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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ
बड़े उपकारी हो
श्रद्धांजलि सुमन
-साध्वी चन्दनप्रभा
(तर्ज : दूर कोई गाए) श्रमणसंघ की शान थे, बड़े गुणवान थे। झूरे दुनिया सारी हो, बड़े उपकारी हो।।टेर॥
दीनों के दयाल थे, परमकृपाल थे।
वाणी अमृतधारी हो, बड़े उपकारी हो॥१॥ संघ गंथन के अनुरागी, साधना में बड़भागी। सोम्यमुद्राधारी हो, बड़े उपकारी हो॥२॥
-साध्वी स्नेहप्रभा, बी. ए. (पू. गुरुणी मैया श्री कौशल्याकुमारीजी म. सा. की सुशिष्या
(तर्ज-दिल लूटने वाले जादूगर ) श्रद्धा सुमनांजली अर्पित हो गुरु पुष्कर के श्री चरणों में।।टेर। सुरजमलजी के लाल थे, माता वाली के बाल थे। नांदेशमा नगरी अति आनंद गुरु पुष्कर के श्री चरणों में ॥१॥ आश्विन शुक्ला चतुर्दशी, शुभ जन्म आपने पाया था। गूंज उठी जनता सारी, गुरु पुष्कर के श्री चरणों में ॥२॥ दुनिया से नाता जोड़ दिया आत्मा से नाता जोड़ दिया। बचपन में ही संयम धारा, गुरु तारक के श्री चरणों में॥३॥ विनय विवेक और सेवा साथ, शास्त्रों का गहरा चिंतन है। दुश्मन भी लौटके आ जाते, गुरु पुष्कर के श्री चरणों में॥४॥ नवकार मंत्र के स्मरण से, हट जाती रोग बीमारी है। आनंद का अनुभव हो जाता, गुरु पुष्कर के श्री चरणों में ॥५॥ आधी व्याधी मिट जाती है, उपाधि कभी नहीं आती है। भूत प्रेत सभी नम जाते हैं, सुन मांगलिक गुरु श्री चरणों में ॥६॥ काया से गुरुवर छोड़ गये, सद्गुण से अंतर में बैठे। "कौशल्या" किरपा होती रहे गुरु "स्नेह" प्रार्थना चरणों में॥७॥
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जैसा नाम वैसा काम, करते थे वे गामगाम कहाँ गई मणी प्यारी हो, बड़े उपकारी हो॥३॥
मार्गदर्शक संत थे, बड़े भगवन्त थे। श्रमणसंघ आधारी हो, बड़े उपकारी हो॥४॥
काम याद आता है, भूला नहीं जाता है।
ढूँढे अँखियाँ सारी हो, बड़े उपकारी हो॥५॥ गुण तो अनेक थे, उपाध्याय ऐसे थे। क्षमा दिलधारी हो, बड़े उपकारी हो॥६॥
कैसी घड़ी आई है, बड़ी दुःखदाई है। खटके दिल मझारी हो, बड़े उपकारी हो॥७॥
श्रद्धार्चन
-साध्वी सुशीलाजी
वियोग करारा है, सबको लगता खारा है। भव्य सूरत कहाँ तुम्हारी हो। बड़े उपकारी हो ॥८॥
दिल धड़कता आँखें रोतीं, गये कहाँ वह संघ मोती। भूले किस प्रकारी हो, बड़े उपकारी हो॥९॥
अश्रुपूरित आता था, हर्षित वह जाता था। वाणी जिनकी प्यारी हो, बड़े उपकारी हो॥१०॥
संघ रथ के कुशल सारथी, पाकर हर्षित है रोम-रोम। घर घर पे जय जय होवे, गूंज रही धरती अरु व्योम॥ रवि सम दीप्तिमान आप हो, मिलती सबको कृपा किरण। थके हारे खिल जाते हैं, पाकर आपके कमल चरण। केवल गुरु के वरदहस्त से, हुए आसीन सर्वोच्च पद पर। मन आनंद विभोर हो जाता, महोत्सव के शुभ अवसर पर॥ हास्य मधुर विलसे मुखपर, देख खुश होता सारा जहान। सागर सम गंभीर अरु, हिमालय से धीर महान॥ रत हो सदा संघ उन्नति में, पाते उसी में ही आत्मानंद। थी तमन्ना चरणों में आने की, करने प्रत्यक्ष दर्श अरु वंदन॥ जयवंत हो देव का शासन, जयवंत हो आचार्यप्रवर। यश सौरभ फैले दिग्दिगंत में, है प्रार्थना प्रभु चरणों पर॥ हो स्वीकार बहिन सुशील के शत् शत् वंदन हार्दिक अभिनंदन !
शासन दीपाया है, भव्यों को जगाया है।
श्रद्धा सुमन स्वीकारी हो, बड़े उपकारी हो॥११॥ चन्दनप्रभा पुकारती, अर्ज ये गुजारती। श्रद्धा सुमन स्वीकारी हो, बड़े उपकारी हो॥१२॥
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