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। श्रद्धा का लहराता समन्दर
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विनम्र प्रणामाञ्जलि
श्रमण संघ की शान पुष्कर मुनि महान )
-कवि सम्राट निर्भय हाथरसी
-महासती सत्यप्रभाजी
(तर्ज-दूर कोई गाए ) श्रमणसंघ की शान थे, बड़े गुणवान थे। झूरे दुनिया सारी हो, बड़े उपकारी हो ।।टेर।
दीनों के दयाल थे, परमकृपाल थे।
वाणी अमृतधारी हो
॥७॥
मार्गदर्शक संत थे, बड़े भगवन्त थे।
श्रमणसंघ आभारी हो
॥२॥
संघगंथन के अनुरागी, साधना में बड़भागी।
सौम्य मुद्राधारी हो
॥३॥
जैसा नाम वैसा काम, करते थे वे गामगाम।
कहाँ गई मणि प्यारी हो
॥४॥
जिनके जीवन के कण-कण ने जगहित सदा विचारे हैं। जिनके मन के कण-कण ने सत्पथ-प्रशस्त विस्तारे हैं। राजस्थान-केसरी बन मन-हिंसक-सिंह पछारे हैं। जगमग कण्टक-हर्ता कर्मठ-धर्म कठोर-कुठारे हैं। जगमग अक्षय आनंद ज्योति ने जगमग जग उजियारे हैं। श्री सद्गुरु पुष्कर मुनिजी को नम्र प्रणाम हमारे हैं। जागरूक संत की दृष्टि से सृष्टि सदा सुख पाती है। मानवता भी देख महामानव को मन-मुसकाती है। मन-वाणी से लोक-लोक अंतर्लोकों को पार कियापद यात्रा करते धरती भी छोटी पड़ जाती है। स्थानकवासी हैं पर चलते-फिरते बंजारे हैं। श्री सद्गुरु पुष्कर मुनिजी को नम्र प्रणाम हमारे हैं। काम-सकाम भले ही दिखते हो, नितान्त निष्कामी हैं। गति अविराम मिली हैं पूर्ण विरामी, अल्प विरामी हैं। सब कुछ बंधनहीन है फिर भी अनगिन मन बंधन में हैं। कोटि-कोटि जन गण मन जिनके साधन पथ अनुगामी हैं। ज्ञान-ध्यान-चिंतन-अध्यात्म योग भण्डारे हैं। श्री सद्गुरु पुष्कर मुनिजी को नम्र प्रणाम हमारे हैं। अक्षय-आनंद-निर्झर बनकर अतृप्त-तृप्त बनाया है। सत्य-अहिंसा-प्रेम-पुण्य पुष्कर में विश्व नहाया है। साधना-साध्य-साधना-की सरिता ने अमृत पिलाया है। सत्यं-शिव-सुन्दरं का सुखमय सागर लहराया है। जीवन नौका-नाविक ने, जन जीवन पार उतारे हैं। श्री सद्गुरु पुष्कर मुनिजी को नम्र प्रणाम हमारे हैं। कुशल कलाकारी से जाने कितनों का निर्माण किया ? पुण्य-प्रेरणा द्वारा जाने कितने का कल्याण किया? मानवता के मस्त-मसीहा ने जग का दुःख हरने काजाने कितने निष्प्राणों का प्राण जगाकर त्राण किया? पारस-पुरुष ने परस-परस कर, वर्ण-सुवर्ण संवारे हैं। श्री सद्गुरु पुष्कर मुनिजी को नम्र प्रणाम हमारे हैं। मन का अणु-अणु चमकाया है, ज्ञान-साधना-ध्यानी ने। सबको ज्ञान-निदान दिया है परहित-सर्वस्व-दानी ने। वात्सल्य की दिव्य मूर्ति ने, सब कुछ "निर्भय" बना दियास्वाभिमानी की ज्योति जगा दी, ज्योतिर्मय-गुरु-ज्ञानी ने। आत्म-साधना से समाज साधना-सुपन्थ-बुहारे हैं। श्री सद्गुरु पुष्कर मुनिजी को नम्र प्रणाम हमारे हैं।
काम याद आता है, भूला नहीं जाता है।
ढूँढ़े अँखियाँ सारी हो... ॥५॥ गुण तो अनेक थे, उपाध्याय ऐसे थे।
क्षमा दिलधारी हो ॥६॥ कैसी घड़ी आई थी, बड़ी दुखदाई थी।
खटके दिल मझारी हो ॥७॥
वियोग करारा है, सबको लगता खारा है।
भव्य सूरत कहाँ तुम्हारी हो
॥८॥
दिल धड़कता आँखें रोतीं, गया कहाँ वह संघ मोती,
भूले किस प्रकारी हो ॥९॥
अश्रुपूरित आता था, हर्षित वह जाता था।
वाणी जिनकी प्यारी हो
॥१०॥
शासन दीपाया है, भव्यों को जगाया है।
श्रद्धा सुमन स्वीकारी हो
॥११॥
सत्यप्रभा पुकारती, अर्ज ये गुजारती।
श्रद्धा सुमन स्वीकारी हो' ||१२।।
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