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________________ सम्पादक की फलम से सुप्रसिद्ध चिन्तक ईमरसन ने एक बार कहा कि कब्र की मिट्टी में मेरा शरीर दफनाया जाएगा पर मेरे गुण नहीं। फूल की तरह शरीर नश्वर है, पर सुगन्ध की तरह सद्गुण चिरकाल तक महकते रहेंगे। व्यक्ति मरता है पर व्यक्तित्व अमर रहता है। व्यक्ति भौतिक तत्व से बना हुआ है पर व्यक्तित्व अभौतिक चैतन्य तत्व से निर्मित है, जो शताब्दियों सहस्राब्दियों तक अपना अस्तित्व बनाये रखता है। आने वाले व्यक्तियों के लिए वह प्रेरणा का पावन स्रोत होता है, प्रकाशस्तम्भ की तरह वह सदा सर्वदा आलोक विकीर्ण करता रहता है। परम श्रद्धेय गुरुदेवश्री का व्यक्तित्व अनूठा था और कृतित्व अद्भुत था। वे सरलता की साकार मूर्ति थे। विनम्रता के पुंज थे। धर्म और दर्शन के व्याख्याता थे। वे अनुशासक थे, स्वयं अनुशासन में रहकर उन्होंने शिक्षा और संस्कार प्राप्त किए थे। उनकी चर्या अनुशासित थी और सदा सर्वदा अनुशासित जीवन जीने की पावन प्रेरणा भी प्रदान करते थे। आगम के शब्दों में कहा जाए तो उनका जीवन था "विज्जा विणय संपन्ने' विद्या और विनय से संपन्न थे। विद्या के साथ विनय, विनय के साथ विवेक, विवेक के साथ वाग्मिता और वाग्मिता के साथ नव नवोन्मेषशालिनि प्रतिभा और प्रतिभा के साथ थी सत्योन्मुखी सहज जिज्ञासा, इन्हीं सद्गुणों से मंडित था उनका जीवन। उनका विचार आचार सभी अहिंसा, अनेकान्त और आत्मीयता से आप्लावित था। सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय ही उनकी प्रवृत्तियां थीं इसलिए उनका जीवन सत्य भी था, शिव भी था, सुदंर भी था। सद्गुरुदेव उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. महान् मेधावी थे। अपनी प्रतापपूर्ण प्रतिभा के द्वारा अनेक गुरु गंभीर ग्रंथियाँ जो उलझी हुई थीं उनको सुलझाकर संघ को सबल बनाया। श्रमण संघ को सुदृढ़ और सुसंगठित करने के लिए वे नींव की ईंट के रूप में रहे। उनकी पावन प्रेरणा से अनेक धार्मिक संस्थाएं स्थापित हुई, पर वे सदा-सदा ही कमल की तरह निर्लिप्त रहे। सब कुछ निर्माण करके भी उसके प्रति अनासक्त रहे। उनका ऊर्ध्वमुखी चिन्तन अन्तश्चेतना को झकझोरता था। वे स्व-पर कल्याण के लिए वजादपि कठोराणि मृदुणि कुसमादपि जैसे कर्मयोग के धारक थे। उनमें अपूर्व आत्मविश्वास था अदम्य साहस था और अद्वितीय कर्मठता थी। वट वृक्ष की तरह उनका व्यक्तित्व विकसित था। वे स्वयं आत्मपथ के पथिक थे और दुराचार, अनाचार, भ्रष्टाचार में लिप्त मानवों को उन्होंने सच्चा पथ-प्रदर्शन प्रदान किया। उनका व्यक्तित्व अलौकिक और अतिमानवीय था। जब मैं गुरुदेवश्री के दिव्य और भव्य व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर चिन्तन करता हूँ तो मुझे लगता है कि वे गुणों के आगार थे। उनके सद्गुणों का वर्णन करना मेरे लिए असंभव है। असीम गुणों को ससीम शब्दों में अभिव्यक्त किया भी तो नहीं जा सकता। उस दिव्य व्यक्तित्व के गुणों की पहचान भी करना बहुत कठिन है। सेवा की बलवती भव्य भावना, करूणा का बहता हुआ उच्छल निर्झर, साहस का शौर्यपूर्ण सजीव रूप, मन में जो भी संकल्प किया उसे पूर्णता प्रदान करने का वज आघोष, व्यक्ति के हृदय को छूने वाली और प्रतिबोधित करने वाली विमलवाणी, ऐसा कौनसा उदात्त गुण है जो उस अलौकिक व्यक्तित्व में नहीं था? उनमें थी हृदय को हरने वाली मृदुता और मधुरता पत्थर को भी पानी बनाने वाली अमिट संकल्पशीलता। मैंने हजारों लाखों व्यक्तियों को देखा है पर जो सर्वांग विलक्षण व्यक्तित्व गुरुदेव का था, वह मुझे कभी नहीं मिला। आश्चर्य तो इस बात का है कि एक ही व्यक्तित्व में अगणित विलक्षणताएँ भरी हुई थी।
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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