दीपक, तूफानी हवाओं से मचलते समन्दर में द्वीप (टापू), आग से तपते मरुस्थल में छायादार वृक्ष, बर्फीली शीत हवाओं में अग्नि, जिस प्रकार मानव को सहायक एवं शरणभूत होते हैं, उसी प्रकार तपस्वी तेजस्वी महागुरु के चरण कमल की रज शिष्य को सदा प्रकाश, आधार, आश्वासन और बल शक्ति-प्रदान करती रहती हैं।
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