SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | तल से शिखर तक Pord इन विरोधियों का विरोध आपश्री ने कभी किया ही नहीं था। यह थी, और इतनी थी आपकी अगाध सहिष्णुता, जिसके आप तो शान्त थे। अचल और अडिग। समक्ष कटु से कटु आलोचक भी आपके चरणों में विनत हो जाते थे। आपश्री की साधुता को देखकर बम्बई महासंघ के मूर्धन्य इस प्रकार की निराधार आलोचनाओं के प्रसंग आपश्री के मनीषी अध्यक्ष श्री चिमनभाई ने हजारों की जनता के समक्ष घोषित जीवन में अनेक बार आए। किन्तु आपश्री का तो एक ही कथन किया था-प्रभात से पूर्व अंधकार कुछ अधिक गहन होता ही है। सूर्य "पुष्कर मुनिजी जेवा साचा साधु गोत्यापण न मिले।" उदित होने वाला है। तुम सत्य पथ पर हो, न्याय के मार्ग पर चल रहे हो तो फिर भय कैसा? -खोजते-खोजते थक जाइये। किन्तु पुष्कर मुनिजी जैसे सन्त मिलने वाले नहीं। आलोचना का धुंआ तो सत्य का पवन चलते ही विलीन हो | जाता है। श्री ज्येष्ठ गुरु जाप -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि वचन सिद्ध कलियुग मांई। गुरुराज आप परगट पाई। नाम से काम सिद्ध थावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥१॥ नाम को पडचो पड़े भारी । मिटे कष्ट शान्ति हो जावै सारी। सुख मांही जांरा दिन जावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥२॥ राज में अपनो काज बढ़े। फिर दिन-दिन लछमी हाथ चढ़े । जा देश-विदेश तो जय पावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥३॥ छिन में तन को सब रोग मिटे । कई जनम-जनम के कर्म कटे । फिर चित्त चिन्ता भी हट जावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥४॥ भयदायक भूत प्रेत मिले । लिया नाम तुरन्त वे दूर टले । जंगल में मंगल हो जावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥५॥ प्रातः उठ लिया नाम थकी । नव-निधि हुवे या बात पकी । आनन्द की बंशी बज जावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥६॥ तारक गुरु प्रसाद करी । 'मुनि पुष्कर' को परतीत खरी। नाम से नैया तिर जावे । श्री ज्येष्ठ मुनि ने जो ध्यावे ॥७॥ peoPAUSTRUST SGK000000000 50.0.0.000 000000 DOETRackedo3000 2200029:0630330000000000 0.0.00AHOROS
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy