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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । "आपकी इबादत के क्या कहने, आपकी बंदगी के क्या कहने, जो शमां की सांनिद थी रोशन,
आपकी लाजबाव जिंदगी के क्या कहने।"
"फूल एक गुलाब का, मुरझा के चला गया। त्याग के अनुराग से, खुशबू जगत को दे गया।"
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"तेरे गुण की गौरव गाथा, धरती के जन-जन गाएगें। और सभी कुछ भूल सकेंगे पर तुम्हें भुला ना पाएगें।"
की माला का एक मोती
-धर्मचन्द ललित ओसवाल
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उन्हीं विशिष्ट आत्माओं में से मेरे मन मंदिर के दिव्य श्रद्धादेव, उपाध्यायप्रवर पूज्यश्री पुष्करमुनिजी म. सा. का व्यक्तित्व भी ऐसा ही था। उनके जीवन की अनुपम विशेषताएँ भी थीं, उनके उदार व्यक्तित्व की अनोखी ऐसी क्षमताएँ भी थीं जिनकी पावन स्मृति की महासौरभ से हमारा हृदय सुवासित है। रह-रहकर आज उनकी यादें मन को कचोट रही हैं। आपका जीवन कवि के शब्दों में फूलों से कोमल और गंगा से निर्मल था। रत्नमणी से पावन और
शशि से उज्ज्वल था। p903Pad "जग कहता है तुम चले गए, मन कहता है तुम गए नहीं।
जग भी सच्चा-मन भी सच्चा, मन से गुरुवर गए नहीं॥" एक विचारक ने कहा है-"Death is certain.” अर्थात् मृत्यु अवश्यंभावी है।
दूसरे विचारक के शब्दों में"Death is nothing, but a change for the new, This is a secret, known only to few."
अर्थात् मृत्यु परिवर्तन के अलावा कुछ भी नहीं है, किन्तु इस रहस्य के ज्ञाता बहुत कम ही लोग हैं। जन्म के बाद मृत्यु तो प्रत्येक प्राणी की होती है, परन्तु मरण पद्धति में अन्तर होता है। यकीनन जीवन जीना एक कला है तो मरना भी एक कला है। एक शायर ने कहा है"सुनी जब हिस्टरी, तो इस बात का
कामिल यकीं आया, जिसे मरना नहीं आया
उसे जीना नहीं आया।" सुन्दर रीति से, शांति समाधिपूर्वक मरण भी एक विचित्र कला है, जो किसी महान् व्यक्तित्व को ही प्राप्त होती है। मृत्यु भी एक अनमोल उपहार है जो ऊर्ध्वगति के जीव को गति प्रदान करता है। ऐसा जीवन उदात्त विचारों का प्रसार करता है तथा परिवेश के तदनुरूप आचरण करने की प्रेरणा देता है। ऐसा जीवन सर्व अपेक्षाओं की पूर्ति करता है। अंजलि भर सबको सुसंस्कारों का एक गुलदस्ता प्रदान करता है। कितना सही कहा है चिंतक ने
"मौत जिंदगी का एक पल भी नहीं देती,
मगर जिंदगी एक पल में बहुत कुछ दे देती है।" अनेकों गुणों से युक्त उपाध्यायश्री के महान जीवन का मैं क्या । वर्णन करूँ ? बेशक महान जीवन था, गुरुवर का।
४ अप्रैल, १९९३ प्रातः अहिंसा विहार, रोहिणी में भगवान महावीर जयन्ती के अवसर पर आयोजित प्रभात फेरी निकल रही थी वहाँ पर ही परम श्रद्धेय उपाध्याय श्री के स्वर्गवास के समाचार से हृदय पर आघात पहुँचा। अहिंसा विहार में शासन प्रभावक श्री सुदर्शन लाल जी म. सा. के शिष्य शास्त्री पदम चन्द जी म. सा. पधारे हुए थे। महावीर जयन्ती का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया एवं गुरुदेव की स्मृति में एक घन्टे का सामूहिक महामंत्र का जाप हुआ और महाराज श्री ने उपाध्यायश्री के जीवन पर प्रकाश डाला और श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित की।
हम स्वयं अतीत की लहरों में खो गये। अहिंसा विहार का प्रांगण आपश्री का एवं गुरुदेव का दिल्ली प्रवास के दौरान का सुन्दर दृश्य मन एवं दिमाग पर अंकित हो उठा। जिस धरती पर गुरुदेव के चरण पड़े आज वहाँ के आनन्दित वातावरण में अनेक परिवार उनके आशीर्वाद स्वरूप फल-फूल रहे हैं।
श्रमणसंघ की माला का एक और मोती माला में से निकल गया। लेखनी द्वारा भावों को व्यक्त करना हमारी सामर्थ्य से बाहर है।
वीतराग प्रभु के चरणों में यही प्रार्थना है कि पुण्य आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और हम सब उनके आशीर्वाद से गुरुदेव के दिखाये मार्ग पर चलकर अपना जीवन सार्थक कर सकें।
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