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________________ 0000000000000000000000000003 GORaso.20 C000ETANA cataloo 9 0000000000000000 0653466930050610 Là nhà तल से शिखर तक २३१ । सेठ पर जैसे गरम पानी ही पड़ गया। गुर्राता हुआ बोला-क्या "मैं जैन साधु हूँ।" तेरे बाप ने यहाँ गरम पानी रख छोड़ा है........? "कैसा साधु है ? साधु तो घर-घर जाकर आवाज लगाते हैंआपने सहज, स्नेहमय मुद्रा में कहा-इसीलिए तो हम आए हैं। बम भोले! हरे राम! हरे कृष्ण! कान ही खा जाते हैं।" भारतीय दर्शनशास्त्र में पुनर्जन्म माना गया है। इस जन्म में नहीं तो _“माताजी, हम जैन साधु इस प्रकार आवाज नहीं लगाते। यह पूर्वजन्म में कभी आप मेरे बाप रहे होंगे। हमारे आचार में नहीं है। हम तो शान्ति के साथ गृहस्थ के घर में अपनी सैंकड़ों गालियों तथा कटुवचनों के उत्तर में इतनी मीठी प्रवेश करते हैं और नियमानुसार भिक्षा मिल जाती है तो ग्रहण कर बोली और ऐसी अद्भुत सहिष्णुता देखकर सेठ का क्रोध ठंडा पड़ लेते हैं। अन्यथा हम लोग आनन्दपूर्वक निराहार रहना भी जानते गया और वह आपश्री की महानुभावता को जान गया। उसने कहा- । "आप जरा ठहरिए, मैं देखता हूँ।" यह कहकर वह भीतर गया। उस महिला ने अपने दीर्घ जीवनकाल में आज ही एक सच्चा सेठानी से पूछा-"जैन साधु आए हैं। गरम पानी है?" सेठानी भी साधु देखा था, जो सैंकड़ों गालियों की बौछारें शान्त, सहिष्णु भाव सेठ जी जैसी ही थी। बोली-“क्या उसकी माँ ने यहाँ गरम पानी रख छोड़ा है?" से उस प्रकार सहन करता रहा मानो फूल बरस रहे हों.............. आपने सेठानी के ये वचन भी सुन लिए। प्रेमपूर्वक सेठजी से कहने की आवश्यकता नहीं कि वह महिला श्रद्धा से विभोर हो गई। कहा-“आज का दिन तो बड़ा ही अच्छा है। पिता भी मिल गए, माता भी मिल गई। इसलिए लगता है पानी तो क्या, रोटी भी मिल जायेगी।" एक विहार के समय आपश्री के गुरुदेव के पैर में बहुत पीड़ा यह सुनकर तो सेठ-सेठानी स्वयं ही पानी-पानी हो गए। गुरुदेव Jथी। कहीं विराम लेना अनिवार्य बन गया था। पूछताछ से पता के चरणों में गिर पड़े। भक्तिभाव से आहार-पानी तो दिया ही, साथ चला-सड़क से हटकर चार फाग दूर एक नया ग्राम बसा है। वहाँ ही बोले-"हमने अपने जीवन में सैंकड़ों, हजारों साधु देखे। किन्तु सुविधा हो सकती है। आप जैसा सच्चा महान् सन्त तो कभी कहीं नहीं देखा। महाराज! मैं गाँव में पहुंचे और ग्राम के बीच में एक नीम के पेड़ के नीचे, 9003 जगन्नाथपुरी में व्यवसाय करता हूँ। वहाँ तो सहस्रों साधु-संन्यासियों चबूतरे पर बैठे। किन्तु देखते-देखते ही ग्राम के सभी आस-पास के का जमघट लगा रहता है। जरा-सी बात उनके मन के विपरीत हो घरों के द्वार बन्द हो गए। कुछ देर में दस-बीस नौजवान हाथों में 800 तो वे चिमटा लेकर दौड़ पड़ते हैं। किन्तु आप?.......आप तो धन्य लाठियाँ लिए हुए आए-"क्यों बैठे हो यहाँ ? एक क्षण भी न रुको। हैं! हमने इतनी कड़वी बातें कहीं, ऐसा दुत्कारा, किन्तु आपके चेहरे भाग जाओ यहाँ से।" पर तो क्रोध का कोई चिह्न ही दिखाई नहीं दिया।" आपश्री ने उन्हें समझाना चाहा-"हम जैन साधु हैं ।" वह सेठ और वह सेठानी आपश्री के प्रति अनन्य भक्तिभाव से भर उठे। किन्तु वे तो सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे। एक शब्द भी। उन्हें डर लग गया था कि डाकू आ गए हैं। उस समय उस क्षेत्र में BDDD यह प्रभाव सहिष्णुता का ही तो है। डाकुओं का प्रकोप अधिक चल रहा था। सन् १९५४ में आपश्री दिल्ली का वर्षावास पूर्ण कर जयपुर विवशता में आगे चलना पड़ा। उन भ्रमित युवकों ने उन्हें एक आ रहे थे। महास्थविर श्री ताराचन्द्र जी महाराज के पैर में एकाएक दर्द हो जाने के कारण आपको एक ग्राम में रुकना पड़ा। प्रकार से खदेड़ ही दिया। उस ग्राम में जैन-श्रमण पहली बार ही गए थे। एक मकान में आप कोई ग्राम कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। आपके गुरुदेव श्री के जब प्रविष्ट हुए तो वहाँ खेलती-कूदती हुई बालिकाएँ आपको पैर में बहुत पीड़ा थी, किन्तु ऊबड़-खाबड़ राह पर भूख और प्यास देखकर भयभीत-सी होकर चिल्लाती हुई ऊपर भागीं। उनका को सहन करते हुए, मार्ग में मिल जाने वाले ग्रामीणों से किसी ग्राम 00 चिल्लाना सुनकर मालकिन आई और लगी गालियों की बौछार का पता पूछते हुए आगे बढ़ता ही रहा सन्तों का काफिला। करने..........। किसी एक राहगीर से पता चला यहाँ से चौदह मील दूर भरे-भरे मेघ भी रीत जाते हैं। सड़क-किनारे एक मन्दिर है। उस महिला का गालियों का खजाना भी खाली हो गया। उसी कष्टदायी स्थिति में दिन भर चलने के पश्चात् वह मन्दिर थककर अन्त में उसने कहा-"अरे, आखिर तू है कौन? मैंने इतनी मिला। मन्दिर की पुजारिन आपको देखते ही आनन्दित हो उठी गालियाँ दी और तू चुपचाप खड़ा मुस्करा ही रहा है?" और बोली रुप Jairthdictign pernationalOD For private Person Only 60owtainehealenge
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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