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श्रद्धा का लहराता समन्दर
गुरुदेवश्री का यह वर्षावास पूर्ण ऐतिहासिक वर्षावास था, जिस वर्षावास में प्रवचन में धीरे-धीरे संख्या बढ़ती चली गई। आसोज और कार्तिक महीने में भी प्रवचन में जनता श्रावण और भाद्र महीने की तरह रही तथा धर्म ध्यान भी अपूर्व रहा। मैं एक जिज्ञासु श्रावक रहा और स्वाध्याय की रुचि बाल्यकाल से ही मेरे में रही, जिसके कारण मैंने अपनी शंकाएँ गुरुदेव श्री के चरणों में रखने का उपक्रम बनाया। लगभग उस वर्षावास में मैंने गुरुदेवश्री से तीन हजार प्रश्न किए और मुझे लिखते हुए अपार आह्लाद है कि सभी टेढ़े-मेढ़े प्रश्नों का उत्तर आगम प्रमाण से सदा मिलता रहा। मैं गुरुदेवश्री के आगमिक ज्ञान को देखकर स्तंभित था ।
मेरे पर गुरुदेवश्री की असीम कृपा रही। प्रायः प्रतिवर्ष गुरुदेवश्री के दर्शनों का सौभाग्य मिलता रहा। गुरुदेवश्री सिद्ध जपयोगी थे, नियमित समय पर उनकी तपः साधना निरन्तर चलती रहती थी। वर्षावास में ऐसे कई प्रसंग भी आए और उसके पश्चात् भी किन्तु गुरुदेवश्री जप साधना का समय होते ही जप साधना में विराजते और उनकी जपःसाधना के दिव्य प्रभाव को मैं कई बार देख चुका ।
मैं जीवन के ऊषाकाल से ही संत और साध्वियों के निकट संपर्क में रहा हूँ और मैंने बहुत ही निकटता से संत-साध्वियों को देखने का प्रयास भी किया है पर उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री की एक निराली विशेषता रही। उनका ज्ञान बहुत ही गंभीर था, उनकी प्ररूपणा विशुद्ध प्ररूपणा थी। वे आगम विरुद्ध कोई भी बात स्वीकार करने के लिए प्रस्तुत नहीं थे और अत्यन्त जागरूक आत्मा थी। परन्तु मेरा दुर्भाग्य रहा कि गुरुदेवश्री के अंतिम वर्षावास में भी विशेष कारण से दर्शन नहीं कर सका और चद्दर समारोह पर और गुरुदेवश्री के स्वर्गवास के समय भी परिस्थितिवश उपस्थित नहीं हो सका, जिसका मेरे मन में बहुत ही विचार है।
मैं गुरुदेवश्री के चरणों में अपनी भावभीनी श्रद्धा समर्पित करता हूँ, उनकी असीम कृपा जैसी मेरे पर रही, सदा बनी रहेगी। वे महान् थे, उनकी महानता हमें भी सदा प्राप्त हो यही हार्दिक श्रद्धार्थना
गुरुदेव साहस के रूप थे
-आजाद बरडिया, (उदयपुर)
इस विराट् विश्व में समय-समय पर ऐसे विश्व विश्रुत संत होते रहे हैं, जिनका नाम प्रभात के पुण्य पलों में लिया जाता है। उनका नाम स्मरण आते ही हृदय श्रद्धा से नत हो उठता है। श्रद्धेय उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनि म ऐसे ही संत रत्न थे। शेक्सपियर के शब्दों में कहा जा सकता है, उनके जीवन का सदैव यही ध्येय था कि नाम से नहीं किन्तु व्यक्ति का महत्व काम से है।
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आत्मा का उद्धार करना ही जीवन की सफलता का मूल लक्ष्य है। और वे उस लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ते रहे।
मेरा उनसे प्रथम परिचय सन् १९९३ में मार्च महीने में जब गुरुदेवश्री उदयपुर आए तभी हुआ पहले ही गुरुदेवश्री उदयपुर अनेकों बार पधारे। वर्षावास भी हुए किन्तु में उस समय उदयपुर में नहीं था, बाहर रहने के कारण गुरुदेवश्री के दर्शनों का सौभाग्य इसके पूर्व मुझे नहीं हुआ था में पहली बार ही उनके सम्पर्क में आया, उनके वचनामृत का पान कर और उनकी संत प्रकृति को निहारकर मैं उनका भक्त बन गया। जो भी संतप्त हृदय उनके चरणों में पहुँचता वे उन्हें सन्मार्ग का उपदेश देते जैसे अशोकवाटिका में पहुँचने पर व्यक्ति शोक से मुक्त हो जाता है वैसे ही गुरु चरणों में पहुँचकर व्यक्ति शोक से मुक्त हो जाता है।
मैंने गुरुदेवश्री में अपार सद्गुणों के दर्शन किए, वृद्धावस्था होने पर भी वे साहस के रूप थे। उनमें सरलता थी, सहज स्नेह था और उस सहज स्नेह के कारण मैं उनके प्रति अनंत आस्थावान बन गया। लगभग एक महीने का परिचय हमारे जीवन का महान् सम्बल बन गया। गुरुदेवश्री हमारे बीच नहीं हैं पर उनका जीवन पावन प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। यही उस महागुरु के चरणों में श्रद्धा-सुमन।
गुरुवर प्रतिभासम्पन्न विभूति थे
-आजाद सोढ़ा (उदयपुर)
जब सूर्य अवतरित होता है तो प्रकृति नटी मुस्कराने लगती है, चम्पा की सलोनी टहनी पर जब फूल खिलते हैं तो सारा वातावरण सुगन्ध से महक उठता है। जब आकाश में काले-कजराले बादल मंडराते हैं तो मयूर नृत्य करने लगते हैं, जब बसन्त के आगमन पर आम्र-मंजरी लहलहाने लगती है तो कोकिला का कंचन स्वर मुखरित हो उठता है, इसी प्रकार जब किसी महापुरुष का स्मरण आता है तो मन प्रसन्नता से तरंगित हो उठता है।
परम श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनि जी म. एक ऐसी ही प्रतिभासंपन्न विभूति थीं, वे लाखों में एक थे, उनमें जो चरित्रनिष्ठा, संयम के प्रति आस्था, मानस की कोमलता और भावों की भव्यता को देखकर सहज ही हृदय श्रद्धा से नत हो जाता था। उनके जीवन का कण-कण मधुरता से ओत-प्रोत था, उनकी वाणी मधुर थी, उनका चेहरा मधुर था, उनकी आँखों से मधुरता टपकती थी और उनका हृदय मधुर था
उनकी वाणी के पीछे विलास नहीं था किन्तु विचार थे और विचारों के पीछे भाव-भीनी भावना मुखरित थी । वक्तृत्व कला के वे धनी थे, जब उनकी गंभीर गर्जना होती तो श्रोतागण उसे श्रवण कर मंत्रमुग्ध हो जाते थे, गुरुदेवश्री के प्रवचनों में अपूर्व विशेषता
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