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श्रद्धा का लहराता समन्दर
एक ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया
निज व्यक्तित्व की छोड़ सुवास
अनंत में
न जाने कहाँ खो गया ?
शिष्य गण
भक्त जन
करते रहे पुकार गुरुदेव !
क्यों हो गए चिर निद्रा में लीन ?
एक बार तो देखो हमको
अपने नयन उघार
ओ जग के तारणहार ! गुरुदेव !
किस गहन चिन्तन में लीन हो ?
क्या खोज रहे हैं-आगम-मोती ?
क्या निहार रहे हैं- आतम-ज्योति ?
उठो बरसाओ
गुरुदेव !
आप अपनी अमृतमय प्रवचन-धारा
जिसका करें हम श्रवण
मिट जाये सबका मिथ्याभ्रम !
आप देख तो रहे हैं न ?
कितने विकल/विकल हैं हम
ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया
अखियाँ अ-मोती बरसाती बोलिये न
“दया पालो पुण्यवान्"" आनन्द है पुण्यवान्"
गुरुदेव ! आज आपने यह
मीन व्रत क्यों ले लिया?
अरे! 'बापजी,' को क्या हो गया......॥
एक ज्योतिर्मय जीवन तिरोहित हो गया। निज व्यक्तित्व...
नीड़ का प्राण-पंछी जो चल पड़ा
अनंत की यात्रा पर
छोड़ नश्वर देह को इसीलिए रहे
सबके प्रश्न अनुत्तरित !
-भद्रेश कुमार जैन (सा. रत्न, एम. ए., पी-एच., डी.) (कार्यरत), ब्यावर
व्यक्ति चला गया
व्यक्तित्व रह गया
दीप बुझ गया
प्रकाश सबको दे गया
बुझ गई सद्गुण अग्रवर्तिका
सुवास की लहरें
कर गई विकीर्ण।
कौन कहता है
ये चले गए?
क्रूर काल के हाथों
छले गए ?
मैं कहता हूँ
वे आज भी हैं अमर !
उनकी यशोपताका
फहर रही फर फर
गूँज रहा है
परम श्रद्धेय राष्ट्रसन्त
उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज का नाम
आज भी घर-घर ।
क्योंकि वह
जन-जन के मानस में
बीज धर्म का बो गया........।
एक ज्योतिर्मय जीवन
तिरोहित हो गया
निज व्यक्तित्व की छोड़ सुवास
अनंत में न जाने कहाँ खो गया.
विक्रमी संवत् १९६७ आश्विन शुक्ला चतुर्दशी को
उदयपुर जनपद में
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