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ऐसे पारस-पुरुष थे जिनके सान्निध्य को पाकर लोहा भी सोना बन । समर्पित की। इस विमोचन में सहयोगी बने-गुरुभक्त दानवीर श्रावक जाता था। उनके अन्दर साधना का तेज था और जो भी उनके । श्री सुवालाल जी छल्लाणी (औरंगाबाद), प्रबंध सम्पादक श्रीचन्द जी संपर्क में आ जाता उसे वे साधना की पावन प्रेरणा देते थे, मेरे । सुराना, श्री रोशनलाल जी मेहता, श्री रमेशभाई शाह (दिल्ली) जीवन पर उनका असीम उपकार रहा। श्री शान्तिलाल जी चपलोत आदि। (स्पीकर राजस्थान विधान सभा) ने कहा कि उपाध्यायश्री का
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डॉ. चम्पालाल जी देशरडा को, लुधियाना जैन समाज की ओर पवित्र चरित्र हम सभी के लिये प्रेरणा-स्रोत रहा है, उनका मंगलमय
से शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। श्री तारक गुरु जैन आशीर्वाद हमारे जीवन के लिये वरदान रूप रहा। उनके आशीर्वाद
| ग्रंथालय की ओर से भी शाल ओढ़ाकर श्री देशरडा जी का सम्मान को पाकर हम लोग इस पद पर प्रतिष्ठित हुए हैं, मेरा दृढ़ विश्वास
किया गया। है कि उनके नाम और आशीर्वाद से जीवन में सदा ही सफलता मिलती है। उन्होंने शासन को भी इस बात की प्रेरणा दी कि वे
आचार्य-सम्राट् श्री देवेन्द्र मुनि जी म. ने अपने अभिभाषण में भारतीय संस्कृति के अनुरूप अहिंसा की प्रतिष्ठा करें, माँस निर्यात
कहा-परम श्रद्धेय उपाध्यायश्री का जीवन गंगा की तरह निर्मल था को बन्द करें। हमारा राष्ट्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रबल
और शरद ऋतु के चन्द्र की तरह सौम्य था। वे अप्रमत्त योगी थे, पुरुषार्थ से स्वतन्त्र हुआ है, हमें अहिंसा के क्षेत्र में राष्ट्रपिता की
प्रतिपल प्रतिक्षण जागरूक रहकर स्वयं साधना के पथ पर बढ़े और याद को सदा स्मरण रखकर कार्य करना चाहिए। उन्होंने पंजाब के
हमें भी उस पथ पर बढ़ने के लिए उत्प्रेरित किया। उन्होंने साहित्य मुख्यमंत्री सरदार बेअन्तसिंह जी को भी धन्यवाद दिया कि उन्होंने
के क्षेत्र में विविध विधाओं में लिखा। आज उस महागुरु के प्रति पंजाब की धरती पर बूचड़खाना बन्द करवाने की घोषणा कर
अनंत श्रद्धा व्यक्त करने हेतु अभी आपके सामने डॉ. चंपालाल जी अहिंसा प्रेमियों के दिल को जीता है।
देसरडा (औरंगाबाद वालों) ने “साधना के शिखर पुरुष उपाध्याय
श्री पुष्कर मुनि जी म. स्मृति-ग्रंथ” का लोकार्पण किया है। यह ग्रंथ कान्फ्रेंस के अध्यक्ष श्री बंकटलाल जी कोठारी ने कहा कि
उपाध्यायश्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालता है। साथ उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री का जीवन स्फटिक मणि की तरह
ही इतिहास के अज्ञात पृष्ठों को जन-जन तक पहुंचाता है। गुरु पारदर्शी था। वे सरलता की साक्षात् मूर्ति थे।
गम्भीर प्रश्नों को उद्घाटित करने वाले भी अनेक विषय इसमें हैं। नवभारत टाइम्स समूह के रमेश शाहू ने भारत की संस्कृति की। इस ग्रंथ के संयोजक/सम्पादक श्री दिनेश मुनि जी ने मेरे निर्देशन में सराहना करते हुए उसमें जैन धर्म की मौलिक विशेषताओं पर बहुत ही परिश्रम और सूझ-बूझ के साथ उत्कृष्ट कार्य किया है। प्रकाश डालते हुए अहिंसा की ओर सभी का ध्यान केन्द्रित किया।
गुरुभक्त डॉ. चम्पालाल जी देशरडा की सेवा भावना अनूठी है। वे
बोलते नहीं, करते हैं। और जो कहते हैं उससे अधिक ही करते हैं। उत्तरी भारत महासभा के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र पाल जी जैन ने
अनासक्त भाव रखने वाले हैं। दान का यह आदर्श गुण है इनमें। कहा कि मैंने उपाध्यायश्री के दर्शन उदयपुर में चादर समारोह के अवसर पर किए और प्रथम दर्शन में ही मैं श्रद्धा से अभिभूत आचार्यश्री ने वर्तमान समस्याओं की ओर इंगित करते हुए हो गया। आज उपाध्यायश्री के रूप में उनके शिष्य श्री देवेन्द्र कहा कि जैन समाज पर लक्ष्मी और सरस्वती की असीम कृपा रही मुनि जी म. हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर उत्तर भारत में है, पर एकतादेवी की कृपा कम होने से आज समूचे समाज में पधारे हैं और आत्म-दीक्षा शताब्दी के अवसर पर जो यहाँ पर सम्मेद शिखर को लेकर संघर्ष की स्थिति बन रही है। अनेकान्त के अद्भुत कार्यक्रम हुए हैं उसका श्रेय आचार्यश्री को ही है। इस उपासकों का दायित्व है कि वे परस्पर बैठकर सद्भावपूर्वक निर्णय अवसर पर अन्य अनेक वक्ताओं ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलियाँ समर्पित की।
इस अवसर पर अनेक श्रद्धालुओं ने अपने श्रद्धा-सुमन श्रद्धेय तपश्चात् आज का मुख्य आकर्षण था “साधना के शिखर उपाध्यायश्री के श्री-चरणों में समर्पित किए। पुरुष-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रंथ का लोकार्पण।" यह ग्रंथ । इस अवसर पर आचार्य-सम्राट् ने तपस्वी-रत्न श्री सहज मुनि स्मृति-ग्रंथों की परम्परा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जिसमें जी म. और पं. श्री रूपेन्द्र मुनि जी म. को श्रमण-संघीय सलाहकार उपाध्यायश्री के सागरसम गंभीर और गगन सम विराट् व्यक्तित्व । पद से और पं. श्री मूल मुनि जी म. को उपाध्याय पद से समलंकृत का समग्र आकलन और उनके जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों को चित्रों / किया। में जीवंत किया गया है। इस महान ग्रंथ का औरंगाबाद निवासी गुरुभक्त, दानवीर डॉ. श्री चम्पालाल जी देशरडा ने लोकार्पण कर
इस प्रकार उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ लोकार्पण का प्रथम प्रति आचार्य सम्राट् श्री देवेन्द्र मुनि जी म. के चरणों में
शानदार ऐतिहासिक कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुआ।
लेवें।