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1 श्रद्धा का लहराता समन्दर
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कि साधना के पथ पर चल पड़े। वैराग्य की धारा से जुड़ गये एवं आपका व्यक्तित्व जल तरंगों के समान निरन्तर गतिमान, पुष्प मुनिव्रत स्वीकार किया। मुनिव्रत स्वीकार करने के बाद सतत् के समान सदा प्रसरणशील रवि रश्मियों के समान आलोकमय, ज्ञान-साधना में संलग्न हो गये एवं निरन्तर अपने में अखण्ड ज्योति सागर समान गंभीर था। जगाते रहे, निरन्तर शुद्धत्व की ओर अपने दृढ़ कदमों से बढ़ते
आप मन से सरल, हृदय से भावनाशील, व्यवहार से मृदुल रहे। भगवान महावीर का सन्देश "ऐसे वीर प्रशंसीय जे बद्ध
एवं चित्त वृत्तियों से शान्त एवं निर्मल थे आपकी दिनचर्या पूर्ण पडिमोयए" को साकार किया।
व्यस्त थी। इस महापुरुष ने अपनी त्रिसाधना के साथ-साथ जन-कल्याण
हे वरिष्ठ उपाध्यायप्रवर, अध्यात्मयोगी, राष्ट्रसन्त, महान हेतु निरन्तर भारतभूमि के विभिन्न क्षेत्रों में विचर-विचर कर
क्रान्तिकारी, महान युग पुरुष, महान् सुधारक, महान् संगठन प्रेमी, महावीर का पावन सन्देश जन-जन के पास पहुँचाया। “साधयति स्व
समाज के सही नेतृत्वकर्ता, आपका जीवन हमें प्रेरणा देता रहेगा, पर कल्याणाय" का मंत्र आपके जीवन का अंग बन गया। आपने
ऐसी अमर आत्मा के चरणों में हार्दिक श्रद्धांजलि। अपने जीवन में भूले-भटके मानवों को सही दिशा निर्देशन कराया।
"अक्सर दुनिया के लोग जीवन में चक्कर खाया करते हैं। आपने सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक और राष्ट्रीय सभी धाराओं से जुड़कर अपने जीवन को समाज एवं देश के लिये समर्पित कर
किन्तु कुछ ऐसे ही, जो इतिहास बनाया करते हैं।" दिया।
ऐसे महापुरुष की क्षति केवल समाज में ही नहीं अपितु [ उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी का महाप्रयाण ) भारतीय समाज की अपूरणीय क्षति है। आप वास्तव में विश्व सन्त थे जैसा आपको इस पद से विभूषित किया गया था। आपने जो
-सुभाषचन्द जैन, क्रान्तिकारी विचार दिये, वे विचार युगों-युगों तक जनमानस को
४ अप्रैल को उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के देवलोक का प्रकाश स्तम्भ के रूप में परिलक्षित होते रहेंगे।
समाचार सुनकर जैन नगर, मेरठ के समस्त नागरिक स्तब्ध रह __आप भौतिक शरीर से हमारे मध्य से चले गये किन्तु विराट् । गए। ४ व ५ अप्रैल को भगवान महावीर स्वामी की जन्म जयन्ती व्यक्तित्व, साधना का सौरभ, ज्ञान की गरिमा, कीर्ति, यश हमारे । के सभी कार्यक्रमों को ५ अप्रैल के मध्यान्ह २.00 बजे तक के सामने विद्यमान है “कीर्तिर्यस्य सः जीवति" इस प्रकार आप प्रकाश लिए स्थगित कर दिया गया। जैन नगर, मेरठ के स्थानक के मुख्य स्तम्भ के रूप में विद्यमान हैं।
हाल में ५ अप्रैल की प्रातः को एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन आपने अनेक आत्माओं को संयम पथ पर अग्रसित किया।
किया गया जिसमें सर्वप्रथम सवा लाख श्री नमोकार मन्त्र का आपके मार्गदर्शन में भारत के तृतीय पट्टधर आचार्य देवेन्द्र मुनि
उच्चारण किया गया। तत्पश्चात् विराजित साधु-साध्वियों ने सा. शिष्यरत्न हैं जो आज अपनी साहित्य सेवा के द्वारा विश्व को
उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी के श्रीचरणों में अपने श्रद्धा सुमन आलोकित किये हुए हैं। आप वरिष्ठ उपाध्याय पद से जाने ही नहीं
अर्पित किए। मेरठ जैन नगर समाज के अध्यक्ष श्री दर्शनलाल जैन जाते बल्कि आप इस पद के गुणों में पूर्णरूपेण खरे उतरे हैं,
सहित अनेक वक्ताओं ने अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए जैनधर्म की प्रभावना करने में आपने इस पद की गरिमा को
उपाध्यायश्री जी के मेरठ प्रवास का विशेष उल्लेख किया कि किस
प्रकार जनमेदिनी सभा में वे अपनी दिव्य मांगलिक दिया करते थे अक्षुण्ण बनाये रखा था।
व विशेष रूप से उत्तर भारतीय प्रवर्तक गुरुदेव श्री शान्तिस्वरूप आपके द्वारा सम्पादित कार्य चाहे वे सामाजिक हों, धार्मिक हों,
जी म. सा. के देवलोक पर आपने अपनी उपस्थिति से किस प्रकार साहित्यिक हों अपने आप में बेजोड़ हैं। आपके ये कार्य इतिहास के । तात्कालिक व्याकुल मेरठ के जैन समाज को धैर्य प्रदान किया। ऐसे पृष्ठों में जगमगाते ही नहीं अपितु इतिहास अपने आप में । ऐतिहासिक पुरुष के पावन श्रीचरणों में जैन नगर की सभी गौरवान्वित अनुभव करेगा।
संस्थाओं की ओर से भी श्रद्धा-सुमन अर्पित किए गए। आपने सफल योगी की भूमिका निभायी। आपको किसी की “शान्ति लोक परिवार" की ओर से उपाध्यायश्री जी के परवाह नहीं थी। आप निडर होकर अध्यात्म रस में तल्लीन रहते थे। कोई मेरी प्रशंसा करे या न करे। सबके प्रति समान व्यवहार था। कोई निकट का श्रावक हो या दूर का, धनवान हो या गरीब सबके साथ समानता, सच्चे ओलिये की तरह “सीकरी से क्या
बुद्धिमान न तो बीते हुए समय की चिन्ता करते हैं और न भविष्य
के लिये चिन्तित रहते हैं, बल्कि वे वर्तमान ही देखते हैं। काम" जहाँ पर है वही मस्त “स्वान्तसुखाय" अपने आप में लीन
-उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि रहते थे।
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