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________________ १९६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । ( श्रद्धांजलि युग-पुरुष ! तुम्हें शत-शत वंदन ) -श्रीचन्द सुराना 'सरस' -सुमन्त भद्र युग-पुरुष! तुम्हें शत-शत वंदन। तेरे अन्तर् में दीप्त हुआ था । दिव्य साधना का तेजस् भालपट्ट पर रहा दमकता विमल ब्रह्म-रस का ओजस D D आँखों से करुणा का अमृत बहता था प्रतिपल ज्यों निर्झर! पीड़ित व्याकुल मानव का मन हो जाता शान्त जिसे पीकर MOUse ओ महाप्रणव के आराधक! तुमने साधा था अन्तरमन अदृश्य हो गये आज कहां दर्शन को आकुल हैं जन-जन! 2.0000000000000 पुष्पमित्र पुष्करतीर्थागम श्रमणसूर्य पारमितानन्दन दर्शनज्ञानचारित्रत्रयीधर कीर्तिकाय जिनप्रज्ञास्यन्दन, आप्तकाम अधिगत वैखानस चिदाकाशचर जंगम योगी धृतिवैराग्य यशः श्रीसंयुत् दयाक्षमार्जवधर संयोगी, दानशीलतपभावपयोनिधि संवरनिर्जरसंगम ध्याता बोधिबीज जितकाम यतस्वी समितिगुप्तिधर सिद्धिप्रमाता, ऋत स्थितप्रज्ञ मनस्वी अक्षर आशुतोष शिवग्रामी गोचर श्वेताम्बर सुधांशु ध्रुवसंज्ञक सत्यकाम सवर्णि अगोचर, मृदुल मिताक्षर परमहंसश्रुत संघाराम संघप्रिय सत्विक अनुस्यूत अध्वर्यु अन्वयी अपरामृष्ट आत्मविद तात्विक देवेन्द्राभिधानचिन्तामणि मुनिसम्राट भव्य लोकोत्तम पुण्डरीकसौरभ विजितेन्द्रिय लोकाकाशसद्य पुरुषोत्तम मर्यादा-सुमेरु शैलेशी प्रतिमाधर परिमल जिनकल्पी लोकाराध्य ललितश्रुतिविस्तर परमतितिक्षु मुक्तिसंकल्पी, क्लेशकर्मजित महासमाधिग सिद्धलोकगत विभु अक्षय हो उपाध्याय पुष्कर मुनिसत्तम गुरु गरीय युगमंगल जय हो। तुम सरस्वती के वरद पुत्र ! भरते शब्दों में प्राण-प्रखर ! तेरे हर स्वर में सतत गूंजता ! जिनवाणी का पंचम स्वर ! 100cbbwaalas-0301503005000030-500500055500- 6 पाकर वाणी का अमिय-परस कितनों ने पाया नवजीवन ! कितनों का अन्तर कालुष हर था बना दिया तुमने कुन्दन अपनी सिद्धी के अमृत से दिया जन-जीवन को संजीवन अब आज पुकारें तुम्हें यहाँ वाणी आकुल ! अतृप्त नयन ! युग-पुरुष ! तुम्हें शत-शत वन्दन ! L... - प्रमाण जाणवलयन Patangaliog International dan.co600.000000DOTo private darsanat DshionlymD. --0000000000000000000000000000000000 AOPAeo www.lanellbracy.org 9.0.0.090805 20.003009922602RAC
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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